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किसी ने कहा, "नेता जी गिर गए।" हमने कहा, "वे तो पहले से ही गिरे हुए थे

किसी ने कहा, नेता जी गिर गए। हमने कहा, वे तो पहले से ही गिरे हुए थे
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किसी ने कहा, "नेता जी गिर गए।" हमने कहा, "वे तो पहले से ही गिरे हुए थे। गिरे हुए न होते तो नेता होते?" उन्होंने कहा, "अरे मंच से गिरे हैं भाई! मंच टूट गया था।"

हमने कहा, "कोई बात नहीं, मंच भी तो उनके बनाये अधिकारियों ने ही बनवाया होगा। उसे तो कमजोर होना ही था। मंच जनता ने बनवाया होता तो अबतक सौ पचास लोग अंदर होते।"

उन्होंने फिर कहा- अरे बहुत चोट लगी है भाई!

हमने कहा, "झूठ न बोलो यार! वे हजार बार नजरों से गिरे तो चोट ही नही लगी, मंच से गिरने पर कैसे चोट लगेगी। वे बड़े मजबूत आदमी हैं भाई।"

वे पिनक गये, बोले, "आप तो बड़े संवेदनहीन आदमी हैं महाराज, तनिक इंसानियत भी तो दिखाइए।"

हमने कहा, "यह कला हमने उन्ही से सीखी है भाई। जिनकी संवेदना न करोड़ों लोगों की उम्मीद तोड़ते समय जगती है, न समाज तोड़ते समय जगती है, उनके अंग टूटने पर हमारी संवेदना क्यों जगे मालिक?"

वे तो मुझे संवेदना की सीख देते चले गए, पर मैं सोच रहा हूँ कि गिरना सचमुच बुरा होता है क्या। मुझे लगता है कि आधुनिक काल में गिरना उन्नति के दरवाजे खोल देता है। एक सरकारी कर्मचारी जितना ही गिरता है, उसके महल की ऊँचाई उतनी ही बढ़ जाती है। एक नेता जितना ही गिरता है, उसका पद उतना ही ऊँचा हो जाता है। एक वकील जितना गिरता है, उसके केस जीतने की संभावना उतनी ही बढ़ जाती है। एक अभिनेत्री जितनी ही गिरती है, वह उतनी ही मशहूर होती जाती है। सब छोड़िये, एक आम आदमी जब तक उठने का प्रयास करता है तबतक उसे कोई नहीं जानता, पर जैसे ही वह गिरना प्रारम्भ करता है चर्चित होने लगता है। गिरना हर व्यक्ति के लिए लाभप्रद होता है।

पता नहीं किस महानुभाव ने कहा था कि "गिर के उठने वाला सच्चा नायक होता होता है", पर मुझे लगता है कि बिना उठे लगातार गिरने वाला पक्का महानायक होता है। देखिये न, आधुनिक कविता के सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक हरिवंश राय बच्चन मधुशाला जैसी अति-लोकप्रिय सृजन के बाद भी कभी नायक नही हुए, पर उन्ही के बेटे अमिताभ थोड़ा सा गिर गए तो महानायक हो गए।

आजकल हमारे बिहार सरकार की आर्थिक दशा ख़राब चल रही है, सो उसे मुझ जैसे शिक्षकों को पौने तेरह हजार का वेतन देने में छः छः माह की देरी हो जाती है। इस तरह जब बिहार सरकार की गरीबी का संक्रमण मेरी जेब तक पहुँचता है, तो मेरी आर्थिक दशा ख़राब हो जाती है। फिर पति पत्नी में जुबानी जंग तो चलनी है। वो कहती हैं, " इतने बच्चों को कोचिंग देते हो, वेतन नही मिलता तो कोचिंग की फ़ी क्यों नही लेते?"

मैं कहता हूँ, "इतना गिरा हुआ नही हूँ जी, जो बच्चे अपने से दे देंगे वही मेरा है। वह पिनक जाती है और कहती है, "जब गिरना नही था तो विवाह क्यों किये श्रीमुख जी?"

मैं देश के करोड़ों अबला पतियों की तरह समर्पण करते हुए कहता हूँ, "माफ़ कर दो पगली, अब तो गलती हो गयी... दुबारा नहीं होगी।"

न मैं गिर रहा हूँ, न मेरे घर की ऊँचाई बढ़ रही है। दुनिया यूँ ही चल रही है।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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