मां भारती के वीर सपूत अमर शहीद भगत सिंह की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन
नई दिल्ली: आज महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह का जन्मदिवस है. देश का बच्चा-बच्चा इनकी आजादी की कहानी सुनकर बड़ा हुआ है. देशवासियों की आजादी और उनकी बेहतरी के लिए खुदकी जान का बलिदान करने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह का जन्म आज यानी की 28 सितंबर,1907 में हुआ था. भगत सिंह को महज 23 साल की उम्र में अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 की सुबह 7:30 बजे लाहौर में फांसी दे दी थी. 300 पेज के फैसले में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी. वह देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार से लड़ रहे थे. आज उनकी जयंति के दिन पूरा भारत 'शहीद-ए-आजम' भगत सिंह को याद कर रहा है. भगत सिंह का बहुत बड़ा योगदान है, जिसकी वजह से भारतवासियों को हर साल आजादी का जश्न मनाने का मौका मिलता है
भगत सिंह के जन्म वाले दिन उनके पिता सरदार किशनसिंह और चाचा अजीतसिंह की जेल से रिहाई हुई थी. इस बात से खुश उनकी दादी जय कौर ने स्वाभाविक प्रतिक्रिया दी, 'ए मुंडा ते बड़ा भागांवाला ए' (यह लड़का तो बड़ा सौभाग्यशाली है).
भगत सिंह के भतीजे बाबरसिंह संधु के पुत्र यादविंदर सिंह संधु ने पारीवारिक चर्चाओं के मुताबिक याद करते हुए बताया था कि दादी के मुंह से निकले शब्दों के आधार पर घरवालों ने भागांवाला (भाग्यशाली) होने की वजह से लड़के का नाम इन्हीं शब्दों से मिलता-जुलता यानी भगतसिंह रखा. उनके नामकरण संस्कार यज्ञ के दौरान उनके दादा सरदार अर्जुनसिंह ने यह संकल्प भी लिया कि वे अपने इस पोते को देश के लिए समर्पित कर देंगे. भगतसिंह का परिवार आर्य समाजी था.
घर में पड़ा देश प्रेम का बीज
भारत की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था. यह स्थान अब पाकिस्तान में. देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी. भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह इसमें मदद रहे थे. करतार सिंह सराभा की अगुवाई में चलाई जा रही गदर पार्टी से दोनों जुड़े थे. भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव था.
भगत सिंह बचपन से ही आजादी का सपना देखते थे. उनके बारे में एक किस्सा ये है कि भगत सिंह जब छोटे थे तो एक दिन खेलते वक्त अचानक उनके हाथ में बंदूक लग गई. ये बंदूक उनके चाचा की थी. भगत सिंह बंदूक लेकर अपने चाचा के पास गए और उनसे पूछा कि ये क्या है. चाचा ने बंदूक के बारे में बताया तो भगत सिंह ने कहा कि अंग्रेजों को खिलाफ इससे लड़ेंगे. एक दिन वो अपने चाचा को आम का पेड़ लगाते वक्त देखकर बंदूक को बोने की बात कहने लगे, जिससे कि तमाम बंदूकें उगें और वो अंग्रेजों से लड़ने के काम आएं.
20 साल की उम्र तक भगत सिंह देश दुनिया के विचारकों की किताबें पढ़ चुके थे. उन्होंने इन विचारकों को अपने जीवन में उतार लिया था.