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कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय की बन्दूक गरजी तो ऐसी गरजी की "जीत" उसकी गुलाम हो गयी

कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय की बन्दूक गरजी तो ऐसी गरजी की जीत उसकी गुलाम हो गयी
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परमवीर चक्र विजेताओं के लिए लिखी गयी किताब "द ब्रेव" में रचना विष्ट रावत ने बताया है कि वे शुद्ध शाकाहारी थे। कभी शराब नहीं पीते थे। दुर्गापूजा के दिन उनकी यूनिट के लोगों ने बलि देने के लिए फरसा पकड़ा दिया। उस योद्धा ने कुछ क्षण सोचा और एक झटके में बकरे का सर काट दिया। खून के छींटे उनके माथे तक पड़े। उसके बाद वे बीसों बार अपना मुँह, हाथ धोते रहे... अकारण ही एक निर्दोष जीव पर किया गया प्रहार उन्हें कचोटता रहा, वे उसकी पीड़ा से तड़पते रहे...

पर रुकिये! किसी निर्दोष की हत्या पर तड़प उठने वाले उस चौबीस वर्ष के विशुद्ध शाकाहारी लड़के ने जब कारगिल युद्ध में शस्त्र उठाया तो ऐसा उठाया कि युगों युगों के लिए उसकी कहानियां अमर हो गईं। उसकी बन्दूक गरजी तो ऐसी गरजी की "जीत" उसकी गुलाम हो गयी। वह जहां गया जीत कर आया... जिधर बढ़ा उधर से मार कर आया... मात्र साढ़े पाँच फीट के सामान्य शरीर वाले उस योद्धा ने युद्धभूमि में वह धूम मचाई कि कारगिल युद्ध के बाद पूरा देश अमर बलिदानी कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय की जयकार कर उठा।

वे सेना में गए तो किसी साथी ने उनसे पूछा था, "कहाँ तक जाना चाहते हो?" उन्होंने सर उठा कर पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, "परमवीर चक्र तक..." बहुत कम लोग होते हैं जो इतनी जल्दी अपनी सबसे बड़ी अभिलाषा को छू लेते हैं। कैप्टन मनोज ने 24 साल की आयु में ही पा लिया परमवीर चक्र...

किसी भी देश की जनता नब्बे वर्ष का सफल जीवन तभी जी पाती है, जब उसके लिए कुछ महान लोग 24 की आयु में ही अपनी बलि देते हैं। हमारे सुखमय जीवन पर उस समस्त योद्धाओ का कर्ज है जिन्होंने अपनी बलि दी थी।

भारतीय सेना कुछ लोगों की भीड़ भर नहीं है, वह राष्ट्र के लिए पूरी तरह समर्पित हो चुके जुनूनी योद्धाओं का वह समूह है जो तलवार के बल पर तोप से टकरा जाने का साहस और उसे उखाड़ फेंकने का कौशल रखते हैं। अपने घर परिवार के साथ मजाक करते रहने वाला भोला भाला लड़का भी जब सेना की वर्दी धारण करता है, तो एकाएक वह पूरी तरह बदल जाता है। उसके लिए रिश्ते-नाते, धन-संपत्ति सबकुछ द्वितीयक हो जाता है। उसे दिखती है तो केवल उसकी मिट्टी... उसे दिखता है केवल उसका देश... उसे याद रहती है केवल उसकी मातृभूमि... तब वह अपनी मिट्टी के लिए यमराज से भी लड़ जाता है।

आज कश्मीर भारत का अंग यूँ ही नहीं है। उसे बचाने के लिए उसकी कैप्टन मनोज जैसे जाने कितने योद्धाओं ने उसकी इंच इंच जमीन को अपने रक्त से धोया है, उसपर अपने लहू से भारत का मुहर लगाया है।

आज कारगिल विजय दिवस है। राष्ट्र के अपना सबकुछ झोंक चुके उन सभी योद्धाओं को नमन...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार

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