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देवी अथर्वशीर्ष के कुछ रोचक तथ्य:- (निरंजन मनमाडकर)

देवी अथर्वशीर्ष के कुछ रोचक तथ्य:-    (निरंजन मनमाडकर)
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ॐ नमश्चण्डिकायै

जय माँ

१) यह स्तोत्रम् अथर्ववेद के शिरोभाग में आने के कारण इसे अथर्वशीर्ष कहा है!

या थर्व माने चंचलता और अथर्व माने शांत, स्थिर,! तथा शीर्ष माने सिर, मस्तक, जो बुद्धी मति का प्रतीक है! अतः जिसके पाठ से अध्ययन करने से मती स्थिर, शांत हो जाती है या स्थितप्रज्ञता प्राप्त होती है उसे अथर्वशीर्ष कहते है.

२)देवी अथर्वशीर्षम् निगमागम का उत्तम समन्वय है!

आप देख सकते है

ऋग्वेद संहिता

(१)१०-१२५-१ से ३ तथा ६-१/२

(२)१०-७२-५

(३)८-१००-११

के मन्त्र जैसे के तैसे आएं है

कृष्ण यजुर्वेद महानारायणोपनिषद् २/२ यह मन्त्र आता है!

तथा अपनी विशिष्ट औपनिषदिय शैली में तत्व निरूपण किया है!

३)देवी अथर्वशीर्षम् में देवी को ही परब्रह्म कहा है! वे ही निमित्त तथा उपादान कारण स्वरूपा है ऐसा प्रतिपादन किया है!

४)उन परब्रह्म स्वरूपिणी जगदंबा की उपासना पद्धती विशद करते हुएं तंत्रागमोंके तीन मंत्र बडी रहस्यमय शैली से प्रतिपादन किए है.

५)अतः उन एकाक्षरी, नवाक्षरी एवं पंचदशाक्षरी मन्त्रों के अप्रत्यक्ष जप का लाभ पाठक को होता है.

६)देवी अथर्वशीर्षम् में ज्ञान एवं कर्म दोनों का समन्वय हुआ है!

भगवती जगदंबा का स्वरूप ज्ञान एवं उनकी उपासना पद्धती का ध्यान, मंत्र, स्तुती दोनों का प्रतिपादन किया गया है. केवल ब्रह्मविद्या का प्रतिपादन नही अपितु ब्रह्मविद्या का यथार्थ अनुगमन!

७)वर्तमान समय में देवी अथर्वशीर्षम् के तीन भिन्न पाठ उपलब्ध होते है.

८) भगवती जंगदंबा के सगुण साकार, सगुण निराकार तथा निर्गुण निराकार तीनों स्वरूपोंका वर्णन रहस्यमयी श्रुती में दृग्गोचर होता है.

९) भगवती पराम्बा का जो प्रकट वैदिक स्वरूप है जिन्हे भगवती भुवनेश्वरी कहते है उनका स्वरूप ध्यान यहापर आता है.

१०) इस उपनिषद का जप करने से भी अधिक अध्ययन करने का लाभ अधिक बताया है!

इस उपनिषद को यथार्थरूप से समझे बिना किया गया पाठ व्यर्थ कहा है! अतः इस श्रुती को गुरूमुख से श्रवण करना चाहिए!

११) तंत्र ग्रंथों में पुरश्चरण की अनिवार्यता कही है!

पुरश्चरण संयुक्तो मन्त्रो हि फलदायकः

पुरश्चरण करने से ही मन्त्र फलदायक होता है,

जैसे शक्तिहीन मनुष्य किसीभी प्रकार के कर्म करने में समर्थ नही होता उसी प्रकार विना पुरश्चरण किया गया जप उसी प्रकार फल प्रदान करने में असमर्थ होता है!

अतः देवी अथर्वशीर्षम् का १०८ पाठ करने से पुरश्चरण हो जाता है!

वीर्यहीनो यथा देही सर्वकर्मसु न क्षमः |

पुरश्चरण हीनस्तु तथा मन्त्रः प्रकीर्तिता ||

१२) हर एक सम्प्रदाय में शक्तिविशिष्ट ब्रह्म की ही आराधना होती है, जैसे वैष्णवोंमें लक्ष्मीनारायण, सीताराम, राधाकृष्ण, शैव सम्प्रदाय में भी शिवशक्ती, शंकर पार्वती, गाणपत्योंमें वल्लभासमेत महागणपती आदि.....

अतः एकमात्र देवी अथर्वशीर्षम् का पाठ करने से पाठक को पाँचो अथर्वशीर्ष के पाठ का फल प्राप्त होता है!

१३)पापों के नाश हेतु देवी अथर्वशीर्षम् का पाठ होता है!

सायंकाल में पाठ करने से दिनमें किये हुए पापोंका नाश होता है.

प्रातःकालमें पाठ करने से रात्री में कीए हुए पापोंका नाश हो ता है!

जो पाठक सायंप्रातः दोनो कालो में पाठ करता है वह वह निष्पाप हो जाता है.

दसबार पाठ करने से, साधक तत्क्षण पापमुक्त होता है.

१४) श्रीविद्या उपासना में चार संध्या कही है, उनमें से चौथी संध्या जो होती है वह निशीथ काल में मध्यरात्री में होती है, उस समय यदि देवी अथर्वशीर्षम् का जप करें तो वाक् सिद्धी प्राप्त होती है.

१५) नूतन प्रतिमा के समीप पाठ करने से देवता का सान्निध्य प्राप्त होता है.

१६) कोई भी अर्चा विग्रह हो, यंत्र हो, बाणलिङ्ग हो उसकी प्राणप्रतिष्ठा समय यदि देवी अथर्वशीर्षम् का जप करें तो प्राणप्रतिष्ठा हो जाती है.

१७) देवी अथर्वशीर्षम् का जप मंगलवार एवं अश्विनी नक्षत्र योग में पाठ करने से मनुष्य महामृत्यु से तर जाता है!

यहाँ विशेषरूप से ज्ञान एवं कर्म के आधारपर फल प्राप्त होता है.

कर्म सिद्धान्त - महामृत्यु यानी की जो मृत्यु सामान्य नही - अकस्मात मृत्यू, अचानक मृत्यू, असामान्य मृत्यू, महामारी जन्य मृत्यू!

या फिर महामृत्यु यमराज को कहते है, परमपूज्य वासुदेवानंद सरस्वती स्वामी महाराज की दशसाहस्री गुरूचरित्रम् में १७ वे अध्याय में यमराज को महामृत्यु कहा है!

स प्राहात्र महामृत्युस्त्वत्पुत्रं हर्तु मागतः ||१७-३८)

ज्ञानमार्ग - महामृत्यु का प्रतिपादन अपने विवेकचुडामणी ग्रंथ में आदि शंकराचार्य जी करते है...

मोह एव महामृत्युर्मुमुक्षोर्वपरादिषु |

साधक, भक्त तथा मुमुक्षू के जीवनमें मोह का हर क्षण महामृत्यु है!

उपरोक्त सभी प्रकारकें महामृत्युओंसे रक्षा हेतु माँ भगवती के देवी अथर्वशीर्षम् का जप भौमाश्विनी योग में करना चाहिए!

यहापर विशेष ध्यान दिजिए....

१)जप्त्वा कहा है

२) भौमाश्विन्यां कहा है

श्रुती स्पष्ट ज्ञापक श्रुती है!

याने जप करने से कहा है! केवल एक बार पाठ करने से नही!

जप का अर्थ है -

विधानेन मन्त्रोच्चारणम्

विधिपूर्वक - नियमों का पालन करते हुए किए गये मन्त्रोच्चारण को जप कहा गया है!

तो वह नियम कौनसे है?

शुचिता! वस्त्र! भस्मधारणम्! आसनम्! मुख किस दिशा में हो? आदि भौतिक नियम! एवं

आचमन! प्राणायाम! देवतास्मरण सहित देशकालोच्चार संकल्प! न्यासः! ध्यानम्! मुद्रा प्रदर्शनम्! मानसपूजा! आदि अनुष्ठान के नियम!

उपरोक्त नियमों का पालन करते हुए देवी अथर्वशीर्षम् का जप करना है याने की अनेक बार पाठ करना है!

और एक बात यहापर श्रुती स्पष्ट करती है की भौमाश्विन्यां.....! मतलब यहापर सामान्य विश्लेषण नही है, अगर वैसा होता तो अमृतसिद्धी योग कहते! अतः शनि-रोहिणी, सोम-श्रवण, हस्त-आदित्य आदि अमृतसिद्धी योगोंमे पाठ करने से लाभ अवश्य हो गा किंतु महामृत्यु तरति यह नही होगा इसे ध्यान रखे!

भौमाश्विन्यां इस विशेष शब्दसे केवल भौमाश्विनी योग पर ही महामृत्यु से रक्षण होगा इसे ध्यान में रखना चाहिए.

१८) भगवती पराम्बा की कृपा से साधक शीघ्र ही सभी प्रकारकें संकटोसे, क्लेशोंसे मुक्त होता है! भगवती की अनुकम्पा से अध्यात्म मार्ग में निर्विघ्न अग्रेसर होता है!

इस संवत्सर का अंतिम भौमाश्विनी योग १४ /०७ /२०२० तारीख को प्रातः ११ :३० तक है अतः भगवती जंगदंबा की विशेष कृपा सिद्धी हेतु देवी अथर्वशीर्षम् का जप अवश्य करें!

ॐ नमश्चण्डिकायै

लेखन, अध्ययन व प्रस्तुती!

निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र

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