हाईकोर्ट के जजों के आवेदन की अनदेखी कर उपलोकायुक्त बनाए गए थे शंभू यादव
मौजूदा और पूर्व जजों को मिलनी चाहिए प्राथमिकता
लोकायुक्त एक्ट के मुताबिक़ लोकायुक्त और उप लोकायुक्त पद के लिए पहली प्राथमिकता हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा व पूर्व जजों को ही मिलनी चाहिए. उसके बाद न्यायिक सेवा के दूसरे अनुभवी लोगों के नाम पर विचार होना चाहिए. पुलिस व प्रशासनिक सेवा के अफसरों को इनके नीचे रखा गया है. हलफनामे से साफ़ है कि सरकार ने शंभू सिंह यादव को इस महत्वपूर्ण पद पर बिठाने के लिए हाईकोर्ट के मौजूदा व रिटायर्ड जजेज के आवेदन की भी अनदेखी की.
प्रमुख सचिव देवाशीष पांडे के हलफनामे से पता चलता है कि यूपी सरकार ने उप लोकायुक्त पद के लिए इसी साल चौबीस फरवरी को विज्ञापन जारी किया. अठारह मार्च तक जिन लोगों सौ लोगों के आवेदन आए, उन पर चर्चा की गई.
चार अगस्त को दिलाई थी शंभू सिंह यादव को शपथ
चीफ सेक्रेट्री की अगुवाई में गठित सर्च कमेटी ने तीस मई व सात जून को बैठक कर एक पैनल तैयार कर उसे सीएम ऑफिस भेजा. सीएम अखिलेश यादव और लोकायुक्त संजय मिश्र ने चौदह और बीस जुलाई को बैठक कर शंभू सिंह यादव का नाम तय किया. गवर्नर राम नाइक ने चार अगस्त को शंभू सिंह यादव को शपथ दिलाई थी.
गौरतलब है कि शंभू सिंह यादव प्रमोशन पाकर आईएएस बने थे. उन्हें सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी व चहेते अफसरों में शुमार किया जाता रहा है. रिटायरमेंट के बाद अखिलेश सरकार ने उन्हें तीन साल का एक्सटेंशन भी दिया था. एक्सटेंशन पाकर वह सीएम अखिलेश यादव के दफ्तर में सचिव पद पर काम करते रहे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील अनूप बरनवाल ने उनकी नियुक्ति को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर रखी है. अर्जी में शंभू सिंह यादव की नियुक्ति को नियमों के खिलाफ बताते हुए उसे रद्द किये जाने की मांग की गई है.