महिला आज़ादी का नारा लगाने वाले कहां हैंः रोहित सरदाना

तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दायर कर जो जवाब दिया वह सच में चौंकाने वाला है। इस मामले में बोर्ड की दलीलों को लेकर किसी भी प्रकार के विरोध का स्वर मुखर नहीं हुआ। महिलाओं के अधिकारों को लेकर कोई आवाज नहीं उठी इसी संदर्भ में मशहूर टीवी एंकर रोहित सरदाना ने एक फेसबुक पोस्ट लिखा है। सरदाना ने इस मामले में लोगों से यह सवाल किया कि किस ऑफ़ लव के नाम पे महिला आज़ादी की मार मचा देने वाले बुद्धिजीवियों को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलीलें सुनने के बाद सांप सूंघ गया क्या?
रोहित सरदाना का पोस्ट
'वो घर में उनका कत्ल कर दें, इससे अच्छा है कि उन्हें तलाक़ दे दिया जाए।' 'पुरूष ज़्यादा समझदार होते हैं, उनका अपनी भावनाओं पर बेहतर कंट्रोल होता है, वो आनन फानन में फैसले नहीं लेते, इस लिए तीन तलाक का न्यायसंगत इस्तेमाल कर सकते हैं' 'किसी से अवैध संबंध रखने से बेहतर है कि पुरूष को घर में दूसरी वैध पत्नी रखने की इजाज़त हो' ये वो दलीलें हैं जो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अदालत में तीन तलाक के मामले पर सुनवाई के दौरान रखीं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड वो संस्था है जिसका गठन इस लिए किया गया था कि संविधान के दायरे में शरिया कानूनों के मुताबिक़ मुसलमानों के कानूनी हितों की रक्षा हो सके। ये अलग बहस का विषय है कि कितने मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मानते हैं।
लेकिन मेरा सवाल ये है कि आम तौर पर किसी भी छोटे बड़े मसले में महिला आज़ादी का नारा लगाने वाले संगठन / संस्थाएं / नेता / व्यक्ति / पोस्टरब्वॉयज़ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ये दलीलें सुनने के बाद कहां जा दुबके हैं ? आज जब एक बार फिर महिलाओं को उनके साथ की दरकार है, तो उन लोगों को सांप क्यों सूंघ गया है? चार दिन पहले की तो बात है। पर्यटन मंत्री महेश शर्मा के एक स्कर्ट वाले बयान पर हंगामा मचा रहा। मंत्री ने कहा मैंने सलाह दी, कोई कानून नहीं बनाया। स्कर्ट का उदाहरण दिया कोई नियम उद्धृत नहीं किया। लेकिन महिला आज़ादी के पैरोकार स्कर्ट से हर्ट हो चुके थे। बहस यहां तक चली गई कि कई मंदिरों में पुरूषों को तो सिर्फ धोती पहन कर जाने की छूट है वो ऊपर नंगे ही रहते हैं, जबकि महिलाओं से कहा जाता है कि साड़ी में लिपट कर आओ। ज़ाहिर है, इसके बाद किसी के पास कोई जवाब नहीं था। महिला आज़ादी की सीमा महिला ही तय करेगी – पुरूष कैसे करेगा ?