नकली पत्रकारों की फौज : सत्ता का नया कवच! सवाल पूछने वाले असली पत्रकार किनारे, चाटुकारिता करने वाले नकली चेहरे आगे
आनन्द गुप्ता/के0के0 सक्सेना
बहराइच। अधिकारी और नेता अब अपनी नाकामियों और कमियों पर पर्दा डालने का नया तरीका ईजाद कर चुके हैं। सच्चाई लिखने वाले पत्रकारों से घबराकर सत्ता ने फर्जी कलमधारियों की पूरी फौज खड़ी कर ली है। ये वही लोग हैं जिन्हें पत्रकारिता का ‘प’ तक नहीं मालूम, लेकिन संगठनों की बैसाखियों पर चढ़ाकर इन्हें मंच पर बैठा दिया जाता है और असली पत्रकारों को दरकिनार कर दिया जाता है।
विडंबना देखिए, जहां कभी पत्रकारिता समाज का आईना हुआ करती थी, आज वहीं नकली पत्रकारों की भीड़ सत्ता के आईने में सिर्फ तारीफ का चेहरा दिखाने में लगी है। सच बोलने वाले कलमकारों को दबाने के लिए इन्हें आगे कर दिया गया है। अब सवाल पूछना अपराध और चापलूसी करना उपलब्धि माना जा रहा है।
असल पत्रकारिता पर यह हमला न सिर्फ मीडिया की गरिमा को कलंकित कर रहा है, बल्कि जनता को गुमराह करने का बड़ा षड्यंत्र भी है।
जनता का सीधा सवाल – जब नकली कलम सत्ता का गीत गाएगी और असली आवाज़ दबा दी जाएगी, तब हकीकत तक आपकी पहुँच कौन कराएगा? क्या लोकतंत्र सिर्फ चमचों की तालियों से चलेगा?
निष्कर्ष – यदि समाज नकली पत्रकारिता की इस चाल को नहीं पहचान पाया, तो कलम सच लिखने का नहीं, सत्ता की चमचागिरी का औजार बनकर रह जाएगी। और उस दिन लोकतंत्र की असली ताक़त – जनता की आवाज़ – हमेशा के लिए दब जाएगी।