झूठ की उम्र भले ही छोटी हो, पर वह हंसी का बड़ा संसार रच सकता है — यही बात रंगमंच पर जीवंत हुई बिम्ब सांस्कृतिक समिति के हास्य नाटक “नहीं रचेंगे स्वांग भइया, हम तो चले हरिद्वार” में। संस्कृति मंत्रालय, संस्कृति निदेशालय उत्तर प्रदेश और भारतीय स्टेट बैंक के सहयोग से राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में प्रस्तुत इस नाटक ने दर्शकों को न केवल हंसाया बल्कि जीवन की सादगी और सत्य की सार्थकता का संदेश भी दे गया।
लेखक रामकिशोर नाग की कलम ने आम मध्यमवर्गीय परिवार के झंझटों में से हास्य की धारा निकाल ली है। एक अखबारी विज्ञापन से शुरू होती यह कहानी बुजुर्ग चन्द्रप्रकाश बाबू के झूठ और दिखावे के बोझ तले उलझते बेटा-बहू रवि और ज्योति की कथा है। “अगर साल भर में दादा नहीं बने तो पांच करोड़ का हर्जाना!” जैसी हास्यास्पद शर्तें कहानी को ऐसी परिस्थितियों में ले जाती हैं, जहां झूठ पर झूठ की परतें हंसी और व्यंग्य दोनों का स्वाद देती हैं।
निर्देशक महर्षि कपूर का निर्देशन नाटक की गति और दृश्य-संयोजन दोनों में संतुलन बनाए रखता है। मंच पर हर दृश्य क्रियात्मक हास्य के रूप में खुलता है—कभी नकली लकवे की एक्टिंग से, तो कभी झूठी मेडिकल रिपोर्टों के सहारे। अंततः जब चन्द्रप्रकाश बाबू थककर कहते हैं – “नहीं रचेंगे स्वांग भइया, हम तो चले हरिद्वार!” – तो यह संवाद महज़ एक संवाद नहीं, बल्कि दिखावे से मुक्ति की घोषणा बन जाता है।
गुरुदत्त पाण्डेय ने चन्द्रप्रकाश बाबू की भूमिका में जीवन्तता और सहजता का सुंदर संगम दिखाया। अभिषेक कुमार पाल और इशिता वार्ष्णेय ने रवि-ज्योति के रूप में युवा पीढ़ी की उलझनें और आधुनिक जीवन की मजबूरियों को प्रभावशाली ढंग से उभारा। सह-कलाकारों में नीलम वार्ष्णेय, विवेक रंजन सिंह और अम्बुज अग्रवाल ने भी अपने किरदारों को जीवंत किया।
पार्श्व में तमाल बोस का प्रकाश संयोजन और नियति नाग का संगीत वातावरण निर्माण में महत्वपूर्ण रहे। वेशभूषा और मंचसज्जा में सरिता कपूर, सारिका श्रीवास्तव व सहयोगी कलाकारों का कार्य उल्लेखनीय रहा।
प्रस्तुति में बुजुर्ग चन्द्रप्रकाश की भूमिका में गुरुदत्त पाण्डेय ने कुशलता से निबाही। बेटे रवि का चरित्र अभिषेक कुमार पाल और बहू ज्योति का किरदार इशिता वार्ष्णेय ने जिया।
बुआजी- नीलम वार्ष्णेय
पहले बॉस- विवेक रंजन सिंह व दूसरे बॉस- अम्बुज अग्रवाल बनकर मंच पर उतरे। मंच पार्श्व के पक्षों में प्रकाश- तमाल बोस,
संगीत- नियति नाग के संग मेकअप, मंचसज्जा, वेश
आदि अन्य पक्षों में सरिता कपूर, सारिका श्रीवास्तव, लकी चौरसिया, अभिषेक पाल, नेहा चौरसिया, अनुकृति श्रीवास्तव, अक्षत श्रीवास्तव और आस्था श्रीवास्तव ने प्रतिभा दिखायी। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर एमएलसी पवन सिंह चौहान ने कला समीक्षक राजवीर रतन को अंगवस्त्र व स्मृति चिह्न देकर योगदान के लिये सम्मानित भी किया।
नाटक के अंत में दर्शक ठहाकों के बीच यह भी समझ लेते हैं कि झूठ का बोझ चाहे कितना हल्का क्यों न लगे, अंततः सच्चाई ही राहत देती है।