ओंकारेश्वर में महादेव चौसर खेलते हैं, रात्रि विश्राम करते हैं शिव-पार्वती

Update: 2020-06-30 07:00 GMT

प्रेम शंकर मिश्र ...

नर्मदा किनारे बसा ओंकारेश्वर मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इसके दर्शन के बिना चारों धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना राजा मांधाता ने की थी। उन्हें भगवान राम का पूर्वज माना जाता है। यह मंदिर वेद कालीन है। भगवान शिव के सोलह सोमवार के व्रत की कथा में भी इसका उल्लेख आता है। मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती रोज रात में यहां आकर चौसर-पांसे खेलते हैं। रात में शयन आरती के बाद ज्योतिर्लिंग के सामने रोज चौसर-पांसे की बिसात सजाई जाती है। ये परंपरा मंदिर की स्थापना के समय से ही चली आ रही है। कई बार ऐसा हुआ है कि चौसर और पांसे रात में रखे स्थान से हटकर सुबह दूसरी जगह मिले।

नर्मदा तट पर ओंकारेश्वर में  भगवान की शयन आरती महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवान राम के पूर्वज राजा मान्धाता ने यहां तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ यहां स्वयं प्रकट हुए, जिनसे उन्होंने यह वरदान मांगा कि दिन में वे तीन लोक में चाहे जहां भ्रमण करे, लेकिन रात्रि विश्राम माता पार्वती के साथ ओमकारेश्वर में ही करें। इसे भगवान शिव ने स्वीकार किया और तबसे यहां शयन की आरती का महत्त्व है।

दूसरी बड़ी विशेषता यह भी है कि यहां भगवान भोलेनाथ स्वयंभू रूप प्रकट हुए, इसलिए यहां कोई स्थापित शिवलिंग भी नहीं है। महशिवरात्रि पर यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिए जुटते है, इसलिए यहां लगातार 36 घंटे दर्शन की व्यवस्था रखी गयी है, जिससे प्रत्येक श्रद्धालु दर्शन लाभ पा सके। आज शयन की आरती जो सामान्यत: रात्रि 9 बजे होती है, वह भी सुबह 3 बजे होगी। इधर मंदिर प्रशासन ने आम लोगो की सुविधा को देखते हुए पर्व के दौरान वीआईपी दर्शन सुविधा को बंद कर दिया है। इधर नर्मदा के घाट पर श्रद्धालुओं के स्नान के लिए प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए हैं।

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