भाजपा देर—सबेर, हंस के, रो के, गा के, जैसे भी हो पूरा करेगी नितीश की मांग

Update: 2017-09-03 05:01 GMT

पेंच जदयू का नहीं फंसा है. जदयू ने तो अपर हैंड कर लिया है अपना. नीतीश कुमार के बयान के बाद जदयू अपर हैंड में आ गयी है बारगेनिंग के मामले में. मामला शिवसेना के कारण फंसा है. शिवसेना के साथ भाजपा बार्गेन नहीं कर पा रही. उसके कारण सहयोगी दलों को भी इस पारी में मंत्रिमंडल में शपथ नहीं दिलवाया जा रहा. भाजपा से नीतीश कुमार की जो मांगे हैं, उसे भाजपा देर—सबेर, हंस के, रो के, गा के, जैसे भी हो पूरा करेगी. यह भाजपा की मजबूरी है, विवशता है.

भाजपा के लिए नीतीश को इग्नोर करना इतना आसान नहीं है. भाजपा ने नीतीश को अपने पाले में कर के सिर्फ एक क्षेत्रीय दल अथवा एक राज्य के नेता को शामिल नहीं किया है, बल्कि विपक्षी दलों के दुलहा को ही ले लिया है अपने पाले में. भाजपा दुलहे को संभालकर रखेगी. सहबालाओं से लड़ाई लड़ रहे हैं विपक्षी दल और गांव—घर में बारात में सहबालाओं का हाल तो जानते ही होंगे. कल के मंत्रिमंडल में जदयू को शामिल नहीं किये जाने के बाद सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया के लोग नीतीश को एकदम मजबूर नेता बता रहे हैं भाजपा के सामने. मिमियाते हुए मेमने की तरह. सच तो यही है न कि अभी भी नीतीश कम से कम भाजपा के सामने आगामी लोकसभा चुनाव तक मजबूर नहीं बल्कि मजबूत नेता हैं. तमाम राजनीतिक घटनाओं के बावजूद नीतीश में वह दम है कि वे एक बार पलटी मारे, भाजपा से अलग हो जाये और चतुराई के साथ कारण बता दें तो भले ही नीतीश के कैरियर में भी ढलान आ जाये लेकिन भाजपा का बड़ा खेल बिगाड़ सकते हैं. इसमें तो कोई संदेह नहीं न कि देश में जो विपक्षी दल हैं वे लालू प्रसाद यादव की तुलना में नीतीश के साथ गोलबंद होना पसंद करेंगे. अब भी, इस हालात में भी. कई बार यह देखा जा चुका है कि नीतीश कुमार यू टर्न लेते हैं, एकदम से पलटी मारते हैं और वाम, कांग्रेस समेत कई और दल नीतीश से गलबहियां करने को पलक पांवड़े बिछा देते हैं. भाजपा को यह मालूम है कि नीतीश जिस स्तर पर भाजपा के शरणागत हुए हैं, यदि इसी स्तर पर जाकर कांग्रेस के शरणागत हो गये तो फिर भाजपा के लिए बहुत मुश्किल हो न हो, राह आसान भी न होगी.



निराला बिदेशिया

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