2007 में गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा : सीबीआई जांच की मांग पर फैसला सुरक्षित

Update: 2017-03-25 01:36 GMT
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोरखपुर में 2007 में हुए दंगे की सीबीआई या किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले की एफआईआर हाईकोर्ट के आदेश पर 2008 में गोरखपुर जिले के कैंट थाने में दर्ज की गयी थी। जिसमें सीएम आदित्यनाथ योगी, तत्कालीन विधायक राधा मोहन अग्रवाल और तत्कालीन मेयर गोरखपुर अंजू चौधरी समेत अन्य को आरोपी बनाया गया है। एफआईआर में आरोप है कि सीएम योगी व अन्य आरोपियों ने लोगों को दंगे के लिए उकसाया। परवेज परवाज और असद हयात की इस याचिका पर जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस कृष्णा प्रताप सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई की।

याचिका में कहा गया है कि फिलहाल इस घटना की विवेचना सीबीसीआईडी ​​द्वारा की जा रही है। इसलिए आशंका है कि पुलिस इस मामले में निष्पक्ष जांच नहीं कर पाएगी। याचिका में मांग की गई है कि इस मामले की जांच सीबीआई या किसी स्वतंत्र एजेंसी को ट्रांसफर की जाए। याचिकाकर्ता के वकील एसएए नकवी ने कहा कि सीबीसीआईडी ने अपने हलफनामे में कहा है कि इस मामले में आईपीसी की धारा 153 ए (सांप्रदायिक हिंसा को उकसाना) के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी राज्य सरकार से लेनी होगी।

गौरतलब है कि मुकदमा चलाने के लिए जिस सरकार को मंजूरी देनी है उसके मुखिया इस मामले में आरोपी हैं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद फिलहाल कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित कर लिया है।

यह था पूरा मामला
याची के अधिवक्ता सैयद फरमान नकवी के मुताबिक 2007 में गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था। दंगा भड़काने के आरोप में महंत आदित्यनाथ योगी, राधा मोहन अग्रवाल, अंजू चौधरी आदि के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अर्जी परवाज परवेज और अशद हशमत ने अधीनस्थ न्यायालय में दी। लेकिन निचली अदालत ने अर्जी खारिज कर दी तो उसके खिलाफ हाईकोर्ट में निगरानी दाखिल की गयी। हाईकोर्ट के आदेश पर 2008 में गोरखपुर के कैंट थाने में मुकदमा दर्ज किया गया। बाद में मुकदमे की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी गयी। याचियों ने दोबारा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से कराने की मांग की है।

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