"योगी जी बतायें पूछ रही आवाम"
ना लेते संज्ञान ।
आपके अधिकारी ।।
आपकी है सत्ता ।
फिर क्यों लाचारी ?
कथनी-करनी अलग ।
ना दिखे परिणाम ।।
योगी जी बतायें ।
पूछ रही आवाम ।।
लालफीताशाही ।
ना हुई दूर ।।
जमे जमाये अफ़सर ।
सपने चकनाचूर ?
व्यंग्यात्मक लेखक : कृष्णेन्द्र राय