............अभय सिंह
कांप उठा काबुल।
ताबड़तोड़ धमाका।।
सिहर उठी दुनिया।
कौन है इसके आका?
धौंस और दहशत।
क्रूर हैवानियत खेल।।
बही लहू का दरिया।
व्यवस्था हुई फेल।।
सदमे में मनुजता।
संत्रास का प्रकोप।।
मचा रखें है उत्पात।
बगैर वो रोक टोक।।
भयावह जो मंजर।
गमगीन है नजारा।।
क्या था उनका कसूर?
हो गए हैं बेसहारा।।