"बढ़े बांग्लादेशी निकाल करो बाहर" व्यंग्यात्मक कविता: कृष्णेन्द्र राय

Update: 2018-09-09 09:47 GMT

बढ़े बांग्लादेशी ।

निकाल करो बाहर ।।

ढूँढ कर निकालो ।

छुपे गाँव शहर ।।

हो सकते घातक ।

दिमाग़ ख़ुराफ़ाती ।।

भेजो इनके मुल्क ।

चढ़े हमारे छाती ।।

निदान है ज़रूरी ।

घातक ये नासूर ।।

हम क्यों झेलें..?

हमारा क्या क़सूर...?

व्यंग्यात्मक लेखक : कृष्णेन्द्र राय

Krishnendra Rai

Similar News