बढ़े बांग्लादेशी ।
निकाल करो बाहर ।।
ढूँढ कर निकालो ।
छुपे गाँव शहर ।।
हो सकते घातक ।
दिमाग़ ख़ुराफ़ाती ।।
भेजो इनके मुल्क ।
चढ़े हमारे छाती ।।
निदान है ज़रूरी ।
घातक ये नासूर ।।
हम क्यों झेलें..?
हमारा क्या क़सूर...?
व्यंग्यात्मक लेखक : कृष्णेन्द्र राय
Krishnendra Rai