लालकिला...

Update: 2018-04-29 13:23 GMT
भारत की छाती पर बना यह महल उसी गाजी शाहजहाँ का बनवाया हुआ है, जिसने जूझर सिंह के ग्यारह वर्ष के पोते को केवल इसलिए कटवा दिया क्योंकि वह हिन्दू था। जिसने ओरछा के सभी मंदिरों को अपवित्र कर तुड़वा दिया। जिसने असंख्य बुन्देला स्त्रियों को लूट कर अमीरों के हरम में भेज दिया।
लालकिला का सौंदर्य उन असंख्य महलों-मन्दिरों के सौंदर्य का एक प्रतिशत भी नहीं, जिन्हें मुगलों ने तोड़ दिया।
भारत के असंख्य मजदूरों के रक्त से लाल हुआ लाल किला भारत की सम्पन्नता का प्रतीक नहीं, भारत के माथे पर उपजा कोढ़ का दाग है।
दिल्ली की गद्दी पाने के बाद जब कुतुबुद्दीन ऐबक की नजर लालकोट के किले पर पड़ी तो उसने किले के सत्ताईस बौद्ध-जैन मंदिरों को तोड़ कर उन्हीं के मलबे सर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनवाई। उसे इस्लाम की कुव्वत बतानी थी, सो सारे मन्दिरों को तोड़ दिया गया और सारे पुजारियों को काट डाला गया।
भारतीय इतिहास के स्वर्णयुग के सर्वश्रेष्ठ शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के बनवाये मेहरौली किले और स्तम्भ को तोड़ कर उससे कुतुब मीनार बनवाई गई।
कुतुब मीनार भारत की शान नहीं, भारत की छाती पर गड़ा परतन्त्रता का शूल है।
ताजमहल के तेजो महालय होने की कहानी के पीछे का सत्य जो भी हो, पर इस प्रश्न का उत्तर किसी इतिहासकार के पास नहीं कि कथित रूप से मुगलों द्वारा बनवाये गए 'जहाँगीरी महल, आगरा के किले और ताज" हिन्दू शैली में क्यों बने हैं, जबकि मुगल हिन्दू शब्द तक से नफरत करते थे।
ताज प्रेम का प्रतीक नहीं, मुगलिया आतंक का चिन्ह भर है।
मैं अबतक तीन बार दिल्ली गया हूँ, पर कभी उधर झाँकने भी नहीं गया।
मुझे घिन्न आती है इन अरबी चिन्हों पर...
मुझे सन्तोष तब होता है जब कोई लालबहादुर शास्त्री, नरसिम्हा राव, अटलबिहारी बाजपेयी या नरेंद्र मोदी इस लालकिले की छाती पर चढ़ कर मेरा तिरंगा फहराता है।
मुझे सन्तोष होता है जब राजेन्द्र प्रसाद या अब्दुल कलाम जैसा कोई गरीब का बेटा इन महलों का राजा बनता है।
मुझे मजा आता है जब इन महलों को एक आम घर की तरह भाड़े पर दे दिया जाता है।
लालकिले को भाड़े पर दिए जाने का विरोध करना आपका अधिकार है; आप करिये, पर भारत की पीठ पर छपे अरबी आतंक के चिन्ह इन इमारतों की दीवाल पर जब भारत के गरीबों के बच्चे सुसु करने लगेंगे, तब समझूँगा कि देश स्वतन्त्र हो रहा है।
मोदी मेरे स्वाभिमान की पहली सीढ़ी हैं, मुझे उनसे कोई आशा नहीं। मेरी आशाओं को पंख पाँचवी सीढ़ी के बाद लगेंगे।
युग बदलेगा, भारत भी भारत होगा...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

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