सृष्टि में विद्यमान लगभग सभी चीजों का पतन सुनिश्चित है। लेकिन जब वांछित समय से पहले कोई चीज पतित हो जाये तो उसे शीघ्रपतन की श्रेणी में रख दिया जाता है। भारत ही नहीं समूचे विश्व में अनगिनत वैद्य/हकीम......रहमानी, सुलेमानी पतन शब्द के आगे शीघ्र जोड़ कर करोड़ों ऐंठ रहे हैं। रेलवे लाइन के समानांतर दीवारों पर इनके चीखते विज्ञापन न जाने कितने यात्रियों को मोबाइल नं० लिखने को मजबूर कर देते हैं..... खैर! यह तो बड़ी अन्दर की बात हो गई हमको तो केश पतन की शीघ्रता के विषय में चर्चा करनी थी।
पता नहीं, आबोहवा क्या बदली! कि तुम (केश) जीवन की आधी यात्रा में बेवफाई कर गये। ऐसा भी नहीं कि कभी मैने तुमसे कुछ कहा हो, कभी तुम्हारे स्वाभिमान से खेला हो या तुम्हारी हिफाजत में कोई कोताही बरती हो.... लेकिन जिसे साथ छोड़ कर जाने का मन बना ही लिया हो उसे कैसे रोका जा सकता है। यह भी मलाल नहीं है कि मैने तुम्हें रोकने और ठहरने के लिये प्रयास और इंतिजाम नहीं किये... एड़ी-चोटी एक कर दिया... अग्रेज़ी, होमयोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी से लेकर शीर्षासन और भुजंगासन तक...क्या क्या नहीं आजमाया....जिसने जो तेल बताया दौड़ पड़े बाज़ार की तरफ। नाखून रगड़ने से लेकर नींबू, दही,मुलतानी मिट्टी, रीठा कौऊन सा चौऊखट बचा जहाँ मथ्था न टेका हो । लेकिन मजाल है कि तुम्हारी बेरुखी मे रत्ती भर भी फरक आया हो..
चलो हम तो इस पर भी तैयार हैं कि तुम्हारे बिना हम जैसे- तैसे ढक तोप के रह लेंगे । लेकिन इ जमाने को कैसे समझायें! उनकी पोस्टमार्टम करती निगाहों से कैसे बचें!! पता नहीं इनको हमारे खेतों की उर्वरा को लेकर काहें छाती फटती है.... किशोरावस्था में जब तुम अपने ऊफान और तूफान पर थे तो किसी को फूटी आंख नहीं सुहाते थे..... किसी को झोंटा दीखते थे किसी को झऊवा! किसी को जुल्फी दिखते थे तो किसी को बबरी!! सभी को तुम्हारी जवानी में आवारगी और शोहदेपन की बू आती थी.... मामूली अपमान सहा तुमने? तुमने जरा सा सिर उठा कर झूमने का प्रयास किया कि हज्जाम साहब हाजिर! उसके बाद काटपीट बराबर!!..... अरे तुम्हारे नैसर्गिक चंचलता पर उस्तरे चला दिये जाते थे। क्या मामूली अपमान किया इ जालिम दुनिया ने... और जब आज खेत खाली हो रहा है तो वही लोग परती पर रोना रोने चले आये!.. अरे गजब है भाई, जब बाल अपनी जवानी की मचान पर थे तब तो आप खूंटा उखाड़ने के फिराक़ में रहते थे और आज जब डोली उठ गई तो आप घरवापसी के लिये चिंतित हो गये।
अऊर जमाने को देखिए कि एक-एक बाल की खबर है उनकों जैसे रोज एकाउंट मेन्टेन करते हों। अरे! अब तो इतना झड़ गया? यहाँ से खाली हो गया?..... वहां से उड़ गया...पूरे गंजे हो गये! और हम तुम्हारे बेवफाई पर लगते हैं पर्दा डालने कि बस अभिये नहा कर आये हैं इसीलिए बाल चिपके हैं..... रूसी से थोड़ा बाल कमजोर हो गये हैं.....लगते हैं दो प्यादों को पूरे शतरंज के बिसात पर दौड़ाने......
शादी ब्याह में तो जाने का मने नहीं करता है। लोग एक हाथ से न्योता पकड़ते हैं और नजरों से खोपड़ी पढ़ते हैं.... और विवाह की व्यस्तता में भी एक दवा बता कर निकल जाते हैं....... सिर को ढक कर निकलना भी मुश्किल है, लगातार तुम्हें पर्दे में छिपाना भी लोगों तक यह संदेश छोड़ जाती हो कि तुम पतित हो गये हो।
लोग यह भी कहते पाए जाते हैं कि चिंता से भी बाल झड़ते हैं। क्या तुम्हारा असमय चले जाना कोई मामूली चिंता का विषय है कि तुम्हें छोड़कर दूसरी चिंता करूँ.... वैसे मुझे यह भी पता है कि जब तुम अपनी पूरी फौज के साथ थे तब भी कुछ विशेष उखड़ नहीं पाया और आज जब अस्सी फीसदी सेना शहीद हो गई तो हम भी मुट्ठी भर से जग जीतने का झूठा ख्वाब देखने लगते हैं..... वैसे आत्मसमर्पण में कोई बुराई नहीं है, बड़े बड़े योद्धाओं ने आत्मसमर्पण किये हैं....फिर भी अगर तुम हिम्मत न छोड़ते तो शायद हम भी कुछ देर तलवारबाज़ी कर लेते... थोड़ा सर उठा कर चहक लेते....महक लेते लेकिन तुम तो मुझे शस्त्र विहीन करके, रणक्षेत्र में अकेला छोड़कर चले गये.......
Miss you दोस्त.....😐
रिवेश प्रताप सिंह
गोरखपुर