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सऊदी में अब नहीं चलेगी शेखों की मनमानी! अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ सकते हैं भारतीय कर्मचारी

सऊदी में अब नहीं चलेगी शेखों की मनमानी! अपनी मर्जी से नौकरी छोड़ सकते हैं भारतीय कर्मचारी
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सऊदी अरब ने 50 साल पुराने कफाला सिस्टम को खत्म कर दिया है. इसका पूरा नाम कफाला लेबर स्पॉन्सरशिप सिस्टम था जिसने कफील (जो नौकरियों पर रखते थे) को अपने कर्मचारियों या मजदूरों पर अमानवीय नियंत्रण रखने की अनुमति देती थी. ये कफील भारत जैसे देशों से काम करने आए लोगों का पासपोर्ट अपने पास रख लेते थे, वही यह फैसला लेते थे कि ये कर्मजारी अपनी नौकरी कब बदल सकते हैं या कब देश छोड़ सकते हैं. अब यह कफाला सिस्टम ही खत्म हो गया है.

सऊदी अरब ने जून में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के 'विजन 2030' के हिस्से के रूप में कफाला सिस्टम को समाप्त करने की योजना की घोषणा की थी. सऊदी विदेशी निवेश को लाने के लिए अपने देश की छवि को साफ करना चाहता है और उसके लिए ही उसने विजन 2030 के नाम से एक बहु-खरब डॉलर की योजना शुरू की है.

उम्मीद है कि सऊदी अरब के फैसले से 25 लाख भारतीयों समेत सऊदी में काम करने वाले करीब 1.3 करोड़ विदेशी कामगारों को फायदा होगा.

आधिकारिक बयान के अनुसार, विजन 2030 एक खाका है जो अर्थव्यवस्था में विविधता ला रहा है, नागरिकों को सशक्त बना रहा है, स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों निवेशकों के लिए एक जीवंत वातावरण बना रहा है और सऊदी अरब को एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित कर रहा है.

क्यों लाया गया था यह ‘काला कानून'?

1950 के दशक में शुरू किए गए इस कफाला सिस्टम का उद्देश्य भारत और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से आने वाले कुशल और अकुशल विदेशी मजदूरों को कंट्रोल करना था. यह सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि कई लोगों को यहां के निर्माण या मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्रों में काम करने के लिए बनाया गया था.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि आने वाले मजदूरों से अर्थव्यवस्था चरमरा न जाए, उन सभी को कफाला (कफील) से 'बांध' दिया गया, जो उनके 'स्पॉन्सर' के रूप में काम करने वाला एक व्यक्ति या फर्म हो सकता था. इस 'स्पॉन्सर' को विदेशी कर्मचारी पर हर तरह का कंट्रोल दे दिया गया था. यह 'स्पॉन्सर' इन मजदूरों या कर्मचारियों के जीवन को नियंत्रित करता था, वो कैसे काम करेंगे- इसके संबंध में निर्णय लेना, उनकी मजदूरी चुराना और यहां तक ​​कि यह तय करना भी शामिल था कि वे कहां रह सकते हैं.

इन मजदूरों के पास अपने खिलाफ हो रहे दुर्व्यवहार को अनुमति देने के अलावा कोई चारा भी नहीं था, वो कहीं मदद मांगने भी नहीं जा पाते थे. कुशल या व्हाइट कॉलर जॉब में तो लेबर के लिए यह प्रणाली उतनी बुरी नहीं थी लेकिन कई मजदूरी करने वालों के लिए इसने जिंदगी को नर्क बना दिया था.

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