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लोकसभा में इतिहास बना : राष्ट्रगीत पर महाबहस — PM मोदी ने कहा- वंदे मातरम् स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा, विपक्ष बोला राजनीति से ऊपर उठे

लोकसभा में इतिहास बना :  राष्ट्रगीत पर महाबहस — PM मोदी ने कहा- वंदे मातरम् स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा, विपक्ष बोला राजनीति से ऊपर उठे
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

संसद के शीतकालीन सत्र में आज भारत की सांस्कृतिक चेतना और स्वतंत्रता-संघर्ष की धड़कन ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर लोकसभा में विशेष ऐतिहासिक चर्चा आयोजित की गई।

इस बहस का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, जिसमें सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों दलों के वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया।

सदन में आज का वातावरण भावनात्मक ऊर्जा, राजनीतिक बहस और राष्ट्रीय गौरव के अद्भुत संगम का प्रतीक बन गया।

चर्चा का मूल उद्देश्य था— राष्ट्रगीत की ऐतिहासिक धरोहर का पुनर्स्मरण, भारतीय पहचान की पुनर्स्थापना और गीत के विवादित अध्यायों की समीक्षा।

PM मोदी का संबोधन — वंदे मातरम् को बताया ‘राष्ट्रगौरव की आत्मा’

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि -

“वंदे मातरम् स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा था, जिसने अंग्रेजी शासन की रीढ़ हिला दी थी। यह गीत लाखों क्रांतिकारियों में आज़ादी की आग बनकर धधका।”

उन्होंने तीखे शब्दों में आरोप लगाया कि 1937 में कांग्रेस नेतृत्व ने गीत के महत्वपूर्ण छंद हटाए, जिसे उन्होंने राष्ट्रगीत की गरिमा को “खंडित करने” जैसा बताया।

मोदी ने कहा कि यह सिर्फ साहित्यिक बहस नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा और उसकी अस्मिता से जुड़ा मुद्दा है।

उन्होंने सदन से अपील की कि -

“वंदे मातरम् को चुनावी बहस या पक्ष-विपक्ष की सीमा में न बांधा जाए— यह भारतीय आत्मीयता और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।”

इस बहस का उद्देश्य और संसद का दृष्टिकोण

इस विशिष्ट विषय को समझने और उसकी ऐतिहासिक परतों को खोलने के लिए 10 घंटे का समय आरक्षित किया गया— जिसे संसदीय इतिहास में एक बड़ा निर्णय माना जा रहा है।

बहस के अगले चरण में राज्यसभा में चर्चा जारी रहेगी, जिसका नेतृत्व गृह मंत्री अमित शाह करेंगे।

सदन की कार्यवाही आज राष्ट्रवाद, संविधान और ऐतिहासिक सम्मान की बहुपरत लड़ाई का मंच बन गई।

विपक्ष की प्रतिक्रिया — ‘गीत को चुनावी हथियार न बनाएं’

विपक्षी सांसदों ने कहा कि -

वंदे मातरम् भारत की सामूहिक अस्मिता और त्याग का प्रतीक है

और इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण या भावनात्मक लाभ के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।

विपक्ष का तर्क रहा कि

1937 में कुछ पंक्तियाँ हटाना धार्मिक-सांप्रदायिक संतुलन और सभी समुदायों की भावनाओं का सम्मान करने के उद्देश्य से किया गया था, ताकि राष्ट्रीय गीत सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य बने।

विपक्ष ने आरोप लगाया कि सत्तापक्ष इस मुद्दे को आगामी चुनावी परिदृश्य में भावनात्मक हथियार के रूप में प्रयोग करना चाहता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि — विवाद कैसे आरम्भ हुआ

1875 में Bankim Chandra Chattopadhyay द्वारा रचना

बाद में Anandamath उपन्यास में शामिल

1896 में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार सार्वजनिक प्रस्तुति

1937 में धार्मिक संदर्भों वाले छंद हटाकर सिर्फ दो छंद को आधिकारिक मंजूरी

1950 में संविधान सभा ने इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता प्रदान की

परिषद में उठे मुख्य विवाद

मुख्य प्रश्न सत्तापक्ष की स्थिति विपक्ष की स्थिति

1937 में छंद हटाना राष्ट्रगीत की अखंडता को चोट धर्म-सांप्रदायिक संतुलन की आवश्यकता

पूर्ण गीत गाने का प्रस्ताव हाँ — ऐतिहासिक सम्मान लौटे अत्यधिक संवेदनशील, संतुलन जरूरी

बहस का वास्तविक कारण राष्ट्रीय एकता और गौरव चुनावी ध्रुवीकरण का भय

क्यों यह बहस अत्यंत महत्वपूर्ण -

150 वर्ष — इतिहास के पुनर्लेखन का असाधारण अवसर

राष्ट्रीय प्रतीकों के महत्व, उपयोग और मर्यादा पर नीति निर्माण की दिशा खुल सकती है

शिक्षा संस्थानों, सरकारी समारोहों और सांस्कृतिक मंचों पर प्रभाव पड़ सकता है

भारत की बहुलता बनाम सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बहस नई दिशा ले सकती है

आज की संसदीय बहस ने यह साबित किया कि

वंदे मातरम् एक गीत नहीं — भारतीय राष्ट्रवाद की आत्मा, विविधता और सांप्रदायिक संवेदनशीलता के मध्य संतुलन का संघर्षशील प्रतीक है।

150 वर्ष पुराने प्रश्न आज भी उतने ही जीवंत और राजनीतिक-वैचारिक रूप से प्रासंगिक हैं जितने स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में थे।

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