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एयर इंडिया फ्लाइट AI-2939 में स्मोक-अलर्ट और इमरजेंसी-लैंडिंग — False Alarm का बड़ा सबक, 170 ज़िंदगियों को सुरक्षा-कवच मिला

एयर इंडिया फ्लाइट AI-2939 में स्मोक-अलर्ट और इमरजेंसी-लैंडिंग — False Alarm का बड़ा सबक, 170 ज़िंदगियों को सुरक्षा-कवच मिला
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

नई दिल्ली, 27 नवंबर 2025 — इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से अहमदाबाद के लिए रवाना हुई एयर इंडिया फ्लाइट AI-2939 बुधवार देर रात उस समय आपात स्थिति में लौटाई गई जब टेक-ऑफ के कुछ ही मिनटों बाद कार्गो-होल्ड से धुआँ होने का संकेत मिला और कॉकपिट में स्मोक-अलर्ट सक्रिय हो गया।

विमान में करीब 170 यात्री और चालक दल मौजूद थे। अलार्म मिलते ही पायलट ने ATC को संदेश भेजा, इमरजेंसी-लैंडिंग की अनुमति मांगी, और प्रोटोकॉल के तहत प्राथमिकता पर रनवे सुरक्षित किया गया। रात 10:20 बजे विमान सुरक्षित उतारा गया और यात्रियों को नियंत्रित प्रक्रिया के तहत बाहर निकाला गया। फायर-सर्विस, CISF और इंजीनियरिंग यूनिट ने तुरंत जांच शुरू की।

तकनीकी जाँच — धुआँ नहीं मिला, सेंसर-फॉल्ट की पुष्टि

प्रारंभिक निरीक्षण में पता चला कि :

कार्गो-कम्पार्टमेंट में न धुआँ मिला, न आग का कोई संकेत

अलार्म संभवतः सेंसर-त्रुटि या प्रेशर-अस्थिरता के कारण सक्रिय हुआ

घटना को False Alarm घोषित किया गया

विशेषज्ञों के अनुसार, आधुनिक विमानों में सेंसर इतने संवेदनशील होते हैं कि मामूली प्रेशर या तापमान परिवर्तन भी अलर्ट ट्रिगर कर सकता है, और यही संवेदनशीलता दुर्घटनाओं को रोकने की सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा दीवार है।

यात्रियों में तनाव, पर क्रू की शांति ने संभाली स्थिति

कई यात्रियों के अनुसार, अचानक अलार्म से दहशत फैलने की आशंका थी, लेकिन क्रू ने शांत और व्यवस्थित व्यवहार रखा, जिससे स्थिति नियंत्रण में रही। एयरलाइन ने यात्रियों को राहत-सुविधाएँ दीं और उन्हें वैकल्पिक विमान से भेजने की व्यवस्था की।

False Alarm क्यों राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बना?

हालाँकि अलार्म गलत साबित हुआ, पर यह घटना महत्वपूर्ण है क्योंकि—

कार्गो-होल्ड अलर्ट हाई-रिस्क कैटेगरी में माना जाता है

इतिहास में ऐसे संकेत बड़े हादसों में बदले हैं

पायलट के पास निर्णय लेने के लिए केवल मिनटों का समय होता है

इस बार अलार्म गलत था, पर निर्णय बिल्कुल सही।

हालिया घटनाएँ और बढ़ती चिंताएँ

AI-2939 से पहले भी कई विमानों में स्मोक-अलर्ट, जलन-गंध और APU-फायर जैसे मामलों के कारण उड़ानें वापस लौटी हैं, जिससे यह सवाल मजबूत हुआ है कि क्या सेंसर-सिस्टम और तकनीकी निरीक्षण में सुधार की जरूरत है?

मुख्य संकेत :

1. सेंसर-सिस्टम की ओवर-सेंसिटिविटी

2. AI-आधारित Predictive Diagnostics की आवश्यकता

3. Maintenance-Audit को और कठोर बनाने की जरूरत

4. Emergency-Drill की Frequency बढ़ाना

5. DGCA की सख्ती और पारदर्शिता

DGCA सूत्रों के अनुसार—

सभी एयरलाइनों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है और सेंसर-सिस्टम के विशेष ऑडिट का प्रस्ताव तैयार है। Emergency-Response Simulation Drills को अनिवार्य किए जाने पर भी विचार चल रहा है।

एविएशन विशेषज्ञों की राय — सुरक्षा-संरचना की दिशा और भविष्य की जरूरत

1. संवेदनशील सेंसर, पर विश्वसनीयता प्राथमिक

कैप्टेन अरविंद कुमार (एविएशन-टेक विश्लेषक)

“False Alarm सिस्टम की सतर्कता का प्रमाण है, असफलता नहीं। लेकिन दोहराव कैलिब्रेशन-गैप की ओर इशारा करता है।”

सुझाव :

सेंसर-कैलिब्रेशन चक्र छोटा किया जाए

AI/ML आधारित Predictive Diagnostics

कार्गो-होल्ड में Thermal-Imaging मॉड्यूल

2. मेंटेनेंस ऑडिट — कागज़ पर नहीं, ग्राउंड-रियलिटी पर

अनुराग मेहता (DGCA रिटायर्ड अधिकारी)

“सुरक्षा केवल उड़ान की नहीं, विमान की उड़ने-योग्यता की है।”

3. इमरजेंसी-ड्रिल और क्रू-ट्रेनिंग

कप्तान रितु वशिष्ठ

“तकनीक भरोसा देती है, पर अंतिम निर्णय मानव-दिमाग ही लेता है।”

4. यात्रियों का भरोसा और पारदर्शिता

रिस्क-रिसर्चर राहुल सेन

“साफ संवाद और पारदर्शिता ही एयरलाइंस की विश्वसनीयता बनाती है।”

जीवन रक्षा का वास्तविक मॉडल

AI-2939 ने साबित किया :

सावधानी-आधारित लैंडिंग, जोखिम-भर उड़ते रहने से बेहतर

False Alarm ने भी 170 जिंदगी सुरक्षित घर पहुँचाईं

टेक्नोलॉजी + मानव-निर्णय = विमानन सुरक्षा का भविष्य

यानी — अलार्म गलत था, लेकिन अलार्म ने बचाया।

यही सुरक्षा-तंत्र की असली शक्ति है।

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