टैरिफ दबाव के बावजूद ऊर्जा सुरक्षा पर अडिग भारत : रूस से तेल आयात तेज, रणनीति और साझेदारी का नया अध्याय

रिपोर्ट : विजय तिवारी
नई दिल्ली। वैश्विक राजनीति में बढ़ते तनाव, अमेरिकी टैरिफ नीति तथा पश्चिमी प्रतिबंधों के वातावरण के बीच भारत ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि उसकी ऊर्जा-रणनीति राष्ट्रीय हित और आर्थिक व्यावहारिकता पर आधारित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच नई दिल्ली में हुई विस्तृत वार्ता के बाद विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने कहा कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखेगा और यह निर्णय पूरी तरह बाज़ार-आधारित मॉडल पर आधारित होगा।
उन्होंने कहा कि 140 करोड़ आबादी वाले देश में ऊर्जा खपत लगातार बढ़ रही है और स्थिर व सस्ती आपूर्ति आर्थिक विकास की अनिवार्यता है। इसीलिए तेल व ईंधन की खरीद कीमत, मार्केट-डिमांड, लॉजिस्टिक्स और दीर्घकालिक अनुबंधों के आधार पर तय होगी, न कि बाहरी दबाव के आधार पर।
बढ़ता तेल आयात और ठोस आर्थिक लाभ
रूसी क्रूड ऑयल भारत के लिए पिछले दो वर्षों में प्रमुख स्रोत बनकर उभरा है।
2023-24 में भारत ने लगभग 1.64 मिलियन बैरल प्रति दिन रूसी कच्चा तेल खरीदा, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 57% अधिक रहा।
2025 के पहले नौ महीनों में खरीद बढ़कर 1.75 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँच गई, जबकि नवंबर 2025 में यह मात्रा 1.855 मिलियन बैरल प्रतिदिन के ऐतिहासिक स्तर के करीब रही।
2022-23 में रूस से तेल आयात पर भारत ने लगभग $31 बिलियन व्यय किया, पर सस्ती कीमतों के कारण रिफाइनरियों तथा ईंधन-बाज़ार को बड़ा लाभ हुआ।
भारत की रिफाइनरियाँ — निजी और सरकारी दोनों — रूसी क्रूड को प्राथमिकता दे रही हैं, क्योंकि इससे घरेलू ईंधन कीमतों को स्थिर रखने और औद्योगिक क्षेत्र को निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में सहायता मिली है।
पुतिन का भरोसा : ऊर्जा की ‘बाधारहित आपूर्ति’
वार्ता के दौरान पुतिन ने आश्वस्त किया कि रूस भारत को तेल, गैस और अन्य ऊर्जा संसाधनों की सप्लाई बिना किसी रुकावट जारी रखेगा।
उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच साझेदारी सिर्फ व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भरोसे पर आधारित दीर्घकालिक सहयोग है।
अमेरिकी टैरिफ नीति के बीच भारत की स्वायत्त भूमिका
अमेरिका द्वारा रूस से तेल आयात करने वाले देशों पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ और प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया।
सरकार ने स्पष्ट किया कि ऊर्जा-निर्णय राष्ट्रीय प्राथमिकताओं, आर्थिक गणना और रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित हैं और किसी बाहरी दबाव में नीतियाँ परिवर्तित नहीं होंगी।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह रुख भारत की बहुध्रुवीय कूटनीति (Multipolar Diplomacy) की पुष्टि करता है — जिसमें देश वैश्विक शक्ति-संतुलन के बीच स्वतंत्र निर्णय क्षमता बनाए हुए है।
व्यापार विस्तार और भविष्य की दिशा
वार्ता में दोनों देशों ने व्यापार को 2030 तक 100 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य तय किया।
ऊर्जा के अलावा रक्षा, परमाणु तकनीक, उन्नत प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और क्रिटिकल-मिनरल्स में विस्तार पर सहमति बनी।
समुद्री आपूर्ति-चेन मजबूत बनाने, पोर्ट-कनेक्टिविटी बढ़ाने और लॉजिस्टिक्स लागत घटाने की योजनाओं पर भी चर्चा हुई।
रणनीतिक विश्लेषकों का मत है कि भारत-रूस ऊर्जा-साझेदारी भविष्य में आर्थिक सुरक्षा-ढाल (Economic Cushion) का कार्य कर सकती है, विशेष रूप से विश्व बाजार में उतार-चढ़ाव के समय।
चुनौतियाँ मौजूद, पर अवसर अधिक
पश्चिमी प्रतिबंध और वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव
परिवहन व बीमा नीति संबंधी जटिलताएँ
शिपिंग मार्गों पर भू-राजनीतिक असर
फिर भी, ऊर्जा-विविधीकरण नीति (Import Basket Strategy) — जिसमें रूस के साथ-साथ मध्य-पूर्व, अमेरिका और अन्य स्रोत शामिल हैं — भारत को लचीलापन और सुरक्षा प्रदान करती है।
भारत ने संकेत दिया है कि ऊर्जा-सुरक्षा राष्ट्रीय रक्षा जितनी महत्वपूर्ण है, और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं। मोदी-पुतिन वार्ता भारत-रूस संबंधों के अगले और सशक्त चरण की बुनियाद बन गई है — जिसका प्रभाव भविष्य में वैश्विक ऊर्जा-राजनीति और आर्थिक समीकरणों पर व्यापक रूप से दिखाई देगा।




