दिल्ली धमाके पर ओवैसी का वार : “मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक मत समझिए”, लाल किले ब्लास्ट के बाद सियासत गरमाया

रिपोर्ट : विजय तिवारी
दिल्ली में लाल किले के पास हुए धमाके ने पूरे देश को हिला दिया है। इस हमले में 14 लोगों की मौत और कई घायल होने की पुष्टि हुई है। घटना के बाद जहां सुरक्षा एजेंसियों ने जांच तेज़ कर दी है, वहीं राजनीति भी गरमा गई है।
इसी बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि—
> “मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझने की भूल न करें। आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता, और इस्लाम में आत्मघाती हमला हराम है।”
उनका यह बयान सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में बड़ा मुद्दा बन गया है।
धर्म का नाम लेकर हिंसा करने वालों पर ओवैसी का सीधा हमला
ओवैसी ने अपने बयान में दो स्पष्ट बातें कहीं—
1. आतंकवाद का कोई धर्म नहीं
उन्होंने कहा कि कुछ लोग आतंकवाद को किसी एक धर्म से जोड़कर देखने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह गलत है।
“मरने वालों में हिंदू भी थे, मुसलमान भी थे। आतंकवादी किसी धर्म का नहीं होता—वह सिर्फ अपराधी होता है।”
2. इस्लाम में आत्मघाती हमला हराम
दिल्ली धमाके से जुड़े कथित वीडियो पर भी ओवैसी ने प्रतिक्रिया दी और कहा—
“इस्लाम में सुसाइड हराम है। मासूमों को मारने वाला ‘शहीद’ नहीं, बल्कि इस्लाम की शिक्षा का गुनहगार है।”
उनका यह बयान देशभर में चल रही बहस में एक बड़ा हस्तक्षेप माना जा रहा है।
“दूसरे दर्जे का नागरिक” टिप्पणी—सियासत में हलचल
AIMIM चीफ ने कहा कि हर बार किसी आतंकी घटना के बाद मुसलमानों की देशभक्ति पर सवाल उठाना बेहद अपमानजनक है।
“हम इस देश के बराबरी के नागरिक हैं। किसी मुस्लिम के अपराध को पूरे समुदाय पर थोपने की आदत गलत है।”
“किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि भारत का मुसलमान दबकर या डरकर जिंदा रहेगा। उसे संविधान ने बराबरी का हक दिया है।”
यह बयान सीधे तौर पर उन राजनीतिक और सामाजिक धारणाओं को निशाना बनाता है जहाँ आतंकी घटनाओं के बाद पूरा समुदाय कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
मीडिया व सोशल मीडिया में तेज़ चर्चा
ओवैसी का बयान आते ही यह #Owaisi और #DelhiBlast हैशटैग के साथ ट्रेंड करने लगा।
बहस तीन हिस्सों में बंटी—
समर्थन में :
आतंकवाद को धर्म से अलग रखने की अपील को सही बताया गया।
समान नागरिक अधिकार का तर्क सराहा गया।
विरोध में :
कुछ समूहों ने कहा कि ओवैसी हमेशा मुस्लिम पक्ष के प्रवक्ता की तरह बोलते हैं।
उन्हें “वोट बैंक राजनीति” का चेहरा बताया गया।
तटस्थ चर्चा :
असली फोकस जांच पर होना चाहिए न कि धार्मिक आरोप-प्रतारोप पर।
सुरक्षा एजेंसियों की ज़िम्मेदारी और खुफिया तंत्र की विफलता पर भी सवाल उठे।
दिल्ली धमाके की जांच—एजेंसियाँ कई क्लूज पर काम कर रहीं
NIA, स्पेशल सेल और अन्य एजेंसियां—
CCTV फुटेज
डिजिटल चैट
संदिग्ध वीडियो
विस्फोटक सामग्री
हमलावर की मूवमेंट
जैसे कई पहलुओं की जांच में जुटी हैं।
प्राथमिक जांच से यह साफ है कि हमला पूरी तैयारी के साथ किया गया।
किस संगठन या मॉड्यूल का हाथ है—इसपर एजेंसियाँ अभी आधिकारिक बयान नहीं दे रही हैं।
राजनीतिक हलचल—ओवैसी का बयान क्यों महत्वपूर्ण?
दिल्ली धमाके के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ दो दिशा में बंटी थीं—
सुरक्षा बनाम साम्प्रदायिकता।
ओवैसी का बयान इन दोनों ध्रुवों के बीच तीसरी परत जोड़ देता है:
मुस्लिम समुदाय की “नागरिकता” और “पहचान” का मुद्दा।
यह आरोप कि आतंकी घटना के बाद एक विशेष समुदाय को टार्गेट किया जाता है।
समान अधिकार और सम्मान की बात जोर से सामने आई है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार—
“यह बयान आने वाले राज्यों और लोकसभा चुनावों में मुस्लिम राजनीतिक स्वरों को फिर से केंद्र में ला सकता है।”
अपराधी को सजा हो, समुदाय को नहीं
दिल्ली धमाके ने सुरक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा किया है।
वहीं ओवैसी के बयान ने यह मुद्दा गहरा कर दिया है कि—
आतंकवाद को धर्म से जोड़ने की आदत छोड़नी होगी,
और भारत के किसी भी समुदाय को “दूसरे दर्जे” का नहीं कहा जा सकता।
जांच एजेंसियों की रिपोर्ट आने में समय लगेगा, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक बहस अभी से तेज़ हो गई है।




