67 लाख में बना पशु चिकित्सालय, ढाई साल से वीरान – सरकार की योजनाओं पर लटकता ताला

विशेष रिपोर्ट: ओ पी श्रीवास्तव संग नवीन राय...
धीना (चंदौली): सरकार की ‘विकास’ योजनाओं का हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है – यह बात धीना माधोपुर में बने 67 लाख के पशु चिकित्सालय को देखकर साफ हो जाती है। ढाई साल पहले जिस चमचमाते भवन का उद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. महेन्द्रनाथ पांडेय ने किया था, आज उसी भवन पर हर वक्त ताला लटका रहता है। सवाल ये है कि आखिर जनता के पैसे से तैयार इस इमारत की उपयोगिता क्या रह गई है?
कागज़ों पर डॉक्टर, ज़मीन पर सन्नाटा
पशुपालन विभाग को यह चिकित्सालय 2023 में हैंडओवर कर दिया गया था। शुरुआती हफ्तों में डॉक्टर सप्ताह में दो दिन आए भी, लेकिन जल्द ही वह व्यवस्था भी ठप हो गई। अब हालत यह है कि गांव के लोग धानापुर फोन कर डॉक्टर को बताते हैं कि गाय-भैंस बीमार है, और उधर से फोन पर ही दवा बताकर छुट्टी पा ली जाती है। डॉक्टर को आना "मुनासिब" नहीं लगता।
जब पशु बीमार पड़ते हैं, तो न समय पर इलाज होता है, न सरकारी सहायता मिलती है। नतीजा – या तो पशुओं की मौत हो जाती है या फिर पशुपालक निजी डॉक्टरों के पास जाकर इलाज कराते हैं और जेब पर भारी बोझ उठाते हैं। ग्रामीण गुड्डू गुप्ता की बातों में कड़वा सच झलकता है – सरकार ने लाखों रुपये लगाकर इमारत बना दी, लेकिन डॉक्टर नहीं तो सब बेकार। ये सुविधा सिर्फ पत्थर की दीवारों तक सिमट गई है।
प्रशासनिक उदासीनता या जिम्मेदारों की लापरवाही?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब चिकित्सालय बनकर तैयार हो गया, तो ढाई साल बाद भी इसमें स्थायी चिकित्सक की नियुक्ति क्यों नहीं हुई? क्या पशुपालन विभाग की प्राथमिकताओं में पशुओं का इलाज नहीं है? या फिर यह सिर्फ एक और ‘उद्घाटन’ बनकर रह गया, जहां नेता फोटो खिंचवाकर आगे बढ़ गए और जिम्मेदार विभागों ने आंख मूंद ली?
यह मामला सिर्फ एक चिकित्सालय का नहीं है, बल्कि सरकारी योजनाओं की उस जमीनी हकीकत का आईना है, जिसमें जनता के लिए बनी सुविधाएं महज़ औपचारिकता बनकर रह जाती हैं। ढाई साल से ताले में बंद इस भवन को देखकर सिर्फ एक ही बात कही जा सकती है — जब नीयत में जिम्मेदारी न हो, तो योजनाएं महज़ ईंट और सीमेंट का बोझ बनकर रह जाती हैं।