Janta Ki Awaz
उत्तर प्रदेश

“144 साल बाद होने वाला महाकुंभ “

“144 साल बाद होने वाला महाकुंभ “
X

महाकुंभ के बारे में सारी जानकारी कुंभ पुराण में लिखी है. हर 6 साल में अर्ध कुंभ होता है.. 12 साल में पूर्ण कुंभ होता है.. और 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ होता है. इस तरह हर 144 साल बाद महाकुंभ लगता है. कूर्म पुराण के अनुसार भी कुंभ होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है, बाकी आठ का देवलोक में होता है. इसी मान्यता के अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होता है, जिसका महत्व अन्य कुंभ से कहीं ज्यादा है. पिछला अर्ध कुंभ वर्ष 2019 में और पूर्ण कुंभ वर्ष 2013 में हुआ था.

महाकुंभ का पौराणिक महत्व समुद्र मंथन की घटना से जुड़ा है. समुद्र मंथन में जब अमृत निकला तो उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों में संघर्ष शुरू हो हुआ. अमृत कलश लेकर देवता उसे बचाने के लिए भाग रहे थे तो राक्षस अमृत कलश हड़पने के लिए देवताओं का पीछा कर रहे थे. ये सिलसिला 12 दिन तक चला. (देवताओं का एक दिन पृथ्वी के 12 साल के बराबर माना जाता है.) कई जगह पर अमृत कलश के लिए देवताओं और रक्षकों में छीना-झपटी हुई.. अमृत कलश इंद्र के पुत्र जयंत के हाथ में था. राक्षसों ने जयंत को चार बार (प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में) पकड़कर उनसे अमृत कलश छीनने की कोशिश की. अमृत कलश को बचाने के लिए सूर्य, चंद्र और बृहस्पति ने जयंत का साथ देकर अमृत की रक्षा की. गुरु बृहस्पति ने राक्षसों से अमृत को बचाया तो सूर्य ने कलश फूटने से बचाया. चंद्रमा ने कलश में रखे अमित को गिरने से बचाया. हालांकि, छीना-झपटी में अमृत की बूंदें पृथ्वी लोक में प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में गिर गईं. इससे अमृत का महत्व इन स्थानों पर केंद्रित हो गया. तबसे इन स्थानों को पवित्र मानते हुए हर 12 साल में कुंभ मेले की परंपरा की शुरुआत हुई. प्रयागराज में गंगा, यमुना, सरस्वती का त्रिवेणी संगम है जहाँ स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

प्रयागराज में इस बार आयोजित हो रहे महाकुंभ मेले का विशेष महत्व है. इस बार महाकुंभ में सिर्फ संगम में ही 10 से 12 करोड़ लोग पवित्र स्नान करेंगे. पौराणिक मान्यता है कि जब धरती पर महाकुंभ का आयोजन होता है तो देवलोक के द्वार खुल जाते हैं और सभी देवतागण पृथ्वी आकर पवित्र संगम में स्नान करते हैं..

शिव पुराण की कहानी के अनुसार माघ पूर्णिमा पर भगवान शिव माता पार्वती और अन्य कैलाशवासियों के साथ धरती पर वेश बदलकर कुंभ घूमने आते हैं. इस दौरान भगवान शिव प्रयागराज, वाराणसी आदि प्राचीन शहरों में घूमकर प्रकृति का आनंद लेते हैं. भगवान शिव और माता पार्वती अपने भक्तों की परीक्षा भी लेते हैं. ऐसी कई कथाओं का हमारी धार्मिक पुस्तकों में जिक्र है.

कुंभ मेला न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. ज्योतिषियों के अनुसार वर्ष 2025 में सूर्य, चंद्रमा, शनि और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति वही खगोलीय संयोग दोहराने जा रही है, जो अमृत मंथन के समय बनी थीं. खगोलीय संयोग के दौरान पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में बढ़ोतरी होती है, जिसका इंसान के शरीर पर सकारात्मक प्रभाव होता है. यही कारण है कि कुंभ मेले को आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि भौतिक दृष्टि से भी लाभकारी माना जाता है. ज्योतिषियों का मानना है कि यह स्थिति बेहद शुभ मानी जाती है और इस दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

Next Story
Share it