खजुराहो जावरी मंदिर प्रकरण : VHP ने CJI की टिप्पणी पर जताई नाराज़गी, कहा- आस्था का उपहास अस्वीकार्य

खजुराहो के ऐतिहासिक जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति की मरम्मत संबंधी याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में हुई सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की मौखिक टिप्पणी ने विवाद खड़ा कर दिया है।
सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश ने कहा था – “आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं, तो अब उन्हीं से मूर्ति की मरम्मत के लिए प्रार्थना कीजिए।”
VHP की प्रतिक्रिया
विश्व हिंदू परिषद (VHP) अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने कहा –
“न्यायालय न्याय का मंदिर है और करोड़ों भारतीयों की श्रद्धा व विश्वास का केंद्र है। हमारा दायित्व है कि इस विश्वास को बनाए रखें और और मजबूत करें। अदालत में संयमित भाषा का पालन करना केवल पक्षकारों और वकीलों का ही नहीं, बल्कि न्यायाधीशों का भी कर्तव्य है। मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी हिंदू धर्म की आस्थाओं का उपहास प्रतीत होती है। बेहतर होगा कि भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से परहेज़ किया जाए।”
धरोहर संरक्षण में ASI और सरकार की भूमिका
याचिका में विशेष रूप से माँग की गई है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और सरकार मंदिर की खंडित मूर्ति की मरम्मत और संरक्षण सुनिश्चित करें।
ASI का मत है कि जावरी मंदिर एक संरक्षित धरोहर है और उसके संरक्षण का हर कार्य विशेषज्ञों की देखरेख में ही संभव है। वहीं, सरकारी अधिकारियों का कहना है कि धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए, पुरातात्विक मानकों के अनुरूप सुरक्षित और वैज्ञानिक तरीके अपनाना आवश्यक है, ताकि स्मारक की प्राचीनता और मौलिकता अक्षुण्ण बनी रहे।
मंदिर का महत्व
11वीं शताब्दी का जावरी मंदिर खजुराहो समूह का हिस्सा है जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला की दृष्टि से अद्वितीय है। यहाँ की खंडित मूर्ति न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का भी अहम हिस्सा है।
जनभावनाएँ और विशेषज्ञों की राय
धार्मिक संगठनों का कहना है कि श्रद्धालुओं की भावनाएँ इस मूर्ति से गहराई से जुड़ी हैं, इसलिए अदालत को इस विषय पर संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
वहीं, कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायाधीशों की मौखिक टिप्पणियाँ भले ही आदेश न हों, लेकिन उनका असर समाज पर गहरा होता है। इसलिए न्यायपालिका से अपेक्षा रहती है कि वह विशेषकर धर्म और आस्था जैसे संवेदनशील मामलों में मर्यादित भाषा का प्रयोग करे।