बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट में लंबी बहस, पढ़ें SIR पर सुनवाई की अहम बातें-

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने एक-एक कर सभी पक्षों को सुना और बीच-बीच में कई अहम टिप्पणी भी की. सुनवाई में कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, अभिषेक मनु सिंघवी, वृंदा ग्रोवर जैसे दिग्गज वकीलों ने एसआईआर के खिलाफ दलील पेश की. दूसरी ओर चुनाव आयोग की ओर से राकेश द्विवेदी ने अपनी बात रखी. योगेंद्र यादव ने भी व्यक्तिगत रूप से अपनी दलील पेश की.
वकीलों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल भी पूछे. अदालत ने पूछा कि फॉर्म में कहां लिखा है कि सभी दस्तावेज होने चाहिए? सुनवाई के बीच में चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने योगेंद्र यादव की दलीलों पर कहा कि यह ड्रामा टीवी के लिए बेहतर हो सकता है, लेकिन अदालत के लिए नहीं. चुनाव आयोग के वकील की ओर से ऐसा तब कहा गया जब योगेंद्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बिहार में एसआईआर की एक प्रक्रिया है. यह देश में पहली संशोधन प्रक्रिया है जिसमें एक भी नाम नहीं जोड़ा गया. चुनाव आयोग के अधिकारी घर-घर गए और उन्हें सूची में जोड़ने लायक एक भी व्यक्ति नहीं मिला. सुप्रीम कोर्ट बुधवार को भी इस मसले पर सुनवाई करेगा.
पढ़ें SIR पर सुनवाई की अहम बातें-
सिंघवी ने पूरी प्रक्रिया को बताया छलावा
एसआईआर पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया एक छलावा है. अदालत ने कहा था कि आधार और ईपीआईसी को शामिल कर लें पर विचार तक नहीं किया गया. जो लोग इस सूची में हैं, उनके साथ नकारात्मक धारणा से निपटा नहीं जा सकता है. यह मामला अंतरिम हस्तक्षेप का हकदार है.
सिंघवी ने कहा कि मतदाता सूची को लेकर केवल नागरिकता के आधार पर मान्य नहीं किया जाता. आप ऐसी व्यवस्था नहीं बना सकते हैं जहां 5 करोड़ लोगों की नागरिकता पर संदेह हो. तब तक यह मान लिया जाए कि वे वैध नागरिक हैं, वे प्रक्रिया का पालन न करें, तब हटा न दें.
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया की अगर सितंबर के अंत तक भी अवैधता साबित हो जाए तो पूरी बात को रद्द किया जा सकता है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि नागरिकता पर कानून संसद द्वारा बनाया जाना चाहिए. अदालत ने कहा कि 2003 तक कोई विवाद नहीं है. जो लोग मतदाता सूची में हैं, उन्हें कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है. चुनाव आयोग कह रहा है कि जो लोग 2003 तक मतदाता थे, उनके बच्चों को भी दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा- हम यहां बैठे हैं?
सिंघवी ने एसआईआर प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब चुनाव ढाई महीने दूर है तो उन्होंने जो किया वह यह है कि उन्होंने एक संभावित नकारात्मक घोषणा जारी की है और कहा है कि जिस मौजूदा सूची पर आप बैठे हैं, उसे मान्य करने के लिए. मैं केवल एक सीमित समय सीमा में इस अनुमान पर हूं, इस सबका उद्देश्य देखिए. आप 5 करोड़ लोगों को अमान्य घोषित करते हैं और उन्हें ढाई महीने का ही समय देते हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर वे 5 करोड़ लोगों को अमान्य घोषित करते हैं तो हम यहां बैठे हैं.
सुप्रीम कोर्ट से क्या बोले कपिल सिब्बल?
सुनवाई में सिब्बल ने कहा कि जस्टिस बागची ने बताया कि फॉर्म 4 के चरण में यह जरूरी है. 4 ड्रॉफ्ट हैं, अगर मुझे बाहर रखा गया है और शामिल होना चाहता हूं तो मैं फॉर्म 6 भरता हूं. जस्टिस बागची ने कहा कि इन रिपोर्टों के आधार पर, बीएलओ नियम 10 के अनुसार एक ड्राफ्ट रोल तैयार करता है. सिब्बल ने कहा कि कृपया फॉर्म 4 देखें, वे मुझसे क्या चाहते हैं. नाम और विवरण, नागरिक का नाम, पिता/माता/पति का विवरण, आयु, हस्ताक्षर.
उन्होंने कहा कि फॉर्म 4 से कोई लेना-देना नहीं है. पूरी प्रक्रिया कानून के खिलाफ है. उन्हें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि फॉर्म में कहां लिखा है कि सभी दस्तावेज होने चाहिए? इस पर सिब्बल ने कहा कि फॉर्म से बुनियादी बात गायब है. इस पर जस्टिस कांत ने कहा कि यह सच है या आशंका है, देखते हैं. मकसद सुविधा देना है. आधार कार्ड पर आते हैं. इसमें लिखा है कि ‘नीचे दी गई सूची से’ जरूरी नहीं कि आपको सभी कागजात देने ही हों. इस पर सिब्बल ने कहा कि बिहार के लोगों के पास ये दस्तावेज नहीं हैं, यही बात है.
इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बिहार भारत का हिस्सा है. अगर बिहार के पास नहीं है तो दूसरे राज्यों के पास भी नहीं होगा. ये कौन से दस्तावेज हैं? अगर आप केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं, तो स्थानीय एलआईसी की ओर से कोई पहचान पत्र- दस्तावेज. इस पर सिब्बल ने कहा कि वे कह रहे हैं कि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है. जन्म प्रमाण पत्र की बात करें तो केवल 3.056% के पास ही है. पासपोर्ट 2.7% और 14.71 के पास मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र हैं.
हर किसी के पास कोई ना कोई प्रमाणपत्र होता है- SC
जस्टिस कांत ने कहा कि यह साबित करने के लिए कुछ तो होना ही चाहिए कि आप भारत के नागरिक हैं. हर किसी के पास कोई ना कोई प्रमाणपत्र होता है, सिम खरीदने के लिए इसकी जरूरत होती है. ओबीसी/एससी/एसटी प्रमाणपत्र सिब्बल ने कहा कि जरा देखिए क्या हो रहा है?
जस्टिस कांत ने कहा कि यह बहुत ही व्यापक तर्क है कि बिहार में किसी के पास ये दस्तावेज नहीं हैं. उनके पास आधार और राशन कार्ड है? सिब्बल ने कहा हां, लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं. वे कहते हैं कि मैं आधार को किसी भी चीज के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं करूंगा.
जस्टिस कांत ने कहा कि ये दस्तावेज वास्तव में यह साबित करेंगे कि आप उस क्षेत्र के निवासी हैं. शुरुआत में जिम्मेदारी आपकी नहीं, बल्कि उनकी है, फिर उन्हें यह सत्यापित करना होगा कि आपका कार्ड असली है या नहीं. उन्हें दस्तावेज दीजिए और उन्हें सत्यापित करने दीजिए. सिब्बल ने कहा कि आधार, राशन कार्ड, EPIC कार्ड स्वीकार नहीं किए जाएंगे.
सिब्बल ने दस्तावेज को लेकर उठाए सवाल
जस्टिस कांत ने कहा कि उनका कहना सही है कि इन्हें निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता. अधिसूचना के तहत, इन दस्तावेज़ों को जमा करने की क्या प्रक्रिया है? इस पर सिब्बल ने कहा कि वे 2003 के लोगों को दिए जा रहे किसी भी दस्तावेज से बाहर कर रहे हैं. ये 2025 के रोल हैं.
जस्टिस कांत ने कहा कि हम पूछ रहे हैं कि अगर आप प्रक्रिया को ही चुनौती दे रहे हैं, तो आप कट-ऑफ तारीख पर सवाल उठा रहे हैं. तो आइए इस पर आते हैं कि क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार है? अगर यह मान लिया जाता है कि चुनाव आयोग के पास ऐसा अधिकार नहीं है, तो मामला खत्म.
सिब्बल ने कहा कि यह सही है, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि अगर मैं 2003 के रोल में था, और मैंने गणना फॉर्म दाखिल नहीं किया है, तो मुझे बाहर कर दिया जाएगा. मुझे इस पर भी आपत्ति है. जस्टिस बागची ने कहा कि नियम 12 कहता है कि अगर आप 2003 के रोल में नहीं हैं, तो आपको दस्तावेज देने होंगे.
‘आपके आरोप कल्पना मात्र हैं या कोई जमीनी हकीकत?’
सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि हम जानना चाहते हैं कि आपके जो आरोप हैं वो कल्पना मात्र हैं या फिर उनकी कोई जमीनी हकीकत है. सिब्बल ने कहा कि यही हमारा तर्क है. करोड़ों लोगों के नाम बाहर होने की संभावना है. अक्टूबर में चुनाव हैं, उन्हें ऐसा क्यों करना चाहिए? वे अपने जवाब में कहते हैं कि उन्होंने कोई जांच नहीं की. कुल 7.9 करोड़ मतदाता, वे कहते हैं कि 7.24 करोड़ ने फॉर्म भरे हैं, 22 लाख मर चुके हैं (यह बिना जांच के है), 7 लाख पहले ही नामांकित हो चुके हैं.
जस्टिस कांत ने कहा कि इसका मतलब है कि 7.24 करोड़ जीवित हैं. 22 लाख मर चुके हैं. वे करोड़ों कहां हैं जिनके बारे में आप कह रहे हैं. सिब्बल ने कहा कि 4.96 करोड़ 2003 की मतदाता सूची का हिस्सा हैं. हमारे पास लगभग 4 अंक बचे हैं. जस्टिस बागची ने कहा कि जाहिर है कि एसआईआर में मृत लोगों को हटाया जाएगा. इसमें क्या आपत्ति है.
जस्टिस कांत ने कहा कितने लोग बिहार से बाहर चले गए? सिब्बल ने कहा कि वे कहते हैं 36 लाख, जबकि 7 लाख दूसरे राज्यों में नामांकित. इस तरह कुल 65 लाख हटाए गए.
प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से क्या-क्या कहा?
वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ने कभी भी यह नहीं बताया कि यह उन 65 लाख लोगों की सूची है और 65 लाख लोगों में से ये वे हैं जो मर चुके हैं और ये वे हैं जो स्थानांतरित हो गए हैं. उन्होंने जवाब दाखिल कर कहा है कि उन्हें जानकारी देने की जरूरत नहीं है. इस पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि हमने बीएलएल को दिया है, पूरी तरह से झूठा बयान है. अदालत को गुमराह किया जा रहा है.
इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग के पास पूरी जानकारी है. वे कह रहे हैं कि हम आपको जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं हैं. ऐसा नहीं है कि उनके पास जानकारी नहीं है. इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि चुनाव आयोग के बीएलओ ने ‘अनुशंसित/अनुशंसित नहीं’ लिखा है और हमें एक व्हिसलब्लोअर के ज़रिए दो ज़िलों के संबंध में इनकी सूची मिली है. हमें जो पता चला है वह चौंकाने वाला है, जिन लोगों ने फॉर्म भरे हैं उनमें से 10-12 फीसदी मतदाता अनुशंसित नहीं हैं! इसका आधार क्या है? देश के इतिहास में चुनाव आयोग ने ऐसा पहले कभी नहीं किया.
चुनाव आयोग ने अपनी दलील में कहा कि 2003 की मतदाता सूची में पहले से ही 4.96 करोड़ लोग थे. हो सकता है कि उनमें से कुछ की मौत हो गई हो, जीवित लोगों को सिर्फ आवेदन ही नहीं करना, बल्कि उनकी संतानों को भी यह दिखाना होगा कि उनके माता-पिता सूची में हैं.
जस्टिस कांत ने कहा कि मान लीजिए कि ए 2003 में मतदाता है, वह जीवित है, और उस समय उसकी आयु 20 वर्ष थी। उसके बच्चे 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के हैं -तो क्या उन्हें दस्तावेज़ दिखाने होंगे? द्विवेदी ने कहा नहीं, 2003 की सूची में शामिल लोगों को दस्तावेज़ दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है.