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उत्तर प्रदेश

मोहनिया विधानसभा से RJD उम्मीदवार श्वेता सुमन का नामांकन रद्द, गलत जाति प्रमाण पत्र का आरोप – श्वेता बोलीं, “यह सरकार की साजिश है”

मोहनिया विधानसभा से RJD उम्मीदवार श्वेता सुमन का नामांकन रद्द, गलत जाति प्रमाण पत्र का आरोप – श्वेता बोलीं, “यह सरकार की साजिश है”
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

मोहनिया (कैमूर)। बिहार विधानसभा चुनाव में मोहनिया सीट से राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की उम्मीदवार श्वेता सुमन का नामांकन रद्द कर दिया गया है। रद्दीकरण का कारण बताया गया है कि उन्होंने कथित तौर पर गलत जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर आरक्षित सीट का लाभ लेने की कोशिश की थी। जिला निर्वाचन पदाधिकारी द्वारा की गई जांच में दस्तावेजों में गड़बड़ी पाए जाने के बाद श्वेता का नामांकन अमान्य घोषित कर दिया गया।

जानकारी के अनुसार, मोहनिया विधानसभा सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित है। आरोप है कि श्वेता सुमन ने खुद को अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित दिखाने के लिए फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाया, जबकि उनके दस्तावेजों में जातिगत स्थिति को लेकर विरोधाभास पाया गया। जांच में यह तथ्य सामने आने पर निर्वाचन आयोग ने नियमों के तहत कार्रवाई करते हुए उनका नामांकन रद्द कर दिया।

इस फैसले के बाद श्वेता सुमन ने मीडिया से बातचीत में कहा —

> “यह पूरी तरह राजनीतिक षड्यंत्र है। मेरे बढ़ते जनसमर्थन से सत्ता पक्ष घबरा गया था। सरकार के दबाव में आकर मेरा नामांकन रद्द किया गया है। मैं इस अन्याय के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ूंगी।”

वहीं, इस सीट से जन सुराज की उम्मीदवार गीता पासी का नामांकन निर्वाचन पदाधिकारी द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। गीता पासी अब मोहनिया सीट पर मुख्य मुकाबले में नजर आएंगी, जिससे क्षेत्र का चुनावी समीकरण बदलता हुआ दिखाई दे रहा है।

इस घटनाक्रम के बाद स्थानीय राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है। राजद कार्यकर्ता इसे सत्ता पक्ष की “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” बता रहे हैं, जबकि विपक्षी दल इसे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता का उदाहरण कह रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोहनिया विधानसभा सीट पर इस निर्णय का सीधा असर चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है, क्योंकि श्वेता सुमन युवाओं और महिलाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही थीं। उनके हटने से अब यह मुकाबला जन सुराज और अन्य दलों के बीच त्रिकोणीय हो सकता है।

आगामी दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि श्वेता सुमन इस निर्णय के खिलाफ कानूनी लड़ाई कहां तक ले जाती हैं और क्या आयोग के फैसले पर पुनर्विचार की कोई गुंजाइश बनती है।

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