ट्रंप की दो 'फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट' और उनपर PM मोदी का जवाब, 4 दिन में आए 4 बयान के मायने समझिए

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 4 दिन के अंदर दूसरी बार भारत और भारत के प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेज दिया है. भारत पर 50% टैरिफ लादने वाले ट्रंप के सुर बदले बदले नजर आ रहे हैं. भारत पर व्यापारिक घाटे और रूस से तेल खरीदने के लिए महीनों से जोरदार हमला करने वाले ट्रंप ने भारत-अमेरिका के रिश्तों पर जोर दिया है, वो व्यापार वार्ता के जल्द सफल होने की उम्मीद जता रहे हैं. चलिए आपको ट्रंप की इन दो फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट और दोनों पर पीएम मोदी के जवाब का सार समझाते हैं. पहले आपको बताते हैं कि ट्रंप ने अपने दो मैसेज से कैसे नरमी के संकेत दिखाए हैं और पीएम मोदी ने दोनों बार क्या जवाब दिया है.
6 सितंबर- पहला फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट
भारतीय समयानुसार 6 सितंबर को राष्ट्रपति ट्रंप ने व्हाइट हाउस में भारत-अमेरिका संबंधों को "बहुत विशेष संबंध" कहा और इस बात पर जोर दिया कि वह और पीएम मोदी हमेशा दोस्त रहेंगे. उन्होंने कहा कि "चिंता की कोई बात नहीं है".
न्यूज एजेंसी ANI ने उनसे सवाल किया, "क्या आप इस बिंदु पर भारत के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने के लिए तैयार हैं?". इसके जवाब में ट्रंप ने कहा, "मैं हमेशा करूंगा. मैं (पीएम) मोदी के साथ हमेशा दोस्त रहूंगा. वह एक महान प्रधान मंत्री हैं. मैं हमेशा दोस्त रहूंगा, लेकिन वह इस विशेष क्षण में जो कर रहे हैं वह मुझे पसंद नहीं है. लेकिन भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक बहुत ही विशेष संबंध है. चिंता की कोई बात नहीं है. हमारे पास मौके पर ही मौके होते हैं."
पीएम मोदी ने भी शनिवार को ट्रंप के इस बयान पर गर्मजोशी से प्रतिक्रिया दी, पीएम मोदी ने भी एक कदम आगे बढ़ाया है. पीएम मोदी ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक मूल्यांकन की हम तहे दिल से सराहना करते हैं. भारत और अमेरिका के बीच बहुत सकारात्मक, दूरदर्शी, व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है.
10 सितंबर- दूसरा फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट
भारतीय समयानुसार 10 सितंबर को, यानी 4 दिन के अंदर ट्रंप ने दूसरा फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेजा. ट्रंप ने कहा कि अमेरिका और भारत दोनों देशों के बीच "व्यापार बाधाओं" को दूर करने के लिए बातचीत कर रहे हैं. अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में, ट्रंप ने लिखा, "मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और अमेरिका हमारे दोनों देशों के बीच व्यापार बाधाओं को दूर करने के लिए बातचीत जारी रख रहे हैं. मैं आने वाले हफ्तों में अपने बहुत अच्छे दोस्त, प्रधान मंत्री मोदी के साथ बात करने के लिए उत्सुक हूं. मुझे यकीन है कि हमारे दोनों महान देशों के लिए एक सफल निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं होगी!"
बारी अब पीएम मोदी की थी. उन्होंने इस पोस्ट पर जवाब देते हुए लिखा, “भारत और अमेरिका घनिष्ठ दोस्त और स्वाभाविक पार्टनर हैं. मुझे विश्वास है कि हमारी व्यापार वार्ता भारत-अमेरिका साझेदारी की असीमित संभावनाओं को उजागर करने का रास्ता तैयार करेगी. हमारी टीमें इन चर्चाओं को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए काम कर रही हैं. मैं राष्ट्रपति ट्रंप से बात करने के लिए भी उत्सुक हूं. हम अपने दोनों लोगों के लिए एक उज्जवल, अधिक समृद्ध भविष्य सुरक्षित करने के लिए मिलकर काम करेंगे.”
यह गर्मजोशी वाले बयान क्या बता रहे?
जब से पीएम मोदी चीन दौरे से लौटे हैं, तस्वीर नई नजर आ रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने अमेरिका के अंदर भारतीय वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है, जिसमें रूसी तेल की खरीद पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत जुर्माना भी शामिल है. ट्रंप के इस कदम ने दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ा दी है. टैरिफ विवाद के बीच पीएम मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में शामिल होकर इशारों में ट्रंप को सख्त संदेश दिया था. पीएम मोदी के चीन दौरे से लौटने के बाद जिस तरह दोनों तरफ से नरमी के संकेत मिल रहे हैं, लगता है कि तीर निशाने पर लगा है.
भारत ने अबतक पूरे टैरिफ विवाद के बीच एक मौके पर भी पीछे हटना स्वीकार नहीं किया है. भारत ने संदेश दिया है कि उसे दबाकर जबरदस्ती कोई काम नहीं कराया जा सकता है. ट्रंप और अमेरिका को पता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, रक्षा से व्यापार तक- कई मोर्चों पर दोनों देश नेचुरल पार्टनर हैं. ट्रंप को यह भी पता है कि ट्रेड डील दोनों ही देशों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है. ऐसे में ट्रंप ये खतरा उठाने का जोखिम मोल नहीं लेना चाहेंगे और संबंध को हद से ज्यादा बिगड़ना देने नहीं चाहते हैं. भारत की तरफ से भी इस मामले में व्यावहारिक रणनीति अपनाई जा रही है, इसे इगो का मुद्दा नहीं बनाया जा रहा है. ट्रंप के दोनों बयान और दोनों बार पीएम मोदी का जवाब यह संकेत देता है कि हमें भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता से सकारात्मक उम्मीद लगाई रखनी चाहिए.