जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने क्यों खारिज की?

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. यह याचिका राजधानी में जज यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास से भारी मात्रा में कैश मिलने के मामले में दायर की गई थी.
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुयान (जज भुइयां) की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से 8 मई को जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि भारत के चीफ जस्टिस ने जज के जवाब के साथ आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री को भेज दी है.
बेंच ने कहा, ‘आदेश की मांग करने वाली याचिका दायर करने से पहले याचिकाकर्ता को उचित प्राधिकरण के समक्ष प्रतिवेदन दायर कर अपनी शिकायत का निवारण करना होगा. इसलिए हम इस रिट याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हैं. इस स्तर पर अन्य याचिकाओं पर गौर करना जरूरी नहीं है.’
आंतरिक जांच पैनल की ओर से जस्टिस यशवंत वर्मा को दोषी ठहराए जाने के बाद पूर्व CJI संजीव खन्ना ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा था. संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था. यह पत्र जस्टिस वर्मा की ओर से इस्तीफा देने से इनकार करने के बाद लिखा गया था. जस्टिस वर्मा को इस विवाद के बीच दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था.
किसने डाली याचिका
एडवोकेट मैथ्यूज नेदुम्पारा और तीन अन्य लोगों की ओर से दायर याचिका में आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई थी. इसमें कहा गया था कि आंतरिक समिति ने जज के खिलाफ लगे आरोपों को पहली नजर में सच पाया है. याचिका में कहा गया है कि आंतरिक जांच से न्यायिक अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है, लेकिन यह लागू कानूनों के तहत आपराधिक जांच का विकल्प नहीं है.
मार्च में भी हुई थी मांग
मार्च में इन्हीं याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. उस समय आंतरिक जांच को चुनौती देते हुए औपचारिक पुलिस जांच की मांग की गई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आंतरिक कार्यवाही लंबित होने का हवाला देते हुए याचिका को समय से पहले खारिज कर दिया था. जांच पूरी होने के साथ ही याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि आपराधिक कार्रवाई में देरी अब उचित नहीं है.