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बीआर गवईः देश के नए CJI…सिसोदिया-बुलडोजर-नोटबंदी-370-SC/ST रिजर्वेशन समेत इन 10 बड़े मामलों में सुना चुके फैसले

बीआर गवईः देश के नए CJI…सिसोदिया-बुलडोजर-नोटबंदी-370-SC/ST रिजर्वेशन समेत इन 10 बड़े मामलों में सुना चुके फैसले
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कल यानी 13 मई को सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई संजीव खन्ना के रिटायरमेंट के बाद आज बीआर गवई ने सर्वोच्च अदालत की कमान संभाल ली है. गवई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद और गोपनियता की शपथ दिलाई. वे देश के पहले ऐसे सीजेआई हैं, जो बौद्ध धर्म का पालन करते हैं. जस्टिस गवई के पिता – आरएस गवई उन चार लाख लोगों में से एक थे जिन्होंने डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के साथ 1956 में बौद्ध धर्म अपनाया था. जस्टिस गवई का आज से शुरू हो रहा कार्यकाल 6 महीने से कुछ दिन ज्यादा 24 नवंबर तक चलेगा. बीआर गवई के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीवी नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई बनेंगी. सुप्रीम कोर्ट के होने वाले सीजेआई का नाम पहले सी ही तय होता है क्योंकि ये वरिष्ठता के आधार पर तय होता है.

बीआर गवई को लेकर वैसे तो कई खास बातें हैं. लेकिन सबसे अहम ये है कि वे दलित समुदाय से आने वाले दूसरे सीजेआई होंगे. उनसे पहले केजी बालाकृष्णनन 2007 में देश के पहले दलित मुख्य न्यायधीश बने थे. बालाकृष्णनन का कार्यकाल तकरीबन 3 साल का रहा था. 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्मे बीआर गवई ने बीकॉम की पढ़ाई पूरी करने के बाद अमरावती विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की. बहुत से लोगों को शायद पता नहीं पर ये जानना दिलचस्प है कि जस्टिस गवई एक वास्कुतार (आर्किटेक्ट) बनना चाहते थे. पर उन्होंने वकालत का रास्त अपने पिता का मन रखने के लिए चुना. जस्टिस गवई के पिता आरएस गवई अंबेडकरवादी नेता थे और उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की.

जस्टिस गवई का न्यायिक सफर

आर एस गवई अमरावती से लोकसभा सांसद रहे. इसके अलावा कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के दौरान 2006 से 2011 के बीच बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल रहे. बीआर गवई के पिता आरएस गवई का साल 2015 में निधन हो गया. बीआर गवई ने 25 बरस की उम्र में वकालत करना शुरू किया था. ये साल 1985 था. बीआर गवई ने बॉम्बे हाईकोर्ट से लेकर नागपुर बेंच तक के सामने अपनी दलीलें रखीं. 2005 में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बने और सुप्रीम कोर्ट में 24 मई 2019 को दाखिल हुए. हाईकोर्ट में उनका बतौर जज सफर तकरीबन 16 साल रहा. सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए बीआर गवई अब तक करीब 700 बेंच का हिस्सा रह चुके हैं. अब तक करीब 300 फैसले वे यहां लिख चुके हैं. जिनमें संविधान पीठ के फैसले भी हैं.

जस्टिस गवई के 10 बड़े फैसले

जस्टिस बीआर गवई ने न्यूजक्लिक के फाउंडर और संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को यूएपीए के मामले में जमानत दे दिया था. वहीं, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया को भी दिल्ली शराब नीति मामले में जमानत देते हुए गवई ने चीजें काफी तय की. जस्टिस गवई ने यूएपीए और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में गिरफ्तारी के लिए कई चीजें तय कर दीं. जस्टिस गवई की ही बेंच ने वो फैसला भी दिया था जहां उन्होंने कहा कि बुलडोजर न्याय पूरी तरह से गलत है. लोगों के घरों को बिना कानून के प्रावधानों का पालन किए ढा देने पर जस्टिस गवई ने काफी तल्ख टिप्पणी की थी.

जस्टिस गवई उस 7 सदस्यीय पीठ का भी हिस्सा थे जिसने एस-एसटी आरक्षण के भीतर कोटा बनाने का रास्ता साफ कर दिया था. इस फैसले में जस्टिस गवई ने एससी-एसटी समुदाय में क्रीमी लेयर बनाने की वकालत की थी.पिछले साल फरवरी महीने में जब चुनावी फंडिंग के प्रावधान इलेक्टोरल बॉन्ड को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सूचना के अधिकार कानून का उल्लंघन मानते हुए असंवैधानिक ठहरा दिया था, तो जस्टिस बीआर गवई उस संविधान पीठ का हिस्सा थे.

वहीं, दिसबंर 2023 के उस संविधान पीठ का भी जस्टिस गवई हिस्सा रह चुके हैं जिसने जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे – अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने वाले केंद्र सरकार के फैसले को सही माना था. जस्टिस गवई उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाया था. जस्टिस गवई ने उस फैसले में भी अहम भूमिका निभाई जिसमें नोटबंदी के फैसले को संवैधानिक तौर पर दुरुस्त माना गया था.

वक्फ पर देंगे फैसला

जस्टिस गवई ने राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि के मुकदमे की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. तब उन्होंने अपने परिवार खासकर पिता और भाई की कांग्रेस पार्टी से नजदीकियों को हवाला दिया था. जस्टिस गवई अब सुप्रीम कोर्ट में जारी उस एक अहम मामले को भी सुनेंगे जहां वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनोती दी गई है. इसी तरह, उनके सामने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव और दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा से जुड़ा विवाद भी उनके सामने है. वक्फ पर संभव है कि 15 मई को सुनवाई हो.

जस्टिस बीआर गवई ने सीजेआई की शपथ लेने से पहले कुछ बड़ी बातें कही हैं. जिनमें पहला ये कि न तो संसद सर्वोच्च है और ना ही न्यायपालिका. बल्कि जस्टिस गवई का कहना था संविधान सही मायने में सर्वोच्च है. इस सवाल पर कि जज रिटायरमेंट के बाद गवर्नर के और दूसरे राजनीतिक पद कुबूल कर लेते हैं. जस्टिस गवई ने साफ किया कि मेरी तनिक भी कोई राजनीतिक महत्वकांक्षा नहीं है. और मैं रिटायरमेंट के बाद कोई पद नहीं लूंगा. जजों औऱ नेताओं के बीच होने वाली मुलाकात पर उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है.

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