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उत्तर प्रदेश

जिस दांव से BJP ने 2017 में छिन ली थी सत्ता, अब उसी पर 2027 की बिसात बिछा रहे अखिलेश यादव

जिस दांव से BJP ने 2017 में छिन ली थी सत्ता, अब उसी पर 2027 की बिसात बिछा रहे अखिलेश यादव
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उत्तर प्रदेश में डेढ़ साल के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन सियासी बिसात अभी से ही बिछाई जाने लगी है. 2017 में जिस दांव से बीजेपी ने सपा को सत्ता से बेदखल कर अपना सियासी वनवास खत्म करने में कामयाब रही है, अब अखिलेश यादव उसी दांव से योगी आदित्यनाथ को 2027 में सत्ता से हटाने का तानाबाना बुन रहे. अखिलेश का पूरा फोकस ओबीसी वोटों पर है, जिनके सहारे बीजेपी यूपी में अपनी सियासी जड़े जमाने में कामयाब रही है.

अब सपा उन्हीं ओबीसी की अलग-अलग जातियों को साधने में अभी से जुट गई है, जिसे भरोसा दिलाने के लिए अखिलेश यादव मजबूत और पक्का वादा करने का भी प्लान बनाया है. इसके लिए सपा 2027 के चुनाव घोषणा पत्र में शामिल करेगी. ऐसे में देखना है कि बीजेपी के विनिंग फॉर्मूला क्या सपा के लिए सियासी संजीवनी बनेगा?

बीजेपी के वोटबैंक पर सपा की नजर

बीजेपी उत्तर प्रदेश में 2002 के बाद 2017 में सत्ता लौटी थी. 2017 में अखिलेश सरकार पर यादववाद का नैरेटिव गढ़कर बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी, दलित और सवर्ण जातियों की सोशल इंजीनियरिंग बनाकर यूपी की सत्ता अपने नाम की थी, अब उसी तर्ज पर योगी सरकार के खिलाफ अखिलेश यादव सियासी बिसात बिछाने की कवायद में है. सपा ने 2024 में पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोटों के सहारे बीजेपी को मात देने में सफल रहे. अब उसे और भी विस्तार देने में जुटे हैं, जिसके लिए शनिवार को नोनिया समाज के लोगों के साथ बैठक किया और तमाम वादों का ऐलान किया. नोनिया समाज के लोग अपने नामों के साथ चौहान लिखते हैं. राजभर और चौरसिया जैसी ओबीसी जातियों को भी साधने की नजर है.

राजभर वोटों को लिए सपा ने चला दांव

अखिलेश ने शुक्रवार को राजभर समाज के लोगों के साथ सिर्फ बैठक ही नहीं किया बल्कि सत्ता में आने पर लखनऊ की गोमती नदी के किनारे राजभर के महापुरुष माने जाने वाले राजा सुहेलदेव की प्रतिमा लगाने का भी ऐलान कर दिया. सुहेलदेव महाराज के हाथ में तलवार सोने के साथ मिश्रित ‘अष्टधातु (आठ तत्वों)’ से बनी होगी. अखिलेश ने नवगठित सुहेलदेव सम्मान स्वाभिमान पार्टी के प्रमुख महेंद्र राजभर की इच्छा का सम्मान करते हुए यह घोषणा की. इस तरह से राजभर समुदाय को साधने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही.

यूपी के पूर्वांचल में राजभर समुदाय के लिए काफी अहम माने जाते हैं. 2022 के चुनाव में राजभर समाज का बड़ा तबका सपा के साथ रहा था, क्योंकि ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा के साथ उनका गठबंधन था. इसके बाद दोनों का गठबंधन टूट गया है. ओम प्रकाश राजभर अब बीजेपी के साथ हैं. ऐसे में राजभरों का विश्वास बनाए रखने के लिए सुहेलदेव का सहारा ले रहे हैं. राजा सुहेलदेव की विरासत पर दावा करने की रणनीति मानी जा रही है. 2016 में राजभर समाज के वोटों साधने के लिए अमित शाह ने सुहेलदेव के गौरव को बहाल करने का वादा किया था. पीएम मोदी ने सुहेलदेव के नाम पर डाक टिकट जारी किया और ट्रेन चलाई थी. सपा ने सुहेलदेव की मूर्ती को लखनऊ में लगाने का दांव चला.

चौरसिया समाज पर सपा की नजर

पिछले दिनों अखिलेश यादव ने कांग्रेस के पूर्व सांसद शिवदयाल चौरसिया की जयंती पर ओबीसी और दलितों को एक राजनीतिक संकेत भी दिया था. शिवदयाल को चौरसिया समाज का बड़ा नेता माना जाता रहा है. उन्होंने संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर और बसपा के संस्थापक कांशीराम जैसे लोगों के साथ काम किया था. अखिलेश ने 13 मार्च को उनकी जंयती के मौके पर ऐलान किया था कि हम जब सरकार में आएंगे तो शिवदयाल चौरसिया जी के सम्मान में गोमती नदी के किनारे उनके नाम का स्मारक बनवाएंगे.

अखिलेश ने चौरसिया समाज को सियासी संदेश देने और उनके विश्वास को जीतने की कवायद की. यूपी में चौरसिया समाज करीब 2 से 3 फीसदी है. भले ही किसी भी एक सीट पर चौरसिया समाज अपने दम पर एक भी विधायक जिताने की ताकत न रखता हो, लेकिन दूसरी जातियों के साथ मिलकर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में रहते हैं. चौरसिया वोटर फिलहाल बीजेपी को कोर वोटबैंक माना जाता है, लेकिन सपा अब शिवदयाल को सम्मान देकर चौरसिया वोटों को साधने की स्ट्रैटेजी बनाई है. इसके चलते सपा ने पार्टी संगठन में राम लखन चौरसिया को अहम रोल दे रखा है.

बीजेपी के नक्शेकदम पर सपा

बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की तमाम छोटी-छोटी जातियों को साधने की कवायद की थी. अमित शाह ने माइक्रो लेवल पर जाकर तमाम जातियों को साधने के बीच बीजेपी की पैठ बनाने के लिए उनके महापुरुषों की याद में कार्यक्रम करने और त्योहारों में पार्टी नेताओं को शामिल होने के आदेश दिए थे. बीजेपी बूथ स्तर पर ये काम कर उन्हें अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही. अब सपा भी उसी स्टाइल में काम कर रही है.

सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए का नैरेटिव सेट किया था, जिसमें यादव के साथ कुर्मी, मौर्या, लोध जैसी ओबीसी की अहम जातियों को जोड़कर बीजेपी को मात दी थी. अब 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए सपा की नजर ओबीसी की तमाम अलग-अलग जातियों के वोटबैंक पर है. अखिलेश यादव नोनिया से लेकर राजभर और चौरसिया ही नहीं बल्कि प्रजापित, लोहार, बढ़ाई, जैसी तमाम ओबीसी जातियों को भी साधने की कवायद में है, जिसके लिए सपा ने अपना प्लान बना लिया है.

समाजवादी पार्टी ने तमाम कलाकारों, खास तौर पर लोक गायकों पर भी अपनी नजरें गड़ा दी हैं, जिन्हें चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा माना जाता है. पिछले साल दिसंबर में सपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ की बैठक में पार्टी ने उन्हें ‘उचित सम्मान’ सुनिश्चित किया और सत्ता में आने पर ‘उन्हें सरकार में शामिल करने’ का भी वादा किया. इस तरह सपा अपनी मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने में जुटी है.

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