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उत्तर प्रदेश

‘ब्राह्मण ही समाज का मार्गदर्शक…’ बयान से यूपी की सियासत में उबाल, BJP विधायक पंचनंद पाठक के सहभोज पर भी घमासान

‘ब्राह्मण ही समाज का मार्गदर्शक…’ बयान से यूपी की सियासत में उबाल, BJP विधायक पंचनंद पाठक के सहभोज पर भी घमासान
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातिगत बयान और सामाजिक संतुलन को लेकर एक बार फिर तीखी बहस छिड़ गई है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए कथित बयान—जिसमें ‘ब्राह्मण ही समाज का मार्गदर्शक’ जैसी टिप्पणी का जिक्र है—ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। यह बयान भारतीय जनता पार्टी के विधायक पंचनंद पाठक से जोड़कर देखा जा रहा है। मामला सामने आते ही विपक्ष ने सरकार पर हमला तेज कर दिया, वहीं सत्तारूढ़ दल में भी बयान की व्याख्या को लेकर सावधानी बरती जा रही है।

विवाद की शुरुआत कैसे हुई

दरअसल, हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट/कथन वायरल हुआ, जिसमें दावा किया गया कि विधायक पंचनंद पाठक ने ब्राह्मण समाज को लेकर ऐसा वक्तव्य दिया है, जिससे अन्य समाजों की भूमिका को कमतर आंका गया। पोस्ट के वायरल होते ही राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई और इसे जातिगत वर्चस्व से जोड़कर देखा जाने लगा।

सहभोज से जुड़ा विवाद

इस पूरे प्रकरण में विधायक के सरकारी आवास पर आयोजित सहभोज का भी जिक्र सामने आया। तस्वीरों और सूचनाओं के आधार पर विपक्ष ने आरोप लगाया कि

सहभोज का स्वरूप

जाति-विशेष तक सीमित था। इस पर सवाल उठाए गए कि क्या सार्वजनिक पद पर बैठे प्रतिनिधि को ऐसे आयोजनों में संतुलन और समावेशिता का विशेष ध्यान नहीं रखना चाहिए।

विधायक पंचनंद पाठक की सफाई

विवाद बढ़ने के बाद विधायक पंचनंद पाठक ने सामने आकर सफाई दी।

उन्होंने कहा कि—

उनके बयान को संदर्भ से अलग कर पेश किया गया है।

उन्होंने किसी भी समाज को श्रेष्ठ या अन्य समाजों को कमतर बताने की बात नहीं कही।

उनका आशय समाज के निर्माण में ऐतिहासिक और वैचारिक योगदान की चर्चा तक सीमित था।

सहभोज का उद्देश्य सामाजिक संवाद और आपसी मेल-मिलाप था, न कि किसी तरह का जातिगत भेदभाव।

उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से बना है और सभी वर्गों का योगदान समान रूप से सम्माननीय है।

विपक्ष का तीखा हमला

विपक्षी दलों ने इस बयान और सहभोज को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि—

इस तरह के बयान सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाते हैं।

सत्ता में बैठे जनप्रतिनिधियों को भाषा और मंच दोनों को लेकर अधिक जिम्मेदार होना चाहिए।

सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वह समाज को जोड़ने की नीति पर है या विभाजन की राजनीति पर।

कुछ नेताओं ने इस मुद्दे को विधानसभा और सार्वजनिक मंचों पर उठाने के संकेत भी दिए।

बीजेपी के भीतर की स्थिति

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पार्टी इस पूरे मामले को डैमेज कंट्रोल के तौर पर देख रही है। वरिष्ठ नेताओं की ओर से यह संदेश दिया गया है कि किसी भी प्रकार की सामाजिक या जातिगत टिप्पणी से बचा जाए और संगठन की आधिकारिक लाइन—सबका साथ, सबका विकास—पर ही बात रखी जाए।

सोशल मीडिया पर बहस

सोशल मीडिया पर यह मुद्दा दो खेमों में बंट गया है—

एक पक्ष विधायक के बयान को गलत तरीके से पेश किए जाने की बात कह रहा है।

दूसरा पक्ष इसे सामाजिक संतुलन के खिलाफ मानते हुए आलोचना कर रहा है।

कई यूजर्स ने यह भी मांग की कि वायरल पोस्ट/क्लिप का पूरा संदर्भ सार्वजनिक किया जाए, ताकि सच्चाई स्पष्ट हो सके।

राजनीतिक और सामाजिक संदेश

विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश जैसे सामाजिक रूप से विविध राज्य में जातिगत मुद्दों पर बयान राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील होते हैं। चुनावी माहौल और सोशल मीडिया की सक्रियता के दौर में किसी भी टिप्पणी का असर दूरगामी हो सकता है।

फिलहाल यह मामला राजनीतिक बयानबाजी और सोशल मीडिया बहस तक सीमित है। विधायक की सफाई के बाद औपचारिक कार्रवाई या जांच की कोई पुष्टि सामने नहीं आई है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि यह प्रकरण आने वाले दिनों में भी राजनीतिक चर्चाओं का हिस्सा बना रह सकता है। सभी की नजरें इस पर टिकी हैं कि आगे पार्टी और सरकार इस मुद्दे को किस तरह संतुलित ढंग से संभालती है।

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