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उत्तर प्रदेश

भदोही के ग्राम मटकीपुर ने खोया अपना पथ-प्रदर्शक, पं. अंबिका प्रसाद दूबे का 96 वर्ष की आयु में निधन

भदोही के ग्राम मटकीपुर ने खोया अपना पथ-प्रदर्शक, पं. अंबिका प्रसाद दूबे का 96 वर्ष की आयु में निधन
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भदोही। जनपद के ग्राम मटकीपुर ने जिस दिन पंडित अंबिका प्रसाद दूबे को खोया, उस दिन केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे समाज के पथ-प्रदर्शक, संस्कारदाता और प्रेरणा-पुरुष का निधन हुआ। 96 वर्ष की दीर्घ जीवन यात्रा में पंडित दूबे ने अपने कर्म, विचार और सादगी से न जाने कितनों के जीवन को छुआ, दुःख दूर किए और धर्म व सेवा का मार्ग दिखाया।

ग्राम समाज में उन्हें एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में देखा जाता था। बचपन से ही धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के कारण वे हर आयु वर्ग के लिए प्रेरणा बने रहे। गाँव हो या क्षेत्र, किसी भी व्यक्ति की समस्या सामने आती तो पं. दूबे उसके समाधान के लिए खड़े नज़र आते। यही कारण था कि वे केवल अपने परिवार तक सीमित नहीं रहे, बल्कि पूरे समाज के लिए मार्गदर्शक और अभिभावक बने।

उनकी जीवनशैली सादगी और अनुशासन का प्रतीक रही। धार्मिक अनुष्ठानों में सक्रिय भागीदारी, सेवा भाव से परिपूर्ण व्यक्तित्व और समाज को जोड़ने वाली उनकी सोच उन्हें विशेष बनाती थी। उनके संपर्क में आए लोग बताते हैं कि उन्होंने हमेशा दूसरों को ऊँचे आदर्शों पर चलने के लिए प्रेरित किया।

पंडित अंबिका प्रसाद दूबे के निधन से गाँव ही नहीं, पूरे जनपद में शोक की लहर है। अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता और विभिन्न वर्गों के लोग शामिल हुए। श्रद्धांजलि देते हुए लोगों ने कहा कि उनका जाना समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।

उनका जाना गाँव ही नहीं, जिलेभर के लिए शून्य छोड़ गया है।

भगवतभक्त पं. दूबे ने भादों नक्षत्र की पावन अष्टमी को इस संसार को अलविदा कह दिया। यह संयोग ही है कि जिस तिथि को उन्होंने सांसारिक यात्रा पूर्ण की, उसी दिन उनका पूरा जीवन मानो धर्म और आस्था की परिणति में विलीन हो गया।

उनकी सादगी और भलमनसाहत इतनी गहरी थी कि गाँव का हर व्यक्ति उन्हें अपना मानता था। बच्चों के लिए वे दादा समान स्नेही, युवाओं के लिए प्रेरणा-श्रोत और बुजुर्गों के लिए मार्गदर्शक थे।

२०१७ में धर्मपत्नी के निधन के बाद भी उन्होंने नाती-पोतों संग रहकर जीवन को आनंद, संतोष और आस्था से भरा। उनके चेहरे पर कभी भी अकेलेपन की छाया नहीं दिखी, बल्कि हर समय एक संत-सा तेज दिखाई देता था।

ग्राम प्रधान बत्‍याई दूबे और वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर दूबे जैसे योग्य संतानें उनका ही संस्कार और तपस्या का परिणाम हैं। अपने पीछे वे तीन पुत्र, तीन पुत्रवधुएँ, तीन पुत्रियाँ और नाती-पोतों सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं, जिन पर उनकी छत्रछाया सदा बनी रही।

जब उनकी अंतिम यात्रा निकली, तो गाँव की गलियों में सन्नाटा और लोगों की आँखों में आंसू थे। हर कोई उनके चरणों में श्रद्धा-सुमन अर्पित कर भावविह्वल हो उठा। उनके त्याग, सेवा और भक्ति-भरे जीवन को स्मरण करते हुए लोग कहते नहीं थक रहे थे कि "आज समाज ने अपना सच्चा मार्गदर्शक खो दिया।"

मुखाग्नि उनके ज्येष्ठ पुत्र राजमणि दूबे ने दी, और उस अग्नि की लपटों में केवल एक देह ही विलीन नहीं हुई, बल्कि एक युग का अंत और आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी स्मृतियों का अमर दीपक प्रज्वलित हो गया।

आज पं. अंबिका प्रसाद दूबे हमारे बीच भले नहीं हैं, पर उनकी सादगी, सेवा और धर्ममय जीवन हमेशा समाज को राह दिखाता रहेगा।वे चले गए, लेकिन हर दिल में वे अब भी जीवित हैं—एक प्रेरणा, एक आस्था और एक आशीर्वाद बनकर।

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