रामपुर : सेना वाले बयान मामले में सपा नेता आज़म खां बरी — 7 साल पुराने केस में कोर्ट ने कहा, “साक्ष्य नहीं, आरोप सिद्ध नहीं होता”

रिपोर्ट : विजय तिवारी
रामपुर। समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आज़म खां को 7 साल पुराने संवेदनशील मामले में आज राहत मिल गई। रामपुर MP/MLA स्पेशल कोर्ट ने 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान सेना के जवानों को लेकर दिए गए कथित विवादित बयान मामले में आज़म खां को पूर्ण रूप से बरी कर दिया है।
अदालत ने साफ कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और उपलब्ध सामग्री से उनका दोष सिद्ध नहीं होता।
कहां से शुरू हुआ विवाद?
साल 2017 की एक चुनावी रैली में दिए गए आज़म खां के भाषण को लेकर आरोप लगा कि उन्होंने सेना के जवानों के पराक्रम पर टिप्पणी की थी।
बयान सामने आते ही राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएँ शुरू हो गईं।
इसी बयान को आधार बनाते हुए उस समय के बीजेपी नेता और वर्तमान विधायक आकाश सक्सेना ने आज़म खां के खिलाफ FIR कराई थी।
मामला राष्ट्रीय भावनाओं से जुड़ा होने के कारण कई महीनों तक सुर्खियों में रहा।
अदालत में क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आज़म खां का बयान सेना की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला था, लेकिन—
प्रस्तुत वीडियो क्लिप्स व ऑडियो प्रमाण स्पष्ट और विश्वसनीय नहीं पाए गए।
गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे।
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि बयान को संदर्भ से हटाकर राजनीतिक उद्देश्य से पेश किया गया।
लंबी बहस के बाद कोर्ट ने कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों में इतनी मजबूती नहीं कि आरोपी को दोषी ठहराया जा सके। इसलिए अदालत ने आज़म खां को बाइज्जत बरी घोषित कर दिया।
आज़म खां को क्यों है यह फैसला खास?
आज़म खां इन दिनों अलग मामले — दो पैनकार्ड केस — में अपने बेटे अब्दुल्ला आज़म के साथ जेल में बंद हैं।
ऐसे में यह फैसला उनके लिए कानूनी मोर्चे पर बड़ी राहत लेकर आया है, क्योंकि : उन पर चल रहे कई मामलों में यह निर्णय भविष्य की रणनीति को प्रभावित करेगा,
और राजनीतिक गतिविधियों में उनकी संभावित वापसी की चर्चाएँ भी तेज हो सकती हैं।
राजनीतिक हलचल तेज, समर्थकों में राहत
फैसला आते ही सपा समर्थकों में उत्साह देखा गया, जबकि विपक्ष इस केस को लेकर अपनी प्रतिक्रिया तैयार कर रहा है।
रामपुर में इस केस की वजह से सुबह से ही हलचल रही और कोर्ट प्रांगण के बाहर सुरक्षा भी बढ़ाई गई थी।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि—
“यह फैसला केवल कानूनी नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज़म खां की स्थिति को नया आयाम दे सकता है।”
कानूनी विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
कानून जानकारों के अनुसार, कोर्ट के इस आदेश से यह स्पष्ट होता है कि—
किसी भी संवेदी विषय पर आरोप लगाने के लिए ठोस और विश्वसनीय प्रमाण आवश्यक हैं,
केवल राजनीतिक बयानबाज़ी के आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता।
नतीजा
7 साल पुराने विवाद पर आए इस फैसले ने आज़म खां की राजनीति और अगली कानूनी लड़ाइयों को नई दिशा दे दी है।
अब अगली नजर इस बात पर होगी कि अन्य लंबित मामलों में आगे की प्रक्रिया कैसी रहती है।




