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उत्तर प्रदेश

गुजरात पर बढ़ता कर्ज़: हर गुजराती बच्चा जन्म से ही ₹66 हज़ार के बोझ तले

गुजरात पर बढ़ता कर्ज़: हर गुजराती बच्चा जन्म से ही ₹66 हज़ार के बोझ तले
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👉 राज्य का कुल कर्ज़ लगातार बढ़ रहा है।

👉 अर्थव्यवस्था और विकास मॉडल पर सवाल उठने लगे हैं।

👉 विपक्ष का आरोप – सरकार "कर्ज़ पर विकास" का दावा कर रही है।

गुजरात की वित्तीय स्थिति को लेकर एक चौंकाने वाला आँकड़ा सामने आया है। ताज़ा सरकारी आँकड़ों के अनुसार राज्य पर कुल सार्वजनिक कर्ज़ इतना बढ़ चुका है कि औसतन हर गुजराती नागरिक पर लगभग ₹66,000 का बोझ आता है। इसका सीधा मतलब यह है कि राज्य में जन्म लेने वाला हर बच्चा भी जन्म से ही इस कर्ज़ के बोझ के साथ ज़िंदगी शुरू करता है।

कितना है कुल कर्ज़?

राज्य सरकार के वित्त विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात का कुल कर्ज़ पिछले कुछ वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है। विकास परियोजनाओं, आधारभूत संरचना और कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ने के कारण राज्य को बड़े पैमाने पर उधारी लेनी पड़ी है।

विपक्ष का हमला

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है। विपक्ष का कहना है कि गुजरात मॉडल की असलियत यही है कि विकास कर्ज़ पर आधारित है। कांग्रेस प्रवक्ताओं का कहना है कि “भविष्य की पीढ़ी को भारी वित्तीय बोझ तले झोंका जा रहा है। विकास के नाम पर लिया गया कर्ज़ आम जनता की जेब से वसूला जाएगा।”

सरकार की दलील

वहीं, गुजरात सरकार का कहना है कि राज्य की वित्तीय स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है। सरकार का तर्क है कि कर्ज़ को लेकर घबराने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अधिकांश ऋण आधारभूत ढाँचों में निवेश किए गए हैं जो आने वाले समय में राज्य की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेंगे। वित्त विभाग का कहना है कि “राज्य की जीडीपी वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर है और कर्ज़-से-जीडीपी अनुपात सुरक्षित सीमा में है।”

विशेषज्ञों की राय

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि कर्ज़ लेना अपने आप में समस्या नहीं है, लेकिन ज़रूरी है कि उसका सही और उत्पादक उपयोग किया जाए। यदि कर्ज़ से बनने वाले प्रोजेक्ट्स से रोज़गार और आय के स्रोत पैदा होते हैं, तो भविष्य में यह बोझ हल्का हो सकता है। लेकिन अगर कर्ज़ का बड़ा हिस्सा केवल राजकोषीय घाटा पूरा करने में चला जाए, तो यह आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर संकट बन सकता है।

निष्कर्ष

गुजरात का बढ़ता कर्ज़ अब राजनीतिक बहस का बड़ा मुद्दा बन गया है। एक तरफ़ सरकार इसे विकास का निवेश बता रही है, तो दूसरी ओर विपक्ष इसे "भविष्य की पीढ़ियों पर बोझ" कहकर जनता को चेतावनी दे रहा है।

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