राज्यसभा चुनाव: सियासी घमासान के बीच मथुरा में जयंत विधायक दल के साथ करेंगे बैठक, 26 को CM योगी से मुलाकात अहम
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प्रदेश की 10वीं राज्यसभा सीट पर मचे सियासी घमासान के बीच रालोद हर कदम पर एहतियात बरत रहा है। रविवार को मथुरा में रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने विधायक दल की बैठक बुलाई है। यहीं से विधायक मतदान के लिए रवाना होंगे। इसके बाद लखनऊ में सीएम योगी आदित्यनाथ से अहम मुलाकात होगी।
राज्यसभा चुनाव के लिए 27 फरवरी को मतदान होना है। भाजपा और सपा ने अपने-अपने प्रत्याशी के लिए वोट जुटाने में ताकत झोंक रखी है। एनडीए में शामिल होने की रस्म अदायगी से पहले राज्यसभा चुनाव रालोद का भी पहला इम्तिहान है। रालोद के हिस्से के नौ वोट नतीजों में अहम भूमिका निभाएंगे।
यही वजह है कि रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने 25 फरवरी को मथुरा स्थित आवास पर अपने विधायकों की बैठक बुलाई है। राज्यसभा चुनाव को लेकर निर्णायक रणनीति तैयार होगी। मथुरा से ही विधायक लखनऊ के लिए रवाना हो जाएंगे। सोमवार को रालोद विधायक लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर अहम बिंदुओं पर चर्चा करेंगे।
इस तरह अहम हो गया रालोद
दस सीटों के राज्यसभा चुनाव के लिए भाजपा ने आठवें प्रत्याशी के तौर पर संजय सेठ को मैदान में उतार रखा है। कुल प्रत्याशियों की संख्या 11 हो गई है, जिसके चलते एक सीट पर मतदान होगा। एनडीए के साथ गठबंधन में शामिल होने जा रहे रालोद के पास नौ विधायक हैं। जिसके चलते रालोद की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।
विधानसभा में यह है रालोद की ताकत
बुढ़ाना से राजपाल बालियान, पुरकाजी सुरक्षित सीट से अनिल कुमार, खतौली से मदन भैया, मीरापुर से चंदन चौहान, छपरौली से अजय कुमार, सिवालखास से गुलाम मोहम्मद, शामली से प्रसन्न चौधरी, थानाभवन से अशरफ अली खान और सादाबाद से गुड्डू चौधरी विधायक हैं।
सपा से रालोद में आए विधायकों पर निगाह
साल 2022 में सपा से रालोद में शामिल होकर विधानसभा चुनाव जीतने वाले विधायकों पर भी सबकी नजर टिकी है। इनमें मीरापुर विधायक चंदन चौहान, सिवालखास विधायक गुलाम मोहम्मद और पुरकाजी सुरक्षित सीट से विधायक अनिल कुमार शामिल हैं। तीनों विधायक चुनाव से पहले सपा में थे, लेकिन गठबंधन में सीट रालोद पर चले जाने के बाद सिंबल बदलकर चुनाव लड़ा था।
राज्यसभा चुनाव तक रालोद की चिंता
राज्यसभा के मतदान में रालोद पहले भी मात खा चुका है। वर्ष 2017 में छपरौली से रालोद विधायक चुने गए सहेंद्र सिंह रमाला ने वर्ष 2018 में राज्यसभा चुनाव में पार्टी के निर्देश के विरुद्ध कार्य किया था। जिसके चलते तत्कालीन अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
इस मतदान को कभी नहीं भूलते रालोदिए
भारत रत्न चौधरी चरण सिंह के निधन के बाद लोकदल दो हिस्सों में बंट गया था। लोकदल (ब) में थे चौधरी साहब के शिष्य मुलायम सिंह यादव और लोकदल (अ) के नेता उनके बेटे चौधरी अजित सिंह बने थे। दोनों गुट जनता दल में शामिल थे।
वर्ष 1989 के चुनाव के बाद वीपी सिंह प्रधानमंत्री बनाए गए। चौधरी अजित सिंह का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय था, लेकिन एन वक्त पर मुलायम सिंह ने भी डिप्टी सीएम का पद ठुकराकर मुख्यमंत्री पद के लिए अपना दावा ठोक दिया।
सूबे की सबसे बड़ी कुर्सी के लिए मुलायम सिंह यादव और अजित सिंह के बीच मतदान कराना पड़ा। पांच वोट से मुलायम सिंह यादव बाजी जीतकर पहली बार मुख्यमंत्री बने और अजित सिंह को केंद्र में मंत्रालय से संतोष करना पड़ा था। पश्चिम यूपी के गली-मोहल्लों तक में इस किस्से को खूब सुनाया जाता है, बल्कि अजित सिंह का साथ छोड़ने वाले विधायकों के नाम भी खूब दोहराए जाते हैं।