गीतानंद महाराज की 21वीं पुण्यतिथि आज, गोविंदाचार्य, कुलश्रेष्ठ एवं नामी धर्माचार्य भाग लेंगे

मथुरा।(तुलसीराम) / भारतीय जनता पार्टी के थिंकटैंक एवं महामंत्री संगठन रहे केएन गोविंदाचार्य, हाईकोर्ट के जज रहे एस एस कुलश्रेष्ठ एवं सुविख्यात धर्माचार्य ब्रह्मलीन राष्ट संत गीतानंद जी महाराज को पुष्पांजलि देने के लिये वृंदावन आयेंगे।
राष्ट्र संत गीतानन्द जी महाराज की 21वीं पुण्यतिथि वृंदावन के गांधी मार्ग पर स्थित गीता आश्रम में 23 नवंबर को भव्यता के साथ मनाई जायेगी।
गीतानंद जी महाराज कारगिल युद्ध में प्रधानमंत्री कोष में 11 लाख एवं कोविड के दौरान भी उनके ट्रस्ट द्वारा 11 लाख पीड़ितों की सहायता के लिए दान देने से देश भर में चर्चित हुए उन्होंने कहा है संत राष्ट्र सेवा में भी पीछे नहीं रहते
मुमुक्षु मंडल व गीता आश्रम वृन्दावन के प्रमुख महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी अवशेषानन्द महाराज ने बताया कि इस भव्य आयोजन में अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा आदि देशों में रहने वाले महाराजश्री के शिष्य-अनुयायी बड़ी संख्या में भाग लेंगे।
इस अवसर पर हजारों साधुओं को तथा जरूरतमंदों को ऊनी वस्त्र-कंबल आदि दिये जायेंगे। 23 नवंबर रविवार की सुबह 10 बजे से 11.30 तक श्रद्धांजलि सभा होगी। उसके बाद 11.30 बजे से भंडारा शुरू हो जायेगा।
डॉ. स्वामी अवशेषानंद ने बताया कि ब्रह्मलीन संत गीतानन्द महाराज ने अपने जीवन के आखिरी समय जनहितकारी कार्यों से समाज के प्रत्येक वर्ग की मदद करने का प्रयास किया था। उत्तर भारत के वे ऐसे महान संत थे जो घट- घट में भगवान के दर्शन करते थे तथा जिनका कार्य क्षेत्र उनके द्वारा देश के विभिन्न भागों में स्थापित किए गए आश्रमों के साथ आश्रम के बाहर भी था। उनकी आराधना का मूल मंत्र था "प्रभु तुम हरौ जनन की पीर''।
वे ऐसे महान बिरले संत थे जिन्हें गीता न केवल कंठस्थ थी बल्कि गीता को उन्होंने अपने जीवन में उतारा भी था। गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है इसलिए उन्होंने गोशालाओं, पढ़ने के लिए संस्कृत पाठशाला, चिकित्सा के लिए समय समय पर विभिन्न प्रकार के शिविरों का आयोजन, संतों के लिए अन्न क्षेत्र, वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम की स्थापना, हरिजन बच्चों के लिए हरिजन छात्रावास स्थापित किए। प्राकृतिक आपदा में पुनर्वास एवं राहत कार्य भी इस महान संत के त्यागमय जीवन की कहानी के पन्ने बोलते हैं। वृन्दावन की पावन धरती पर चैतन्य महाप्रभु, बल्लभाचार्य, रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी, गोपाल भट्ट, जैसे संतों ने यदि धर्म की ध्वजा फहराई और श्यामा श्याम की लीलाओं के गूढ़ रहस्य को समाज के कोने तक पहुंचाया तो बीसवीं शती में देवरहा बाबा, श्रीपाद बाबा, आनन्दमयी मां, स्वामी अखण्डानन्द, स्वामी वामदेव, नीम करौली बाबा, जैसे संतों ने सनातन धर्म पर आए संकट से समाज को निकालकर एक दिशा दी। स्वामी गीतानन्द महाराज ने इससे अलग हटकर गीता के रहस्य को मानव जीवन में उतारने के मूलमंत्र को इस प्रकार प्रस्तुत किया कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह से सहज ही निकल पड़ा था कि यदि अन्य संत इसी भावना को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करें तो भारत अपने पुराने गौरव को प्राप्त कर सकता है। कारगिल युद्ध के बाद प्रधानमंत्री रक्षा कोष में जमा करने के लिए जब महान संत ने 11 लाख रुपये की थैली तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सौंपी तो वाजपेयी अभिभूत होकर उक्त प्रतिक्रिया व्यक्त कर गए। परन्तु अहंकार से सर्वथा परे संतजी ने यह कहकर वाजपेयी को और आश्चर्यचकित कर दिया था कि इसमें उनका कुछ भी योगदान नहीं है। उन्होंने तो वही काम किया है जो एक पोस्टमैन करता है। यह धनराशि उनके शिष्यों की है जिसे उन्होंने प्रधानमंत्री रक्षा कोष को दिया है। उनका सिद्धान्त था कि दान इस प्रकार दिया जाना चाहिए कि दाहिने हाथ से दिये गए दान का पता बाए हाथ को भी न चल सके। यही नहीं स्वामी गीतानंद जी के ट्रस्ट द्वारा 11 लाख रुपए कॉविड के दौरान भी प्रधानमंत्री कोष में पीड़ितों की मदद के लिए दिए गए थे स्वामी गीतानन्द महाराज दीपक की तरह थे जिन्होंने न केवल शिष्यों को बल्कि सम्पूर्ण मानवता को अंधकार से निकालकर
समाजसेवा का ऐसा सन्मार्ग दिखाया जो वास्तविक मोक्ष का साधन है। उनका कहना था कि भगवत गीता मानव जीवन के जीने का विज्ञान है। गीता के रहस्य एवं चमत्कार को मानव अपने जीवन में उतारकर ही उसकी महत्ता और उपयोगिता का अनुभव कर सकता है। गीता मानव को जन्म से लेकर मृत्यु तक हर परिस्थिति से मुकाबला करने और उसमें दी गई अच्छाइयों को उतारने की शिक्षा देती है। स्वामी गीतानन्द महाराज ने गीता पर प्रवचनों के माध्यम से समाज को बताया कि मनुष्य अपने कार्य एवं साधना से मानव की सेवा किस प्रकार कर सकता है। महाराजश्री के पास जो भी आया उसके मन को ऐसी शांति मिली कि उसके लिए वृन्दावन का अनूपयति गीता आश्रम ही तीर्थ बन गया।




