वक्फ कानून 2025 पर सुनवाई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला, पढ़ें दोनों पक्षों की दलीलें

वक्फ कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। तीन दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि वक्फ कानून 2025 पर अंतरिम रोक लगाई जा सकती है। अब कोर्ट अपने फैसले में तय करेगा कि रोक लगाई जानी चाहिए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सभी पक्षों ने अपनी दलील रखीं।
सुनवाई के दौरान कोर्ट की तरफ से भी कई सवाल पूछे गए। वक्फ बोर्ड के खिलाफ दायर याचिकाओं की पैरवी कपिल सिब्बल ने की। वहीं, कानून के पक्ष में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें रखीं।
वक्फ कानून के विरोध में दलीलें
राजीव धवन: वक्फ मुस्लिम समुदाय के दिल के करीब एक संस्था है। हम देख सकते हैं कि वक्फ मुसलमानों के पूरे जीवन और सामाजिक आर्थिक जीवन से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी है। वेदों के मुताबिक मंदिर भी हिंदू धर्म के लिए अनिवार्य अंग नहीं हैं। वहां तो प्रकृति की पूजा करने का प्रावधान है अग्नि, जल, वर्षा के देवता हैं। पर्वत, सागर आदि हैं।
कपिल सिब्बल
इस्लाम के कुछ मूल सिद्धांतों के मुताबिक भी वक्फ ईश्वर को समर्पित करना है। परलोक के लिए। एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ ही रहता है। सीजेआई ने कहा कि दान तो अन्य धर्मों के लिए भी मौलिक सिद्धांत है। सिब्बल ने कहा कि यहां यह विचार दूसरों से अलग हैं। यह ईश्वर को दिया जाने वाला दान है। यहां समर्पण ईश्वर को है। दान समुदाय के लिए है। भविष्य यानी मृत्यु के बाद के लिए। ताकि मृत्यु के बाद अल्लाह मेरा ख्याल रखे।
जहां तक हिंदू धर्म स्थलों की बंदोबस्ती का सवाल है, गैर हिंदू इसमें शामिल नहीं हैं। लेकिन जहां तक वक्फ का सवाल है यहां भी गैर मुस्लिम इसमें शामिल नहीं हैं। गैर मुस्लिमों के लिए चार व्यक्तियों का आरक्षण किया गया है। मेरे अनुसार तो एक भी बहुत है। यह अधिनियम धर्मनिरपेक्ष क्यों नहीं है। इसका स्पष्टीकरण अधिनियम से ही मिलता है।
सेक्शन 3सी का उद्देश्य रेवेन्यू एंट्री में परिवर्तन करना है, मैं कब्जे में बना रहूंगा और मुझे बेदखल नहीं किया जाएगा लेकिन कोई भी ठोस अधिकार नहीं दिया जाएगा। क्या ये निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है? कि यह सरकारी संपत्ति है। राजस्व रिकॉर्ड को तब बदला जा सकता है, जब यह निर्धारित हो जाए कि यह सरकारी संपत्ति है। यह प्रावधान असंवैधानिक है। जांच की कोई समय सीमा तय नहीं है। इसमें 6 महीना या इससे अधिक भी लग सकता है। तब तक मुस्लिम समाज का उस प्रॉपर्टी से अधिकार खत्म हो जायेगा। वह संपत्ति वक्फ की है या नहीं, इसके निर्धारण की कोई प्रक्रिया सुनिश्चित नहीं है। निर्धारण सरकार को ही करना है, निर्धारित होने के बाद राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव भी किया जा सकता है। निर्धारण की प्रक्रिया निर्धारित नहीं है। यह पूर्णतया मनमाना है।
वक्फ कानून के समर्थन में दलीलें
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता
अगर फाइनल हियरिंग के बाद कोर्ट को लगता है कि कानून असंवैधानिक है तो कोर्ट इसे रद्द कर सकता है। लेकिन अगर कोर्ट अंतरिम आदेश से कानून पर रोक लगाता है, और इस दौरान कोई संपत्ति वक्फ को चली जाती है, तो उसे वापस पाना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि वक्फ अल्लाह का होता है, एक बार जो वक्फ को गया उसे पाना आसान नहीं होगा। वक्फ बनाना और वक्फ को दान देना दोनों अलग हैं। यही कारण है कि मुसलमानों के लिए 5 साल की प्रैक्टिस की जरूरत रखी गई है, ताकि वक्फ का इस्तेमाल किसी को धोखा देने के लिए न किया जाए।
मान लीजिए कि मैं हिंदू हूं और मैं वक्फ के लिए दान करना चाहता हूं, तो भी वक्फ को दान दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में कह चुका है कि संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत वक्फ अपने आप में राज्य है। ऐसे में यह दलील नहीं दी जा सकता कि इसमें किसी एक सम्प्रदाय के लोग हो शामिल होंगे।