एसओजी और इज़्ज़तनगर पुलिस की संयुक्त कार्यवाही में गिरफ्तार स्मैक तस्करी के आरोपी की जेल में मौत, परिवार ने पुलिस पर पिटाई और 10 लाख की रिश्वत लेने के लगाए गंभीर आरोप

बरेली : उत्तर प्रदेश के बरेली जिले से एक बार फिर पुलिस हिरासत में मौत का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इज़्ज़तनगर थाना पुलिस द्वारा स्मैक तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किए गए आदेश तिवारी नामक युवक की जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई है। मौत के बाद परिजनों ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं पिटाई, 10 लाख रुपये रिश्वत की मांग और जेल प्रशासन की घोर लापरवाही।
मृतक आदेश तिवारी (28 वर्ष), फतेहगंज पश्चिमी के गांव मनकरी निवासी था। उसे मंगलवार को इज़्ज़तनगर पुलिस और एसओजी की टीम ने स्मैक तस्करी के आरोप में पांच अन्य आरोपियों के साथ गिरफ्तार किया था। बुधवार को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजा गया और गुरुवार सुबह उसकी मौत हो गई।
परिजनों ने आरोप लगाया कि आदेश की मौत जेल में नहीं, बल्कि पुलिस की पिटाई से पहले ही हो चुकी थी और प्रशासन ने सच्चाई छिपाने की कोशिश की।
गिरफ्तारी के 24 घंटे में मौत, क्या पहले से तय था ‘इंतज़ाम’?
आदेश तिवारी को मंगलवार को एक खंडहर से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस का दावा है कि वह एक संगठित स्मैक तस्करी गिरोह का हिस्सा था और उससे भारी मात्रा में नशे का सामान, 1 लाख 46 हज़ार रुपये नकद, एक स्कूटी, कार और मोबाइल फोन बरामद किए गए। लेकिन उसके परिजन इस पूरी कहानी को साजिश बता रहे हैं।
मृतक के भाई ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें धमकाया और कहा कि “भाई को छुड़ाना है तो 10 लाख रुपये देने होंगे।” परिजनों का कहना है कि उन्होंने किसी तरह 4 लाख रुपये की व्यवस्था की, लेकिन आदेश की हालत पहले ही बिगड़ चुकी थी। जब उन्हें जेल से उसकी मौत की सूचना मिली तो उनका शक यकीन में बदल गया।
परिवार वालों ने की न्यायिक जांच की मांग
मौत के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है, लेकिन परिजन न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि जेल प्रशासन ने कोई मेडिकल रिकॉर्ड या इलाज संबंधी जानकारी साझा नहीं की है। घटना के बाद परिवार में भारी आक्रोश फैल गया है।
मुख्य आरोपी अकरम पर पहले से दर्ज हैं कई मामले शहर कप्तान मानुष पारीक ने मीडिया को बताया कि गिरोह का सरगना अकरम पहले भी कई बार जेल जा चुका है। वह मणिपुर से मार्फीन मंगाकर स्थानीय स्तर पर स्मैक तैयार करता था।
अकरम ने पूछताछ में बताया कि उसे केमिकल का सटीक अनुपात पता है, जिससे उसकी बनाई स्मैक की मांग काफी ज्यादा है। गिरोह के अन्य सदस्य आसिफ, जावेद, राशिद, हारुन और आदेश तिवारी इस नेटवर्क का हिस्सा थे, जो रेलवे रोड के पास एक खंडहर में स्मैक तैयार करते थे।
पुलिस का दावा है कि गिरोह मोबाइल फोन के माध्यम से संपर्क करता था और बरेली के अलावा आसपास के जिलों में भी नशा सप्लाई करता था। हालांकि, आदेश तिवारी की भूमिका को लेकर पुलिस ने अब तक कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं दिया है।
क्या आदेश निर्दोष था या ‘सिस्टम’ का शिकार?
आदेश तिवारी की गिरफ्तारी के 24 घंटे बाद ही उसकी मौत ने पूरे प्रकरण को संदिग्ध बना दिया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि आदेश इतना बड़ा अपराधी था, तो पुलिस ने उससे जुड़ा कोई रिकॉर्ड पहले क्यों नहीं प्रस्तुत किया?
परिजनों का यह भी आरोप है कि आदेश को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया ताकि असली अपराधियों को बचाया जा सके।
क्या कहता है कानून?
भारतीय दंड संहिता की धाराओं के अनुसार, पुलिस हिरासत या जेल में किसी व्यक्ति की मौत होने पर मजिस्ट्रेटी जांच अनिवार्य होती है।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि हिरासत में मौतों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा चलाया जा सकता है, यदि पिटाई या टॉर्चर के प्रमाण मिलें तो।
अब आगे क्या?
फिलहाल आदेश तिवारी की मौत का मामला धीरे-धीरे राजनीतिक और सामाजिक रंग ले सकता है।
परिजनों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इंसाफ की गुहार लगाई है परिवार वाले निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे है। अगर यह मामला जल्द सुलझाया नहीं गया, तो यह एक बड़ा मानवाधिकार मुद्दा बन सकता है।