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बहराइच की रामलीला : इतिहास में संघर्ष की गाथा, वर्तमान में भव्य मंचन की तैयारी

बहराइच की रामलीला : इतिहास में संघर्ष की गाथा, वर्तमान में भव्य मंचन की तैयारी
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आनन्द प्रकाश गुप्ता

बहराइच।

सरयू की लहरों पर झिलमिलाती रोशनी, संवादों में समाई क्रांति और दर्शकों की उमंग—यह बहराइच की रामलीला है, जिसने केवल धर्मकथा ही नहीं सुनाई बल्कि स्वतन्त्रता संग्राम में भी चेतना जगाई। एक सदी से अधिक पुरानी इस परंपरा ने स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में नमक कानून तोड़ने और विदेशी वस्त्रों की होली जैसे अभियानों को बल दिया। स्वतन्त्रता सेनानी पं. भगवानदीन वैद्य, सरदार जोगेंद्र सिंह, बलदेव प्रसाद मिश्र और पराग दत्त जैसे अग्रदूतों ने इसी मंच से अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की थी।

समय के साथ रामलीला का स्वरूप बदला। छावनी से सरयू तट तक पहुँची यह परंपरा मंदिरों की पृष्ठभूमि, रोशनी और आतिशबाजी से सजी। रावण के ऊँचे होते पुतले और अभिनव संवादों ने दर्शकों को हर युग में मोहित किया। 1956-57 में कमेटी का पंजीकरण हुआ और आयोजन को संस्थागत रूप मिला। चुनौतियों के बावजूद, आज भी यह लीला बहराइच की सांस्कृतिक पहचान है।

इस वर्ष का आयोजन

परंपरा को जीवंत बनाए रखने के क्रम में इस बार भी श्रीरामलीला का भव्य आयोजन होने जा रहा है। 22 सितम्बर से मंचीय लीला की शुरुआत होगी, जिसका प्रदर्शन मथुरा-वृन्दावन की सुप्रसिद्ध मंडली करेगी। जिसमें 02 अक्टूबर को दशहरा पर्व पर रावण दहन का भव्य आयोजन होगा। 05 अक्टूबर को भरत मिलाप मंचित होगा। 06 अक्टूबर को श्रीराम राज्याभिषेक की लीला होगी। 07 अक्टूबर को विविध संस्कृति कार्यक्रम दर्शकों को आकर्षित करेंगे।

उमंग से भरा रहेगा नगर

रामलीला के दिनों में बहराइच का पूरा नगर मानो उत्सव में डूब जाता है। सरयू तट पर लगने वाला मेला, दुकानें, झूले और मिठाइयों की महक वातावरण को जीवंत कर देती है। दूर-दराज़ के गाँवों से लोग परिवार सहित पहुँचते हैं। छोटे बच्चे आतिशबाजी का इंतज़ार करते हैं तो बुज़ुर्ग रामकथा सुनने में तल्लीन हो जाते हैं। बाजारों में भी रौनक बढ़ जाती है, मानो पूरा शहर एक ही सूत्र में बंध गया हो।

श्रीरामलीला कमेटी के अध्यक्ष श्याम करन टेकड़ीवाल का कहना है—

"समाज बदलता गया, चुनौतियाँ आईं, लेकिन बहराइच की रामलीला की आत्मा आज भी वैसी ही है। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, एकता और इतिहास की धरोहर है।"

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