संभल में सपा विधायक के बाग पर बुलडोजर एक्शन और सियासत की गर्माहट

संभल में सपा विधायक नवाब इकबाल महमूद के बाग पर प्रशासन की बुलडोजर कार्रवाई ने न केवल स्थानीय राजनीति बल्कि प्रदेश की सियासत में भी हलचल पैदा कर दी है। यह मामला सीधे तौर पर "कब्जा मुक्त अभियान" से जुड़ा है, लेकिन इसके राजनीतिक निहितार्थ कहीं गहरे दिखाई देते हैं।
भाजपा सरकार लंबे समय से "ज़ीरो टॉलरेंस" और "माफिया मुक्त अभियान" की नीति को जनता के बीच प्रमुख मुद्दा बना रही है। संभल में यह कार्रवाई सरकार का वही संदेश दोहराती है कि कानून से ऊपर कोई नहीं—चाहे वह सत्ता पक्ष से हो या विपक्ष से।
यह कदम भाजपा को अपने कोर वोटबैंक में मजबूती देता है, क्योंकि प्रशासनिक सख्ती को "कानून का राज" और "भ्रष्टाचार-मुक्त शासन" की छवि से जोड़ा जा रहा है।
समाजवादी पार्टी के लिए यह कार्रवाई राजनीतिक दबाव का सबब बन सकती है।
स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता इसे "दमनात्मक कार्रवाई" बताकर सहानुभूति जुटाने की कोशिश करेंगे।
लेकिन दूसरी ओर, आम जनता में यह धारणा भी मजबूत हो सकती है कि विपक्षी नेताओं ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा था।इससे सपा को रक्षात्मक राजनीति करनी पड़ सकती है।
संभल में मुस्लिम आबादी और सपा का मजबूत आधार रहा है। इकबाल महमूद यहां के पुराने और प्रभावशाली विधायक माने जाते हैं। प्रशासनिक कार्रवाई से उनके समर्थक असंतोष में आ सकते हैं, लेकिन यह असंतोष सहानुभूति वोट में बदलेगा या नहीं, यह आने वाले महीनों में तय होगा।
अगर जनता यह मान बैठी कि कार्रवाई जायज़ थी, तो सपा को अपने गढ़ में छवि संकट का सामना करना पड़ सकता है।भाजपा इसे अपने कानून-व्यवस्था सुधार और "माफिया के खिलाफ बुलडोजर" की राजनीति के उदाहरण के रूप में प्रचारित कर सकती है।
सपा इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताकर वोटरों को लामबंद करने की कोशिश करेगी।लेकिन असली फैसला जनता की धारणा पर निर्भर करेगा—क्या वे इसे कानून का राज मानते हैं या राजनीतिक प्रतिशोध?
यह कार्रवाई केवल भूमि विवाद तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि संभल की राजनीति में 2027 के विधानसभा चुनाव तक वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।