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उत्तर प्रदेश

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अल्पसंख्यक क्षेत्रों में रहने वाले हिंदुओं को हथियार लाइसेंस देने के फैसला किया

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अल्पसंख्यक क्षेत्रों में रहने वाले हिंदुओं को हथियार लाइसेंस देने के फैसला किया
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असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में रहने वाले मूल निवासी हिंदुओं को हथियार लाइसेंस देने को उचित ठहराया और तर्क दिया कि उनकी सुरक्षा के लिए ऐसे कदम जरूरी हैं. उन्होंने दक्षिण सलमारा, मनकाचर और भागबर जैसे जिलों का हवाला दिया. सीएम के बयान से एक बार फिर सियासत गरमा सकती है क्योंकि असम में पिछले कुछ महीनों से असम में लाइसेंस पॉलिसी को लेकर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं.

सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, ‘असम में कुछ ऐसे जिले हैं, जहां एक गांव में 30 हजार लोगों के बीच केवल 100 सनातन धर्म के लोग रहते हैं. कानूनी प्रक्रिया के तहत यदि ऐसे परिवार चाहें तो उन्हें हथियार लाइसेंस मिल सकता है. सनातन धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है.’ दरअसल, असम मंत्रिमंडल ने इस साल 28 मई को असुरक्षित और रिमोट एरिया के मूल निवासियों में सुरक्षा की भावना पैदा करने के लिए उन्हें हथियार लाइसेंस जारी करने को मंजूरी दी थी. आइए जानते हैं कि देश में लाइसेंस कोई आम नागरिक कैसे ले सकता है और असम में नई लाइसेंस पॉलिसी क्या है?

बंदूक के लाइसेंस की प्रक्रिया है कठिन

देश में बंदूक का लाइसेंस हासिल करना हर किसी के लिए आसान नहीं है. लाइसेंस लेना 1959 के शस्त्र अधिनियम के अंतर्गत आता है. कोई भी नागरिक जो बंदूक रखना चाहता है उसे केवल नॉन प्रोहिबिटेड बोर (एनपीबी) बंदूकें खरीदने की इजाजत दी गई है. इस अधिनियम में एक प्रावधान है, जिसके जरिए आम नागरिक लाइसेंस ले सकता है. किसी भी व्यक्ति को गंभीर खतरा होने पर बंदूक लाइसेंस हासिल करने का अधिकार मिला हुआ है.

सवाल यह उठता है कि अपनी जान को खतरा साबित कैसे किया जाए. हालांकि इसे साबित करना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है. इसके लिए बस एक एफआईआर दर्ज कराने की जरूरत होती है. लेकिन, भारत में बंदूक लाइसेंस हासिल करने की पूरी प्रक्रिया लंबी है.

कैसे मिलता है बंदूक का लाइसेंस?

बंदूक का लाइसेंस हासिल करने की प्रक्रिया में पहला कदम आवेदन जमा करना है. जिला पुलिस अधीक्षक से बंदूक लाइसेंस का फॉर्म हासिल किया जाता है. इसके लिए ऑनलाइन आवेदन भी किया जा सकता है. जैसे ही पुलिस को आवेदन मिलता है वह संबंधित पते पर व्यक्ति का सत्यापन करती है और पिछले आपराधिक रिकॉर्ड की जांच की जाती है. जिला पुलिस अधीक्षक बंदूक लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति से पूछताछ या यूं कहें कि इंटरव्यू भी लेते हैं. इसका मकसद शारीरिक या मानसिक क्षमताओं का आकलन करना होता है.

पूछताछ के दौरान सबसे आम सवाल ये पूछा जाता है कि “आपको बंदूक की जरूरत क्यों है”? एक संतोषजनक और वैध कारण मिलने के बाद आवेदन को आगे बढ़ाया जाता है. साथ ही जंगली जानवरों से सुरक्षा चाहने वाले व्यक्ति को भी बंदूक लाइसेंस जारी किया जा सकता है. इंटरव्यू की रिपोर्ट क्राइम ब्रांच और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो दोनों को भेजी जाती है. जब सभी चरण पूरे हो जाते हैं और पुलिस उपायुक्त संबंधित जानकारी से संतुष्ट हो जाते हैं, तो नागरिकों को बंदूक लाइसेंस हासिल करने की इजाजत मिल जाती है.

असम में सरकार क्यों लाई लाइसेंस पॉलिसी?

इस साल 28 मई को असम सरकार ने एक विशेष योजना के तहत संवेदनशील और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले स्थानीय नागरिकों को हथियार लाइसेंस देने के फैसले की घोषणा की थी. इन जिलों में धुबरी, नागांव, मोरीगांव, बारपेटा, ग्वालपाड़ा और दक्षिण सलमारा-मनकाचर शामिल हैं, जहां बांग्लादेशी मूल के मुसलमान बहुसंख्यक हैं और स्थानीय आबादी अल्पसंख्यक है. सीएम का कहना रहा है कि यह एक जरूरी और संवेदनशील फैसला है. धुबरी, नागांव, मोरीगांव, बारपेटा, दक्षिण सलमारा और मनकाचर, ग्वालपाड़ा जिलों में स्थानीय लोग अल्पसंख्यक हैं और लगातार असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. ये स्थानीय आबादी बांग्लादेश या अपने ही गांवों से हमलों का शिकार हो सकती है. इन जिलों के मूल निवासी असुरक्षा के माहौल में जी रहे हैं.

असम सरकार की ओर से बताया गया कि इस पॉलिस का उद्देश्य गैरकानूनी खतरों को रोकना और स्थानीय समुदायों की व्यक्तिगत सुरक्षा और आत्मविश्वास में सुधार करना है. सीएम का कहना रहा है कि इस नीति का उद्देश्य नागरिकों का सैन्यीकरण करना नहीं, बल्कि एक लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करना है. यह मांग 1985 से लंबे समय से की जा रही है, लेकिन किसी भी सरकार ने यह निर्णय लेने का साहस नहीं किया. अगर यह निर्णय तब लिया गया होता, तो स्थानीय लोग इन क्षेत्रों में अपनी जमीनें बेचकर नहीं जाते.

लाइसेंस पॉलिसी का होता आया है विरोध

असम सरकार की नई पॉलिसी का टीएमसी विरोध करती आई है. तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव का दावा है कि यह नीति असम सरकार की विश्वसनीयता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है. साथ ही साथ सीमा सुरक्षा बल और राज्य पुलिस की कानून-व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता पर सवाल उठाती है. सरकार हथियार लाइसेंस जारी कर सकती है, लेकिन किसी को यह नहीं बता सकती कि वह बंदूक का इस्तेमाल किस लिए कर सकता है और किस लिए नहीं. एक बार किसी को बंदूक मिल जाए, तो वह उसका इस्तेमाल किसी के भी खिलाफ कर सकता है.

वे इलाकों के मूल निवासियों की परिभाषा के अस्पष्ट मानदंडों पर भी सवाल खड़े कर चुकी है. उनका मानना है कि आज तक मूलनिवासियों लोगों की सही परिभाषा किसी को नहीं पता. असम के मुख्यमंत्री ही सुबह उठते हैं और तय करते हैं कि कौन मूलनिवासी है और कौन नहीं. हथियार लाइसेंस नीति एक खतरनाक मिसाल कायम करती है और यह धारणा देती है कि “डबल इंजन सरकार” के तहत असम के लोग सुरक्षित नहीं हैं.

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