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उत्तर प्रदेश

गोलेन्द्र पटेल को शब्द शिल्पी सम्मान

गोलेन्द्र पटेल  को शब्द शिल्पी सम्मान
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आज चेतना साहित्यिक मंच की ओर से वेदांश हॉस्पिटल सभागार (अग्रवाल पेट्रोल पंप के सामने, दीनदयाल नगर, मुगलसराय, चंदौली) में महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी एवं कथा सम्राट प्रेमचंद जी की जयंती और स्वर सम्राट मोहम्मद रफ़ी जी की पुण्यतिथि के सुअवसर पर आयोजित कार्यक्रम में *प्रसिद्ध ग़ज़लकार आदरणीय शिवकुमार पराग जी, प्रसिद्ध ग़ज़लकार आदरणीय धर्मेंद्र गुप्त 'साहिल' जी, वरिष्ठ समाजसेवी व साहित्यकार आदरणीय संतोष सिंह जी,पूर्व वरिष्ठ रेल राजभाषा अधिकारी आदरणीय दिनेश चंद्र जी,वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय सुरेंद्र वाजपेयी जी, वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय रमाकांत नीलकंठ जी,वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय हिमांशु उपाध्याय जी,अध्यक्ष, चेतना साहित्यिक मंच व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. उमेश प्रसाद सिंह जी, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विनय कुमार वर्मा जी, श्री प्रकाश चंद्र चौरसिया एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामजी प्रसाद भैरव जी एवं तमाम प्रतिष्ठित साहित्यकारों की गरिमामयी उपस्थित में साहित्य के लिए युवा कवि-लेखक श्री गोलेन्द्र पटेल जी को केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ, वाराणसी के कुलपति मा. प्रोफ़ेसर वङ्छुग दोर्जे नेगी जी के करकमलों से शब्द शिल्पी सम्मान–2025 से सम्मानित किया गया।

गोलेन्द्र पटेल समकालीन हिंदी और भोजपुरी साहित्य के एक विशिष्ट कवि हैं, जिन्हें जनकवि, बौद्ध कवि और बहुजन चेतना के प्रवक्ता के रूप में पहचाना जाता है। उनकी कविता जनजीवन की पीड़ा, संघर्ष और विद्रोह को सजीव रूप में प्रस्तुत करती है। वे मानवीय मूल्यों के प्रबल समर्थक हैं और शोषणकारी सत्ता-व्यवस्थाओं के विरुद्ध मुखर होकर लिखते हैं। उनकी भाषा में गाँव, खेत, श्रमिक, क्रांति और प्रेम की सघन उपस्थिति है, जो उन्हें आमजन के निकट और विशिष्ट बनाती है।

गोलेन्द्र की कविताएँ केवल साहित्यिक प्रयोग नहीं हैं, वे सामाजिक बदलाव की चेतावनियाँ हैं। वे कबीर की तरह अक्खड़, तीखे और फक्कड़ भी हैं, तो बुद्ध की तरह करुणाशील और संयमी भी। वे ग्राम्य भाषा को श्रमजीवी संतों की धरोहर मानते हैं और उसे ही अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं। उनके सौंदर्यबोध में परंपरा और यथार्थ का सधा हुआ संतुलन है। वे विद्रोह के साथ-साथ प्रेम और करुणा के कवि हैं।

गोलेन्द्र पटेल अपनी रचनाओं में अत्यंत निर्मम होते हैं। प्रिय से प्रिय व्यक्ति , बड़े से बड़े लोगों की आलोचना करने में हिचकाते नहीं है, स्पष्ट और दो टूक, क्योंकि उन्हें किसी से कुछ न लेना है न किसी को कुछ देना है। वे कीर्ति का फल चखने या चखाने के लिए आलोचक को ख़ुश करने वाले नहीं हैं।

उनकी प्रसिद्ध लंबी कविता "तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव" एक सांस्कृतिक दस्तावेज के रूप में सामने आती है। कोविड-19 महामारी के दौरान रचित यह कविता सिर्फ एक काव्य-रचना नहीं, बल्कि समय, समाज, सभ्यता और संस्कृति का आत्ममंथन है। इसमें पर्यावरणीय संकट, आदिवासी अस्मिता, स्त्री-अधिकार, गुरु-शिष्य परंपरा और लोकतंत्र जैसे मुद्दों को गहराई से स्पर्श किया गया है। यह कविता एक शोधार्थी की आत्मखोज और समाज की विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए एक मानवीय भविष्य की तलाश करती है।

इस कविता की भाषा लोकजीवन से निकली हुई है — देशज, प्रयोगधर्मी, प्रवाहमयी और गहन संवेदना से परिपूर्ण। इसमें छायावाद से लेकर मुक्तिबोध और धूमिल तक की काव्य-परंपरा की स्पष्ट झलक मिलती है, साथ ही इसमें नए युग का दृष्टिकोण भी शामिल है। यह कविता हमारे समय का जीवंत दस्तावेज बन चुकी है।

गोलेन्द्र पटेल की काव्य-दृष्टि वैज्ञानिक और तर्कसंगत है। वे रूढ़ियों, अंधविश्वासों और पाखंड का विरोध करते हैं। उनकी रचनाओं में सामाजिक समानता, पर्यावरणीय चेतना, सांस्कृतिक पुनरावलोकन और नई संवेदनाओं की स्पष्ट उपस्थिति है। वे कविता को जनसंघर्षों का माध्यम मानते हैं और अपनी वाणी को जनभाषा का रूप देते हैं।

वे न केवल कवि हैं, बल्कि एक सामाजिक चिन्तक और सुधारक भी हैं। उनकी कविताएँ प्रेरणा, आस्था और जागरूकता का संचार करती हैं। वे उस दुर्लभ परंपरा के कवि हैं, जिनकी कविता में सत्य की खोज, करुणा की अनुभूति और विद्रोह की चेतना एक साथ मिलती है।

आज के युवा कवियों में वे एक दीपस्तंभ की तरह खड़े हैं। वे न सिर्फ कविता में, बल्कि काव्य-चरित्र में भी आदर्श प्रस्तुत करते हैं। उनकी कविता "तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव" केवल साहित्यिक उपलब्धि नहीं, बल्कि समकालीन हिंदी कविता की दिशा और दशा दोनों को प्रभावित करने वाली कृति है।

इस प्रकार गोलेन्द्र पटेल एक ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएँ मित्रता, मुहब्बत और मानवता की नई व्याख्या करती हैं — एक ऐसा स्वर जो आज की दुनिया में और भी अधिक जरूरी हो गया है।

रिपोर्ट: अर्जुन पटेल

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