डिंपल के अपमान पर दोहरी उलझन में फंसी अखिलेश यादव की पार्टी, भाजपा के हमलों से बढ़ रही है चुनौती

मैनपुरी सांसद डिंपल यादव पर मुस्लिम मौलाना की टिप्पणी ने समाजवादी पार्टी को दोहरी उलझन में फंसा दिया है। एक तरफ मुस्लिम वोट बैंक को नाराज न होने देने की चुनौती है तो दूसरी तरफ महिला संबंधी मुद्दों पर पार्टी की आक्रामक रणनीति के कमजोर पड़ने का डर सता रहा है।मुश्किल इसलिए भी अधिक है, क्योंकि टिप्पणी किसी सामान्य नेता या कार्यकर्ता पर नहीं, राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी पर हुई है और दूसरी तरफ भाजपा लगातार इस मुद्दे को गरमा रही है। सपा मुखिया की चुप्पी पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
ऐसे में फिलहाल सपा वेट एंड वाच की नीति पर चल रही है। रणनीति के तहत नेताओं-कार्यकर्ताओं को विरोध जताने की छूट दे दी गई है, परंतु बड़े नेताओं का मौन अभी जारी रहेगा। दूसरी तरफ भाजपा की कोशिश विवाद को लंबे समय तक खींचकर सपा को बैकफुट पर बनाए रखने की है।
सपा मुखिया पिछले दिनों डिंपल और अन्य पार्टी सांसदों के साथ दिल्ली में संसद के पास स्थित मस्जिद में गए थे। इस पर एक न्यूज चैनल पर बहस के दौरान आल इंडिया इमाम एसोसिएशन के अध्यक्ष मौलाना साजिद रशीदी ने मस्जिद के अंदर डिंपल के पहनावे को लेकर विवादित टिप्पणी की।
इसके बाद लखनऊ से दिल्ली तक राजनीति गर्माई हुई है। अपमान और उस पर सपा की चुप्पी को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बना लिया है। भाजपा के सांसदों ने संसद भवन के बाहर इसे लेकर प्रदर्शन किया। यहां महिला कल्याण मंत्री बेबीरानी मौर्य ने सीधे अखिलेश पर हमला बोला।
कहा कि सपा मुखिया की चुप्पी कहीं न कहीं उनकी वोट बैंक की लालसा को दर्शाती है। क्या उन्होंने सत्ता के लिए अपनी पत्नी का अपमान स्वीकार कर लिया है? सपा का मौन क्या इस सोच की सहमति है कि सपा में महिलाओं की गरिमा अब मौलवी तय करेंगे? भाजपा के अन्य नेता भी लगातार सपा को घेर रहे हैं।
इससे सपा की बेचैनी बढ़ी है। माना जा रहा है कि सपा अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले में शामिल मुस्लिम वोट बैंक को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती।
टिप्पणी मामले में बयानबाजी से उसे नुकसान की आशंका है। इसके चलते ही प्रकरण पर शुरुआत में पूरी तरह चुप्पी साधी गई। परंतु अब भाजपा की रणनीति से सपा को महिला सम्मान का मुद्दा हाथ से फिसलता दिख रहा है और पार्टी इस दोहरी उलझन से निकलने का रास्ता तलाश रही है।
इसके तहत ही मुकदमा दर्ज कराने के साथ ही पार्टी फ्रंटल संगठनों को विरोध के लिए आगे किया गया है, जिससे बड़े नेताओं की चुप्पी भी बनी रहे और विरोध का संदेश भी चला जाए।