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उत्तर प्रदेश

समाजवाद को मिली वैचारिक जीत - दीपक

समाजवाद को मिली वैचारिक जीत - दीपक
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समाजवाद गीता और रामराज्य के अनुरूप - मिश्र

बौद्धिक सभा के अध्यक्ष और समाजवादी चिंतक दीपक मिश्र ने कहा कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद शब्द को हटाने का औचित्य और आवश्यकता नहीं है । सरकार द्वारा समाजवाद शब्द को न हटाने का फैसला समाजवादी विचारधारा की ऐतिहासिक जीत है । समाजवाद अमर शहीदों का रोमानी सपना है । चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में 1928 में भगत सिंह सदृश क्रांतिकारियों ने हिंदुस्तान समाजवादी गणतांत्रिक सेना का गठन किया था ताकि भारत में समाजवाद सशक्त हो । नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत में समाजवाद की अमंद बयार चाहते थे । आजादी के बाद लोहिया और लोकनायक जयप्रकाश सदृश चिंतकों ने समाजवाद को लोकमानस में स्थापित किया । श्री मिश्र ने कहा कि समाजवाद पर प्रतिघात अमर शहीदों के सपनों और भारत की आत्मा पर प्रहार है । स्वामी विवेकानंद ने कृष्ण प्रणीत गीता और राममनोहर लोहिया ने रामराज्य से समाजवाद का अर्क निकाला था । समाजवाद को दलीय राजनीति से जोड़ना संकुचित मानसिकता और अज्ञानता है , यह भारत की वैचारिक व सांस्कृतिक विरासत है ।

सांविधानिक व संसदीय अध्ययन संस्थान के सदस्य दीपक ने कहा कि इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय में भी काफी बहस हो चुकी है और फैसला समाजवाद के पक्ष में आ चुका है , यदि समाजवाद को प्रस्तावना में जोड़ना भारतीय संस्कृति के अनुरूप न होता तो 1977 में आई जनता सरकार इस निर्णय को बदल देती , लेकिन उस सरकार ने संविधान की संशोधित प्रस्तावना को यथावत रखा । मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, लोकबंधु राजनारायण के साथ अटल और आडवाणी भी उस सरकार में मंत्री थे ।

दीपक ने कहा कि समाजवादी आर्थिक नीतियों से विचलित होने के कारण ही एकांगी विकास हो रहा जिससे आर्थिक विषमता और सामाजिक असंतोष घट नहीं रही । चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला हमारा देश अरबपतियों के हिसाब से भले तीसरे स्थान पर है किन्तु प्रति व्यक्ति आय की दृष्टिकोण से 139 देशों से पीछे है । यह विरोधाभास उचित नहीं ।

उल्लेखनीय है कि राज्यसभा में सरकार ने स्वीकारा है कि समाजवाद को प्रस्तावना से हटाने की योजना नहीं हैं । दीपक मिश्र ' समाजवाद ' के लिए कई बार सत्याग्रह कर चुके हैं और घोषणा कर रखी है कि यदि "समाजवाद" ' शब्द संविधान की प्रस्तावना से हटाया गया तो आमरण अनशन करेंगे ।

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