नमन नीरज, जो बसाना चाहते थे स्वर्ग धरती पर.....

हमें तुलसी, कबीर, मीरा, सूर, ग़ालिब, दिनकर सदृश वास्तविक रचनाकारों को देखने का सौभाग्य नहीं मिला, पर मैने अपनी आंखों को धन्यातिधन्य मानता हूं जिन्हें गोपाल दास नीरज को देखने के सुअवसर कई बार मिला । वे बोनसाई के दौर में आखिरी पीपल थे जिन्होंने कविता, साहित्य, कला और दर्शन के फलक और उस फलक की चमक को बढ़ाया । वे ऐसे कवि, शब्दकार और नामचीन किरदार थे जो बेमिसाल शोहरत के बावजूद बिके नहीं , शायद इसीलिए उन्हें गीत ऋषि भी कहा जाता। उनकी सोच समाजवादी थी । उनके कई गीतों में लोहिया के भाषणों की झलक मिलती है । सबै सयाने एक मत ।
वे धर्म के आधार पर इंसानियत के बंटवारे के खिलाफ थे , जब मजहब को केंद्र में रख साम्प्रदायिकता ने नग्न नाग नर्तन शुरू किया, नीरज बोले....
एक मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए,
जिसमें इंसान को इंसान की बनाया जाए
आग बहती है यहां गंगा में भी झेलम में भी
कोई बतलाए कहां जाके नहाया
जाए
त्यागमई समाजवादी जीवन की सीख देते हुए गीतों के राजकुमार कहते हैं....
जितना कम समान रहेगा,
उतना सफर आसान रहेगा
जब तक मंदिर मस्जिद हैं
मुश्किल में इंसान रहेगा
कालजयी कवि कबीर की भांति मंदिर मस्जिद को चुनौती देने वाले नीरज की गहरी आस्था लोकमान्य तिलक की तरह गणपति और तुलसी की तरह राम में हैं, लेकिन वे आस्थावान थे, धार्मिक आस्थाओं के पवित्र प्रतीकों के क्रेता विक्रेता नहीं।
उनकी प्रार्थना है --
हे गणपति निज भक्त को दो ऐसी निज भक्ति
काव्य सृजन में ही रहे जीवन भर
अनुरक्ति
उन्होंने जीवन पर्यंत काव्य रचना के अतिरिक्त कोई और कार्य नहीं किया । वे राम से त्याग और मर्यादा की निष्काम प्रेरणा लेते थे, उनके लिए राम सत्ता और सत्ताजनित शक्ति से अर्जित संपत्ति के सोपान नहीं थे, बकौल नीरज
मर्यादा और त्याग का , एक नाम है राम
उनमें जो मन रम गया रहा सदा निष्काम
पद्मविभूषण नीरज को करीब से देखने और महसूस करने का अवसर पद्मविभूषण बिंदेश्वरी पाठक के माध्यम से मिला था । मेरे लिए गर्व की बात हैं कि उन्होंने मेरी बड़ी तारीफ की थी । उनकी तारीफ के बाद पांच छह महीने तक मैं खुद को देश का बड़ा आदमी समझता रहा, यह उनके शब्दों का जादू और किरदार का सलोनापन था । उन्होंने मेरे हिंदी अभियान का समर्थन किया और द्विगुणित उत्साह स्वरूप एक दोहा दिया
अपनी भाषा के बिना राष्ट्र न बनता राष्ट्र
बसे वहां महाराष्ट्र, चाहे रहे वहां सौ राष्ट्र
उनकी शिवपालजी से बहुत बनती थी , जब वे शिवपालजी के यहां आते या शिवपालजी उनके यहां जाते मैं जरूर पहुंच जाता और दोनों दोनों का संवाद सुनता । समाजवादी सोच के कारण ही वे अखिलेश सरकार में भाषा संस्थान के अध्यक्ष संप्रति मंत्री बने, अन्यथा नीरज का कद सरकारों से बड़ा था ।
उनके गीतों को रफी, मुकेश, मन्ना डे किशोर , लता ने गाए । राजकपूर, देवानंद, मनोज कुमार, शशि कपूर, वहीदा रहमान ने उनके गीतों का सहारा लेकर दुनिया को झुमाया । बॉलीवुड की संपन्नता या मायानगरी की माया ऋषि मनोवृति के नीरज के पांव न बांध सकी , वे साहित्य और लोकतंत्र को सशक्त, यथाशक्ति देश की दशा सुधारने करने आ गए । उनकी पीड़ा इन पंक्तियों से झलकती है -
ज्यों लूट ले कहार ही दुल्हन की पालकी,
हालत यही आज कल हिंदुस्तान
की
औरों के घर की धूप उसे क्यों पसंद हो
बेची हो जिसने रोशनी अपने मकान की
वे देश में मजबूत लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहते थे और चाहते थे पढ़े लिखे युवा राजनीति में आएं।
न कोई मंजिल , न कोई राह न मकसद कोई,
है ये जनतंत्र यतीमों के मुकद्दर
की तरह,
बस वही लोग बचा सकते है इस कश्ती को
डूब सकते हैं जो मझधार में लंगर की तरह
लोग ईमान बदलते है कलेंडर की तरह
बात अब करते हैं कतरे भी समंदर की तरह
आज के लेखक और कवि जो केवल सत्ता चरण के चारण बने हुए हैं, कविता के व्याकरण और गुरुत्व को दूषित कर रहे हैं, उनके लिए युग कवि का संदेश रेखांकित करने योग्य है -
जिसमें इंसान के दिल की न हो धड़कन
शायरी तो है वो अखबार के कतरन की तरह
और नीरज ने कहा था कि
जब चले जाएंगे हम लौट के सावन की तरह
याद आयेंगे प्रथम प्यार के चुम्बन
की तरह
सचमुच आज जयंती के उपलक्ष्य ग्रेट गोपाल दास नीरज की बहुत याद रही है,
बड़े गौर से सुन रहा था जमाना
तुम्हीं सो गए दास्तां कहते कहते