बारूद के ढेर पर संचालित हो रहे होटल, होटलों में ग्राहकों की सुरक्षा के साथ खुलेआम खिलवाड़
बहराइच।होटल और रेस्टोरेंट से मिल रही दौलत के नशे में चूर मालिकों ने ग्राहकों की सुरक्षा को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है। शहर में संचालित होटल वालों के पास फायर विभाग की एनओसी नहीं है। बिना एनओसी (नान आब्जेशन सर्टिफिकेट) वर्षों से यहां होटल चल रहे हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि जर्जर बिल्डिंग में चल रहे इस होटल की तरफ प्रशासन ने भी कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। जब जब इस होटल के सम्बंध में लोग शिकायत करते हैं तो जांच टीम वाले पहले ही सब कुछ चुस्त दुरुस्त रखने की बात अंदर खाने तक पहुंचा देते हैं।शायद लापरवाही की आग में झुलसने और लोंगो की मौतों के बाद ही प्रशासन की नींद टूटे । इतने पर भी यदि केवल कोरम और मैनेजिंग व्यवस्था ही लागू रही तो किसी भी दिन इससे भयावह हादसे से इनकार नहीं किया जा सकता।
शहर स्थित होटल बीते वर्षो में अग्नि कांड के बाद लापरवाहियों से सबक न लेने के चलते खुलासा हो रहा है। सूत्र बताते हैं कि शहर में संचालित होटल के पास फायर विभाग की एनओसी नहीं है। यही हाल ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे रहने व खाने के होटलों का है। वर्षों से शहर मुख्यालय पर चल रहे तमाम होटलों में ग्राहकों की सुरक्षा के साथ खुलेआम खिलवाड़ होता रहा। सुरक्षा के नाम पर आग रोधी छोटा सा सिलेंडर बांध दिया गया। मगर इसे चलाने का होटल स्टाफ और संचालकों ने कभी फायर विभाग के कर्मचारियों से प्रशिक्षण नहीं लिया। यहां यह बताना जरूरी है कि इस फायर रोधी सिलेंडर की प्रति वर्ष जांच होनी चाहिए।
बारूद के ढेर पर संचालित हो रहे होटल के सम्बंध में
फायर सर्विस के अफसर मानते हैं कि घण्टाघर से पीपल तिराहे के मध्य स्तिथ काफी खतरनाक हैं, जिसकी वजह ये हैं:
1. इनकी इमारतों के ढांचे का काफी पुराना होना
2. सभी इमारतों का एक-दूसरे के करीब होना
3. काफी भीड़-भाड़ वाला इलाका होना
4. सड़कों का काफी संकरा होना
5. पानी खत्म हुआ तो फिर गाड़ी में भरने का कोई सोर्स नहीं
है।
जारी गाइड लाइन के मुताबिक, ऐसे भवनों में फायर एक्सटिंग्यूशर, फायर सिस्टम जैसे होजरील, फायर हाईड्रेंट, फायर पंप, वाटर टैंक को क्रियाशील दशा में रखना आवश्यक होगा।
मगर इसे चलाने का होटल स्टाफ और संचालकों ने कभी फायर विभाग के कर्मचारियों से प्रशिक्षण नहीं लिया। यहां यह बताना जरूरी है कि इस फायर रोधी सिलेंडर की प्रति वर्ष जांच होनी चाहिए।
इसके लिए फायर विभाग में दस रुपये का शुल्क जमा करना पड़ता है। शुल्क जमा करने की रसीद के साथ विभाग में जांच के लिए पत्र देना पड़ता है। इसके बाद विभागीय अधिकारी जांच कर फायर उपकरणों के चालू हालत में होने का प्रमाण पत्र देते हैं। इस व्यवस्था और जांच से एनओसी का कोई मतलब नहीं है। हाल यह है कि कुछ साल पहले वैधता समाप्त होने के बाद भी वही प्रमाण पत्र एक दो होटल संचालक रख कर लोगों को विभाग की एनओसी बता रहे हैं। जबकि फायर किटों की जांच प्रति वर्ष होनी चानी चाहिए। चौंकाने वाली बात यह है कि बगैर फायर विभाग की एनओसी के चल रहे इन होटलों में कभी सुरक्षा के लिहाज से अधिकारियों ने भी जांच नहीं की। बीते दिनों एक शिकायत हुई तो सीएफओ विशाल रामानुज गौड़ ने जांच की बात कही।लेकिन उनके जांच स्थल पर पहुँचने से पहले ही आरोपित तक सूचना पहुंच गई। कार्रवाई की बात करना बेमानी है।
होटलों में ढांचागत सुरक्षा के ये है मानक
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0 सेट बैक (होटल के चारों तरफ खुला स्थान होना जरूरी)।
0 होटल में कम से कम चौड़ी और ढलान युक्त दो सीढ़ी।
0 फायर स्केप, होटल से निकलने वाले दूसरे मार्ग एवं आकस्मिक बाहरी सीढ़ी जरूरी।
0 आग लगने पर बजने वाला अलार्म आवश्यक।
0 होजरिल (यह उपकरण आग बुझाने में होता है सहायक)।
0 होटल परिसर में या आसपास फायर हाइड्रेंट जरुरी।
0 फायर रोधी यंत्रों की जांच का होना चाहिए प्रमाण पत्र।
0 होटलों के कमरों में ऐयर पासिंग व खिड़की का इंतजाम।
0 दिन और रात के वक्त होटल के मुख्य द्वार सहित सुरक्षा गार्डों की उपस्थिति।
0 होटल तक फायर गाड़ी पहुंचने का सुगम मार्ग जरूरी।
जिले मे माल, हॉस्पिटल, क्लीनिक, पैथालॉजी गेस्ट हाउस सहित बडे मार्केटिंग काम्प्लेक्स का संचालन हो रहा है जिसमें नियम यह है कि
भवन में आने जाने वाले मार्ग को सदैव अवरोध मुक्त रखा जाए।किंतु सब कुछ यहाँ शांति है।