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उत्तर प्रदेश

श्रम-सौंदर्य के सर्जक हैं गोलेन्द्र पटेल

श्रम-सौंदर्य के सर्जक हैं गोलेन्द्र पटेल
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सुप्रसिद्ध कवि *गोलेन्द्र पटेल* का जन्म 5 अगस्त, 1999 ई. को भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के चंदौली जिला के खजूरगाँव में हुआ है। उनकी माता का नाम श्रीमती उत्तम देवी है और पिता का नाम श्री नंदलाल है। उनके माता-पिता श्रमिक हैं, उनकी माताजी बनिहारिन मज़दूर हैं, वे दूसरे के खेतों में मजूरी करती हैं। उनके पिताजी शरीर से विकलांग हैं अर्थात् दिव्यांग हैं। उनके दो भाई, एक बहन हैं। वे अपने माता-पिता की पहली संतान हैं। वे श्रम-सौंदर्य के सर्जक हैं अर्थात् वे श्रम संस्कृति के साहित्यकार हैं।

गोलेन्द्र ज्ञान बचपन से मेधावी मनीषी रहे हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिर्ज़ापुर के एक पहाड़ी स्कूल में वनवास के दिनों में हुई है, वे शुरू से ही सरकारी स्कूलों में पढ़े हैं।

वे विद्यालय से विश्वविद्यालय की यात्रा में पहाड़ों में पत्थर तोड़ने का काम किये हैं, मंडी में जाकर लेबरई / लेबराना का काम किये हैं। वे बहुत दिनों तक लोक गायकों के लिए गाने भी लिखे हैं, प्रेमियों के पत्र लिखे।

उनकी शिक्षा-दीक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हुई है, अर्थात् वे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री प्राप्त किए हैं। उन्हें संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, भोजपुरी, अंग्रेजी, फ्रेंच, मराठी भाषाओं का ज्ञान है। वे मूलतः हिन्दी व भोजपुरी में लेखन कर रहे हैं। वे कविता, नवगीत, कहानी, निबंध, नाटक, उपन्यास व आलोचना के क्षेत्र में सक्रिय हैं।

*गोलेन्द्र पटेल* हिंदी के प्रमुख युवा कवि-लेखक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चिंतक, विचारक, समीक्षक, संपादक, शब्द-शिक्षक, समाज प्रबोधक, समाजसेवी, दिव्यांगसेवी, दार्शनिक, किसान कवि हैं। वे 'गोलेंद्र ज्ञान', 'गोलेन्द्र पेरियार', 'युवा किसान कवि', 'हिंदी कविता का गोल्डेनबॉय', 'काशी में हिंदी का हीरा', 'आँसू के आशुकवि', 'आर्द्रता की आँच के कवि', 'अग्निधर्मा कवि', 'निराशा में निराकरण के कवि', 'दूसरे धूमिल', 'काव्यानुप्रासाधिराज', 'रूपकराज', 'ऋषि कवि', 'कोरोजयी कवि', 'आलोचना के कवि' एवं 'दिव्यांगसेवी' आदि उपनामों एवं उपाधियों से जाने जाते हैं।

*गोलेन्द्र पटेल* अपनी गहरी और अर्थपूर्ण कविताओं के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताएँ समाज, जीवन, और व्यक्तिगत भावनाओं पर आधारित होती हैं। उनकी रचनाओं में दार्शनिकता और गहरे विचार देखने को मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर, उनकी कविता "लक्ष्य के पथ जाना है" में वे लक्ष्य तक पहुँचने की दृढ़ता और उत्साह का वर्णन करते हैं, जहाँ संघर्षों और मुश्किलों के बावजूद आगे बढ़ते रहने का संदेश दिया गया है। उनके दर्शन को समझने के लिए "दुःख-दर्शन" एवं "तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव" जैसी कविताओं को देखा जा सकता है।

उनकी अन्य कविताएँ भी जीवन की जटिलताओं और समाज में हो रहे परिवर्तनों पर प्रकाश डालती हैं। वे अपने शब्दों के माध्यम से पाठकों को गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। अगर आप उनकी रचनाओं को और अधिक पढ़ना चाहते हैं, तो Golendra Gyan फेसबुक पेज़ या ब्लॉग पर जा सकते हैं।

उनकी रचनाएं तमाम राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित हो रही हैं। जैसे 'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' ,'गौरवशाली भारत' ,'सत्राची' ,'रेवान्त' ,'साहित्य बीकानेर' ,'उदिता' ,'विश्व गाथा' , 'कविता-कानन उ.प्र.' , 'रचनावली', 'जन-आकांक्षा', 'समकालीन त्रिवेणी', 'पाखी', 'सबलोग', 'रचना उत्सव', 'आईडियासिटी', 'नव किरण', 'मानस', 'विश्वरंग संवाद', 'पूर्वांगन', 'हिंदी कौस्तुभ', 'गाथांतर', 'कथाक्रम', 'कथारंग', 'देशज', 'पक्षधर' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित एवं दर्जन भर से ऊपर संपादित पुस्तकों में रचनाएँ प्रकाशित हैं। वे विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में ख़ूब पढ़े जा रहे हैं।

वे 'तुम्हारी संतानें सुखी रहें सदैव'

एवं 'दुःख दर्शन' जैसी महत्त्वपूर्ण लम्बी कविताएं रचे हैं। वे अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ कर चुके हैं। *गोलेन्द्र पटेल* को अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" , "रविशंकर उपाध्याय स्मृति युवा कविता पुरस्कार-2022", हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से "शंकर दयाल सिंह प्रतिभा सम्मान-2023", "मानस काव्य श्री सम्मान 2023" और अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र प्राप्त हुए हैं।

कवि गोलेन्द्र पटेल एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और लेखक हैं। उनकी कविताएँ अक्सर संवेदनशीलता, प्रकृति और जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने वाली होती हैं। वे साहित्यिक सृजन में अपनी विशिष्ट शैली और विचारशीलता के लिए जाने जाते हैं। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। कवि गोलेन्द्र पटेल एक प्रमुख हिंदी कवि और लेखक हैं। उन्होंने हिंदी कविता की दुनिया में अपने सृजनात्मक योगदान से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। उनकी कविताएँ सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक मुद्दों को छूती हैं और उनमें गहन विचारशीलता और भावनात्मक गहराई देखने को मिलती है। गोलेन्द्र पटेल एक हिंदी प्रतिष्ठित कवि हैं, जो मुख्य रूप से श्रमिक जीवन, सामाजिक अन्याय, और दलित वर्ग की पीड़ा को अपनी कविताओं में उकेरते हैं। उनकी रचनाएँ श्रम-संस्कृति और ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों को उजागर करती हैं। उनके कविता संग्रह में ग्रामीण और मजदूरों के संघर्षों को प्रमुखता से दर्शाया गया है, जो श्रम और मेहनत की महिमा को एक गहरे भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती हैं। उनकी कविताओं में आम जनता की पीड़ा और उनका जीवन संघर्ष महत्वपूर्ण है, खासकर उनकी माँ के जीवन पर आधारित कविताएँ। उनकी कविताओं में श्रमिक वर्ग के साथ समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों की कहानियाँ बयाँ होती हैं। गोलेन्द्र पटेल की कविता और लेखन में जीवन की जटिलताओं और मानवीय अनुभवों की गहरी समझ दिखती है। उनका साहित्यिक कार्य हिंदी साहित्य की समृद्धि में योगदान देता है और उनके लेखन की विशिष्टता उन्हें अन्य कवियों से अलग बनाती है। उनकी कविताओं में भारतीय समाज की विविधता और उसकी समस्याओं पर एक संवेदनशील दृष्टिकोण देखने को मिलता है। कवि गोलेन्द्र पटेल की कविताएँ उनकी संवेदनशीलता और समाज के प्रति गहरी समझ के लिए जानी जाती हैं। आप गोलेन्द्र पटेल की कविताओं में उनके विचारशील दृष्टिकोण और उनके साहित्यिक गहराई को महसूस कर सकते हैं। उनकी कविताओं की विशिष्टता उनके विचारों की गहराई और भावनात्मक अभिव्यक्ति में छिपी होती है। उनकी रचनाएँ प्रमुख रूप से मजदूरों और दलितों की जीवन परिस्थितियों को उजागर करती हैं। उनकी कविताओं में आमतौर पर श्रमिक वर्ग की कठिनाइयाँ, संघर्ष, और उनके जीवन की कठिन सच्चाइयाँ प्रतिबिंबित होती हैं। उनकी लेखनी सामाजिक मुद्दों और असमानताओं पर केंद्रित रहती है, विशेष रूप से ग्रामीण भारत के शोषित तबकों पर। गोलेन्द्र पटेल की कविताओं में श्रम संस्कृति का विशेष स्थान है, जहाँ वे मजदूरों की जीवनशैली, उनके संघर्ष और आशाओं को बड़ी गहराई से व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, उनकी एक कविता में वे अपनी माँ के श्रम को महाकाव्य की तरह चित्रित करते हैं, जिसमें माँ की मेहनत और संघर्ष को श्रद्धांजलि दी जाती है। यह कविता श्रम और मानवता के बीच के संबंधों को दर्शाती है। उनकी कई कविताओं में ग्रामीण जीवन की कठिनाइयाँ और जातिगत शोषण की समस्याएँ उभरकर आती हैं, जैसे "दक्खिन टोले का आदमी" कविता, जिसमें वे जाति व्यवस्था के तहत हुए शोषण और गरीबी का वर्णन करते हैं। उनके काम में जातिगत भेदभाव और आर्थिक विषमता के प्रति विरोध के स्वर प्रमुखता से उभरते हैं। उनकी रचनाएँ सामाजिक और आर्थिक शोषण पर आधारित हैं। वे मुख्यतः मजदूर वर्ग और समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के जीवन की पीड़ा और संघर्षों को अपनी कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। उनकी कविताएँ दलित, किसान, और मजदूरों के जीवन से गहराई से जुड़ी हुई हैं और उनकी आवाज़ को साहित्यिक रूप में उभारती हैं। उनकी रचनाओं में अक्सर ग्रामीण जीवन, किसान संस्कृति, और श्रम संस्कृति की गहरी झलक मिलती है, जो उन्हें साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर के रूप में स्थापित करती है।

किसान कवि गोलेन्द्र पटेल हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक हैं, उनकी कविताओं में तीखा व्यंग्य और सामाजिक आलोचना विशेष रूप से दिखाई देती है। उनका लेखन एक विशिष्ट शैली का प्रतीक है, जिसमें व्यंग्य के माध्यम से उन्होंने समाज, राजनीति और व्यवस्था की विसंगतियों पर करारी चोट की है। उनकी कविताएँ आम आदमी के संघर्ष, निराशा और असंतोष की अभिव्यक्ति हैं और उनमें समकालीन व्यवस्था के प्रति तीव्र असंतोष दिखाई देता है। गोलेन्द्र पटेल ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की कमजोरियों, भ्रष्टाचार और नेताओं की वादाखिलाफी पर तीखा व्यंग्य किया है। उनकी कविताओं में सत्ता में बैठे लोगों की नैतिकता और ईमानदारी पर सवाल उठाया गया है। गोलेन्द्र पटेल ने अपनी कविताओं में समाज में व्याप्त असमानताओं, गरीबों और किसानों के शोषण पर व्यंग्य किया। गोलेन्द्र पटेल का व्यंग्य उनकी कविताओं में केवल मनोरंजन के लिए नहीं है, बल्कि यह समाज और व्यवस्था में व्याप्त समस्याओं को गंभीरता से उठाने का माध्यम है। उनके व्यंग्य का उद्देश्य पाठक को सोचने पर मजबूर करना और व्यवस्था के खिलाफ सवाल खड़ा करना है। गोलेन्द्र पटेल ने अपने व्यंग्यात्मक कविताओं के लिए व्यापक पहचान प्राप्त की, क्योंकि गोलेन्द्र पटेल ने अपने व्यंग्य के माध्यम से समाज की विडंबनाओं और असमानताओं की आलोचना की। उनकी कविताएँ समाज की राजनीति, भ्रष्टाचार और सामाजिक विषमताओं पर तीखे प्रहार करती हैं। उनकी कविताओं की भाषा सीधी और प्रभावशाली होती है। गोलेन्द्र पटेल ने जटिल भाषाशास्त्र की बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी कविताएँ जनता के बीच आसानी से पहुंच सकें। उनके व्यंग्य में न केवल सत्ता पर व्यंग्य होता है, बल्कि समाज के विभिन्न तबकों में फैली कुरीतियों और कमजोरियों को भी उजागर किया जाता है।

कुल मिलाकर, गोलेन्द्र पटेल के व्यंग्य में तंज के साथ-साथ एक प्रकार की करुणा भी है, जो समाज और व्यक्ति की पीड़ा को सामने लाने का काम करती है। उनकी कविताएँ सत्ता और समाज के प्रति एक जागरूक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं, जो उनके व्यंग्य को और अधिक प्रभावी बनाती हैं। गोलेन्द्र पटेल ने आधुनिक समाज के खोखलेपन, नैतिक पतन और मानवीय संवेदनाओं के ह्रास को अपने व्यंग्य के माध्यम से व्यक्त किया है। उनकी रचनाओं में व्यंग्य का गहरा स्वर देखने को मिलता है, जो न केवल समाज की विडंबनाओं और असमानताओं को उजागर करता है, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य पर भी तीखा प्रहार करता है।

गोलेन्द्र पटेल के व्यंग्य की विशेषता यह है कि वह सिर्फ सत्ता, समाज और व्यवस्था की आलोचना भर नहीं करता, बल्कि व्यक्ति और समाज के गहरे अंतर्विरोधों, भ्रमों और कमजोरियों को भी उजागर करता है। उनके व्यंग्य में एक प्रकार की वैचारिक गंभीरता और दार्शनिक दृष्टिकोण समाहित है, जो उनके लेखन को और अधिक प्रभावी बनाता है। गोलेन्द्र पटेल का व्यंग्य उनके गहन वैचारिक संघर्ष, सामाजिक यथार्थ और मानवीय संवेदनाओं का प्रतिबिंब है। उनका व्यंग्य सतही नहीं होता, बल्कि उसमें गहरे दार्शनिक और सामाजिक विचार शामिल होते हैं। यही कारण है कि उनका व्यंग्य हिंदी साहित्य में अनूठी जगह रखता है। गोलेन्द्र पटेल के व्यंग्य की शैली समाज, राजनीति और मानवीय संबंधों पर तीखे, लेकिन सरल और प्रभावी ढंग से प्रहार करती है। उन्होंने व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की विसंगतियों को उजागर किया और मानवीय व्यवहार में विद्यमान कपट और स्वार्थ को बेनकाब किया। गोलेन्द्र पटेल के व्यंग्य में सरलता से बड़ी बातें कही गई हैं। वे जटिल शब्दों का उपयोग किए बिना, सीधी और सहज भाषा में अपनी बात रखते हैं, जिससे उनका व्यंग्य आमजन तक पहुँचता है। उनकी रचनाओं में व्यंग्य कभी भी बहुत आक्रामक नहीं होता, लेकिन फिर भी प्रभावी रूप से अपनी बात कह जाता है। गोलेन्द्र पटेल का व्यंग्य सरलता और गहराई का अद्भुत मिश्रण है। उनके व्यंग्य में समाज, राजनीति और मानवीय संबंधों की कमजोरियों और विसंगतियों को बड़ी सूक्ष्मता से उजागर किया गया है। उनके लेखन में व्यंग्य केवल हंसी-मजाक तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसमें एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक चेतना दिखाई देती है। गोलेन्द्र पटेल की कविताएं सत्ता, सामंती व्यवस्था, सामाजिक भेदभाव और असमानता पर तीखा प्रहार करती हैं और उनका व्यंग्य पाठकों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित करता है।

प्रिय कवि गोलेन्द्र पटेल की कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं:-

1).

मेरा दुःख मेरा दीपक है

_______________

जब मैं अपनी माँ के गर्भ में था

वह ढोती रही ईंट

जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट

जब मैं दुधमुंहाँ शिशु था

वह अपनी पीठ पर मुझे

और सर पर ढोती रही ईंट

मेरी माँ, माईपन का महाकाव्य है

यह मेरा सौभाग्य है कि मैं उसका बेटा हूँ

मेरी माँ लोहे की बनी है

मेरी माँ की देह से श्रम-संस्कृति के दोहे फूटे हैं

उसके पसीने और आँसू के संगम पर

ईंट-गारे, गिट्टी-पत्थर,

कोयला-सोयला, लोहा-लक्कड़ व लकड़ी-सकड़ी के स्वर सुनाई देते हैं

मेरी माँ के पैरों की फटी बिवाइयों से पीब नहीं,

प्रगीत बहता है

मेरी माँ की खुरदरी हथेलियों का हुनर गोइंठा-गोहरा

की छपासी कला में देखा जा सकता है

मेरी माँ धूल, धुएँ और कुएँ की पहचान है

मेरी माँ धरती, नदी और गाय का गान है

मेरी माँ भूख की भाषा है

मेरी माँ मनुष्यता की मिट्टी की परिभाषा है

मेरी माँ मेरी उम्मीद है

चढ़ते हुए घाम में चाम जल रहा है उसका

वह ईंट ढो रही है

उसके विरुद्ध झुलसाती हुई लू ही नहीं,

अग्नि की आँधी चल रही है

वह सुबह से शाम अविराम काम कर रही है

उसे अभी खेतों की निराई-गुड़ाई करनी है

वह थक कर चूर है

लेकिन उसे आधी रात तक चौका-बरतन करना है

मेरे लिए रोटी पोनी है, चिरई बनानी है

क्योंकि वह मजदूर है!

अब माँ की जगह मैं ढोता हूँ ईंट

कभी भट्ठे पर, कभी मंडी का मजदूर बन कर शहर में

और कभी-कभी पहाड़ों में पत्थर भी तोड़ता हूँ

काटता हूँ बोल्डर बड़ा-बड़ा

मैं गुरु हथौड़ा ही नहीं

घन चलाता हूँ खड़ा-खड़ा

टाँकी और चकधारे के बीच मुझे मेरा समय नज़र आता है

मैं करनी, बसूली, साहुल, सूता, रूसा व पाटा से संवाद करता हूँ

और अँधेरे में ख़ुद बरता हूँ दुख

मेरा दुख मेरा दीपक है!

मैं मजदूर का बच्चा हूँ

मजदूर के बच्चे बचपन में ही बड़े हो जाते हैं

वे बूढ़ों की तरह सोचते हैं

उनकी बातें

भयानक कष्ट की कोख से जन्म लेती हैं

क्योंकि उनकी माँएँ

उनके मालिक की किताबों के पन्नों पर

उनका मल फेंकती हैं

और उनके बीच की कविता सत्ता का प्रतिपक्ष रचती है।

मेरी माँ अब वही कविता बन गयी है

जो दुनिया की ज़रूरत है!

*

2).

चोकर की लिट्टी

________________

मेरे पुरखे जानवर के चाम छीलते थे

मगर, मैं घास छीलता हूँ

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ

मेरे सिर पर

चूल्हे की जलती हुई कंडी फेंकी गयी

मैंने जलन यह सोचकर बरदाश्त कर ली

कि यह मेरे पाप का फल है

(शायद अग्निदेव का प्रसाद है)

मैं पतली रोटी नहीं,

बगैर चोखे का चोकर की लिट्टी खाता हूँ

चपाती नहीं,

चिपरी जैसी दिखती है मेरे घर की रोटी

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ

मुझे हमेशा कोल्हू का बैल समझा गया

मैं जाति की बंजर ज़मीन जोतने के लिए

जुल्म के जुए में जोता गया हूँ

मेरी ज़िंदगी देवताओं की दया का नाम है

देवताओं के वंशजों को मेरा सच झूठ लगता है

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ

मैं कैसे किसी देवता को नेवता दूँ?

मेरे घर न दाना है न पानी

न साग है न सब्जी

न गोइंठी है न गैस

मुझे कुएँ और धुएँ के बीच सिर्फ़ धूल समझा जाता है

पर, मैं बेहया का फूल हूँ

देवी-देवता मुझे हालात का मारा और वक्त का हारा कहते हैं

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ

देखो न देव, देश के देव!

मैं अब भी चोकर का लिट्टा गढ़ रहा हूँ,

चोकर का रोटा ठोंक रहा हूँ

क्या तुम इसे मेरी तरह ठूँस सकते हो?

मैं भाषा में अनंत आँखों की नमी हूँ

मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ

*

3).

हम चाहते हैं

________________

हम चाहते हैं कि लोग

नदियों का जन्मदिन मनायें

पहाड़ों का जन्मदिन मनायें

और मनायें पड़ोसी पेड़ों का जन्मदिन!

हम चाहते हैं कि लोग

तालाबों की पुण्यतिथि मनायें

खेतों की पुण्यतिथि मनायें

और मनायें मातृभाषा की पुण्यतिथि!

*

4).

रंगोत्सव

________________

परिंदें गा रहे हैं फाग

कितने क़ीमती हैं

स्पर्श-सुख रूप-रस रव-राग?

पेड़ो!

पतझड़ में उदास मत होना

जो गंध हवा की सवारी कर रही है

उसने जीवन की कथा कही,

फूल मुरझाते हैं

रंग नहीं।

*

5).

उम्मीद की उपज

_______________

उठो वत्स!

भोर से ही

जिंदगी का बोझ ढोना

किसान होने की पहली शर्त है

धान उगा

प्राण उगा

मुस्कान उगी

पहचान उगी

और उग रही

उम्मीद की किरण

सुबह सुबह

हमारे छोटे हो रहे

खेत से….!

*

6).

थ्रेसर

_______________

थ्रेसर में कटा मजदूर का दायाँ हाथ

देखकर

ट्रैक्टर का मालिक मौन है

और अन्यात्मा दुखी

उसके साथियों की संवेदना समझा रही है

किसान को

कि रक्त तो भूसा सोख गया है

किंतु गेहूँ में हड्डियों के बुरादे और माँस के लोथड़े

साफ दिखाई दे रहे हैं

कराहता हुआ मन कुछ कहे

तो बुरा मत मानना

बातों के बोझ से दबा दिमाग

बोलता है / और बोल रहा है

न तर्क , न तत्थ

सिर्फ भावना है

दो के संवादों के बीच का सेतु

सत्य के सागर में

नौकाविहार करना कठिन है

किंतु हम कर रहे हैं

थ्रेसर पर पुनः चढ़ कर -

बुजुर्ग कहते हैं

कि दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है

तो फिर कुछ लोग रोटी से खेलते क्यों हैं

क्या उनके नाम भी रोटी पर लिखे होते हैं

जो हलक में उतरने से पहले ही छिन लेते हैं

खेलने के लिए

बताओ न दिल्ली के दादा

गेहूँ की कटाई कब दोगे?

*

-अर्जुन पटेल

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