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उत्तर प्रदेश

अखिलेश यादव के सामने नहीं चली आजम खान की, चुनाव में इसका असर क्या होगा?

अखिलेश यादव के सामने नहीं चली आजम खान की, चुनाव में इसका असर क्या होगा?
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लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने अब तक 40 से ज्यादा उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. इन उम्मीदवारों में से सात पर तो प्रत्याशी बदले गए. वहीं दो सीटें ऐसी हैं जिन्होंने सपा की अंदरूनी कलह को सतह पर ला दिया है. रामपुर और मुरादाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्याशियों के ऐलान ने सपा की आंतरिक सियासत को भी खोल कर रख दिया है. इस कलह से न सिर्फ यह दावा झूठा साबित हो रहा है कि सपा में सब कुछ ठीक है बल्कि यह बात भी स्पष्ट हो रही है कि कथित एकजुटता के दावों पर नेताओं के निजी स्वार्थ भारी पड़ रहे हैं.

रामपुर लोकसभा सीट पर प्रत्याशी का ऐलान सपा ने परंपरागत तरीके से किया भी नहीं. जब सपा प्रत्याशी ने नामांकन कर दिया तब यह स्पष्ट हो पाया कि पार्टी का उम्मीदवार कौन है. सपा ने फरवरी में पहली सूची 16 उम्मीदवारों की जारी की थी. तब से लेकर अब तक पार्टी सोशल मीडिया पर अपने सभी प्रत्याशियों के बारे में जानकारी देती थी. हालांकि रामपुर के मामले में ऐसा नहीं हुआ. वहीं मुरादाबाद निर्वाचन क्षेत्र में मचे हंगामें ने एकजुटता की कलई खोल कर रख दी. इन सबके बीच जो अहम बात सामने आई वह यह है कि सपा नेता आजम खान की पार्टी में सियासी हैसियत पर अब सवाल खड़े होने लगे हैं.

रामपुर लोकसभा सीट से शुरू हुई कलह

सबसे पहले बात करते हैं रामपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की. रामपुर में नामांकन की प्रक्रिया 20 मार्च को शुरू हुई और 27 मार्च को पर्चा भरने का आखिरी दिन था. 26 मार्च को समाजवादी पार्टी की जिला इकाई ने अपने अध्यक्ष अजय सागर और सपा नेता आसिम रजा की मौजूदगी में यह ऐलान कर दिया कि अगर अखिलेश यादव खुद रामपुर से उम्मीदवार नहीं होंगे तो पार्टी चुनाव का बहिष्कार कर देगी. बहिष्कार के ऐलान ने रामपुर से लखनऊ तक खलबली मचा दी.

रामपुर जिला इकाई के बहिष्कार के ऐलान के बाद सपा नेता आजम खान के नाम से एक चिट्ठी आई. इसमें दावा किया गया था कि जब अखिलेश 22 मार्च को आजम खान से जेल में मिलने पहुंचे तब सपा नेता ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से यह आग्रह किया था कि वह खुद रामपुर से लोकसभा चुनाव लड़ें. अपनी आंतरिक लड़ाई छिपाने के लिए सपा ने प्रशासन पर भी निष्पक्ष और उचित तरीके से चुनाव न कराने का आरोप लगा दिया.

कैसे हैं नदवी और आजम खान के रिश्ते?

अगले दिन 27 मार्च को जब नामांकन में कुछ घंटे बाकी रह गए थे तब सपा ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित पार्लियामेंट स्ट्रीट की मस्जिद के इमाम मोहिबुल्लाह नदवी को रामपुर निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित कर दिया. हालांकि आजम खान ने अपनी सियासी ताकत का अंदाजा कराने की भरपूर कोशिश की. सपा नेता के करीबी अब्दुल सलाम और आसिम रजा ने भी पर्चा भरा लेकिन उनका नामांकन पत्र खारिज कर दिया गया. अब मैदान में सिर्फ नदवी बचे हैं.

यूं तो नदवी और आजम खान दोनों ही रामपुर से ही हैं लेकिन उनके रिश्तों के बारे में सियासी जानकारों का दावा है कि दोनों के बीच रिश्ते बहुत अच्छे नहीं है. ऐसे में अगर परिणाम सपा के पक्ष में आए तो यह माना जा रहा है कि रामपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र समेत पूरे जिले में आजम खान की सियासत का रुतबा खत्म भले न हो लेकिन कम जरूर हो जाएगा. इसके उलट अगर भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर अपना कब्जा बनाए रखने में सफल होती है तो आजम खान के पास भी पार्टी आलाकमान को लेकर शिकायत का मौका भी रहेगा.

मुरादाबाद में तो गजब ही हो गया!

अब आते हैं मुरादाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पर. यहां तो गजब ही हो गया. समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर डॉक्टर एसटी हसन को प्रत्याशी घोषित कर दिया था. यहां रामपुर वाला हाल नहीं था कि नामांकन के बाद पता चले कि असली कैंडिडेट कौन है! लेकिन असली खेल तो तब शुरू हुआ जब यह खबरें आने लगीं कि पार्टी ने मुरादाबाद पर अपना मन बदल लिया है. दावा किया जाने लगा कि सपा ने नामांकन के लिए रुचि वीरा को सिंबल दे दिया है.

बिजनौर निवासी रुचि वीरा के बारे में दावा किया जाता है कि वह आजम खान की करीबी है. नामांकन के आखिरी दिन यानी 27 मार्च को रुचि वीरा ने नामांकन कर दिया और एसटी हसन को अपना बड़ा भाई बताया लेकिन अब एक वायरल चिट्ठी में सारा 'सच' सामने ला दिया. इस चिट्ठी के जरिए दावा किया जा रहा है कि सपा ने रुचि वीरा की जगह एसटी हसन को फिर से प्रत्याशी घोषित करने का फैसला कर लिया था. दावा किया गया कि जिस चिट्ठी में एसटी हसन को फिर से प्रत्याशी बनाने की ताकत थी, वही देर से पहुंची इसलिए पार्टी का सिंबल रुचि वीरा के पास ही रह गया.

एसटी हसन ने आजम पर लगाए आरोप

जब मुरादाबाद से एसटी हसन का टिकट कटा था तब उन्होंने आजम खान का नाम लेते हुए सीधे आरोप लगाया था कि अखिलेश यादव ने उन्हीं के दबाव में यह फैसला लिया. हालांकि अब जबसे यह चिट्ठी सामने आई है उसके बाद से ही यह बात कही जा रही है सपा में आजम खान के नाम का रुतबा कम हो गया है. भले ही रुचि वीरा अब मुरादाबाद से प्रत्याशी हैं लेकिन चिट्ठी वायरल होने के बाद यह पक्का हो गया है कि अखिलेश यादव, आजम खान की 'मनमानी' से परेशान हुए और उन्हें फिर से एसटी हसन को कैंडिडेट बनाने का फैसला किया.

एसटी हसन को प्रत्याशी बनाने की चिट्ठी वायरल होने के बाद यह माना जा रहा है कि सपा प्रमुख किसी भी कीमत पर यह संदेश नहीं देना चाहते कि वह आजम खान के दबाव में हैं. इस चिट्ठी के वायरल होने के बाद उन्हें सपा से बिखर रहे मतदाताओं को भी संभालने में मदद मिल सकती है.

रामपुर और मुरादाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र पर जिस तरह से सपा में कलह मची और दोनों सीटों पर आजम खान की नहीं चली उससे यह स्पष्ट हो गया है कि सपा नेता का पार्टी में रसूख कम हो रहा है. अब यह देखना होगा कि चुनाव में इसका असर क्या होगा?

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