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उत्तर प्रदेश

नर से नारायण की संकल्पना ही पंडित दीनदयाल जी का एकात्मक मानववाद रहा है

नर से नारायण  की संकल्पना ही पंडित दीनदयाल जी का एकात्मक मानववाद रहा है
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वाराणसी -आज पंडित दीनदयाल जी के पुण्यतिथि 11 फरवरी के अवसर पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में पं. दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के तत्वावधान में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसका विषय एकात्म मानववाद एवं विकसित भारत रखा गया। अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के महत्वपूर्ण योगदानों पर प्रकाश डालते हुए कहा दुर्भाग्य की बात है कि आज़ादी के पश्चात पंडित जी को जो सम्मान मिलना चाहिए था, किंचित कारणों से नहीं मिल पाया। शोध छात्रों को निर्देशित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि शोध पीठ की स्थापना मील के पत्थर के समान है ,इसलिए वह पंडित जी के बारे में कही हुई हर बिंदु को आत्मसात करें वह अपने व्यवहारिक जीवन में उसे उतरे भी क्योंकि वह हर बिंदु महत्वपूर्ण है जिसमें देश के विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। पंडित जी के ग्रंथ ज्ञान का अमूल्य भंडार है जिनका सही प्रयोग अब तक नहीं किया जा सका है,और वह कुछ क्षेत्रों में ही सीमित होकर रह गया है अतः आवश्यकता इस बात की है की हर क्षेत्र के विद्यार्थियों को साथ आना पड़ेगा ताकि विचारों का विनिमय सरलता से हो पाए।

विशिष्ट वक्ता के रूप में अपना उद्बोधन देते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा के दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्डेय जी ने पंडित जी के वैचारिक विकास कार्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस समय पंडित जी का व्यक्तित्व मुखरित हो रहा था उसे समय तकनीकी की कमी सबसे बड़ी चुनौती थी। देश को राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर उन्मुख करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। पंडित जी का विचार था की भारत एक खुशहाल एवं विकसित राष्ट्र तब बनेगा जब भारत के सबसे निचली सीढ़ी पर बैठा व्यक्ति भी मुस्कुरा रहा होगा। पंडित जी ने एकात्मवाद दर्शन की अवधारणा दी जिसने देश को विकसित करने की राह पर अग्रसर किया।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित श्री पंडित दीनदयाल शोध संस्थान नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री वसुमित्र शंकर जी ने पण्डित जी के साथ -साथ के संस्मरणों को साझा करते हुए उनके ओजस्वी व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए बताया कि नर से नारायण की आधारशिला ही मानव जीवन का अनिवार्य अंग होना चाहिए । आगे उन्होंने उनके व्यवहार की मधुरता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पंडित जी हर श्रेणी के व्यक्ति से अत्यंत सरलता एवं सहजता से बात करते थे जिसके कारण सब उनके साथ रहना चाहते थे एवं उनकी बातों को सुनते रहना चाहते थे। पंडित जी की विचारधारा ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। पंडित जी के सरल जीवनचर्या की बात करते हुए उन्होंने बताया की पंडित जी ने अपना पूरा जीवनकाल मात्रा दो जोड़ी साधारण वस्त्रों में निर्वाह किया। कार्यक्रम का संचालन व अतिथियों का अभिनंदन डॉ. ऊर्जस्विता सिंह ने , वाचिक स्वागत एवं विषय प्रवर्तन प़ो. के. के. सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. किरण सिंह ने किया। इस अवसर पर , डॉ. हिमांशु राज पांडेय, डा.रवि प्रकाश सिंह, प्रो. शेफाली वर्मा ठकराल, डा.अनिल कुमार, डा.सतीश कुशवाहा, डॉ. प्रतिभा सिंह, डॉ. राकेश कु. तिवारी, प्रो. अनुकूल चंद्र राय ,प्रो .रमाकान्त सिंह, डॉ. धनंजय, अमन, खुशी, ओजस, सुमन, रविशंकर, भगीरथ, नितेश , केतन ,अवनीश, मोनी और अन्य शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।

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