जानिये पार्थिव शिवलिंग रुद्राभिषेक क्या है ?

प्रेम शंकर मिश्र
आज कल बहुत से लोग दूसरों को देख घरों में रुद्राभिषेक का आयोजन करते है, परंतु उन्हें ज्ञात नही है, पार्थिव पूजन का क्या महत्व है?
कच्ची मिट्टी से शिवलिंग बनाकर उसका किया जाने वाला पूजन पार्थिव पूजन कहलाता है। सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार सावन माह भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है। इसलिए इन दिनों पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिव पूजन करना विशेष पुण्य प्रदायक होता है। शास्त्रों के अनुसार पार्थिव शिवलिंग का पूजन करने से करोड़ों यज्ञों के बराबर फल भी प्राप्त होता है।
कलयुग में कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र 'मंडप ऋषि' ने पार्थिव पूजन प्रारम्भ किया था। शिव महापुराण के अनुसार पार्थिव पूजन से धन, धान्य, आरोग्य और पुत्र की प्राप्ति होती है। वहीं मानसिक और शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिल जाती है।
पार्थिव पूजन से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है
शिवपुराण में वर्णित है कि पार्थिव पूजन सभी दुःखों को दूर करके सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है।
भगवान श्रीराम नें भी लंका पर विजय पाने व रावण के साथ युद्ध करने से पहले पार्थिव शिवलिंग की पूजा की थी। श्री राम द्वारा इस पूजा को करने के बाद उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त की थी। न्याय के देवता शनिदेव ने भी सूर्य से अधिक शक्ति पाने के लिए काशी में पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान महादेव की पूजा की थी।
शिव महापुराण में 'विद्येश्वर संहिता' के 16 वे अध्याय में दिए गए श्लोक के अनुसार -
अप मृत्युहरं कालमृत्योश्चापि विनाशनम। सध:कलत्र-पुत्रादि-धन-धान्य प्रदं द्विजा:।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा से तत्क्षण (तुरंत ही) जो कलत्र पुत्रादि अर्थात् पुत्र वधु होती है वो शिव शंभू की कृपा से घर में धन धान्य लेकर आती है और इस लोक में सभी मनोरथ को भी पूर्ण करती है। गृहलक्ष्मी द्वारा की गई पार्थिव शिवलिंग की पूजा अकाल मृत्यु को भी टालती है।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा को स्त्री पुरुष सभी कर सकते हैं। यह सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाली है।
पार्थिव शिवलिंग मिट्टी , जल , भस्म , चन्दन , शहद आदि को मिश्रित (मिलाकर) करके अपने हाथों से निर्मित किया जाता है। इसके लिए छानी हुई शुद्ध मिट्टी, गाय का गोबर, गुड़, मक्खन , शहद ,चन्दन और भस्म मिलाकर शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए।
शिवलिंग की ऊँचाई12अंगुल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए।
पार्थिव शिवलिंग तैयार हो जाने के बाद सबसे पहले गणपतिजी की पूजा करना चाहिए। उसके बाद भगवान विष्णु, नवग्रह और माता पार्वती आदि का आह्वान करना चाहिए । फिर पार्थिव शिवलिंग की बेलपत्र, आक के फूल, धतूरा, बेल, कच्चे दूध आदि से पूजा करना चाहिए।
हर हर महादेव ॐनमःशिवाय हे महेश्वर मेरे पास जो है वह आपका है उसे स्वीकार करे ।
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।
अर्थात महेश, सुरेश व अन्य देवताओं के अहंकार का नाश करने वाले, इस संपूर्ण विश्व के स्वामी, विभूति से अपने अंगों को सुशोभित करने वाले, सर्वत्र विद्यमान रूप वाले, तीन नेत्रों वाले, सदा आनंद में रहने वाले, पंच तत्वों के स्वामी शिव जी हैं।भगवान शंकर को मै नमन वंदन प्रणाम करता हूं
पुराणों में वर्णितहै:
यस्य देवे परा भक्तिर यथा देवे तथा गुरु
तसयैत कथा ह्यर्थ: प्रकाशंते महात्मान:
अर्थात सभी वैदिक ज्ञान का महत्व उन लोगों के दिलों में प्रकट होता है जो गुरु और ईश्वर की भक्ति में अटूट विश्वास रखते है। वैसे अच्छा है चाहे जैसे भी लोग अपने घरों में इस आधुनिक जगत में भगवान को स्मरण कर रहे है।